Children's Day 2025: वर्चुअल दुनिया बच्चों के लिए खतरनाक है, जो उन्हें साइबर बुलिंग और फ्रॉड का शिकार बना सकती है। उनकी सुरक्षा के लिए माता-पिता को बातचीत करनी चाहिए। बाल दिवस पर जानें कैसे बच्चों को वर्चुअल वर्ल्ड से बाहर निकाल सकते हैं।
Children's Day 2025: भारत में हर साल 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है, जो बच्चों के अधिकारों, शिक्षा और उनके बेहतर भविष्य को समर्पित है। ऐसे में इस दिन अपने बच्चों को उन खतरों के बारे अगाह करना जरूरी है, जिसकी जद में वो आ चुके हैं, या फिर आगे चलकर आने वाले हैं। वो खतरा है-वर्चुअल दुनिया। इंटरनेट, सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेम्स बच्चों के जीवन का हिस्सा बनते जा रहे हैं। इंटरनेट जहां एंटरटेनमेंट , इनफॉरमेशन और दोस्ती का मौका देती है, वहीं इससे जुड़ी कई खतरनाक सच्चाइयां भी हैं, जिससे बच्चों को बचाना बहुत जरूरी है।
माता-पिता की लापरवाही और वर्चुअल दुनिया से जुड़े खतरे
आज के दौर में छोटी उम्र में ही हम बच्चों के हाथों में मोबाइल दे देते हैं। जिससे बच्चे धीरे-धीरे इसके आदी हो जाते हैं। वो इंटरनेट से जुड़ा बहुत ही जल्द सीख जाते हैं और फिर एंट्री करते हैं, वर्चुअल दुनिया में। यूके में किए गए एक सर्वे के अनुसार, 34% माता-पिता को यह नहीं पता कि उनके बच्चे कौन-कौन से ऑनलाइन अकाउंट्स का इस्तेमाल करते हैं, और 26% को नहीं मालूम कि बच्चे ऑनलाइन किन लोगों से बात करते हैं। कुछ माता-पिता इसे बच्चों की चालाकी मानते हैं तो कुछ कहते हैं कि इतनी सारी ऐप्स पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है। नतीजा यह कि बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर कंट्रोल न होने से वे कई बार साइबर बुलिंग, ऑनलाइन फ्रॉड या अजनबियों द्वारा धोखे के शिकार बन जाते हैं। भारत का भी यही हाल है। यहां पर कई माता-पिता के अकाउंट सिर्फ इसलिए खाली हो जाते हैं, क्योंकि उनका बच्चा ऑनलाइन गेमिंग के दौरान कोई ऐसा लिंक क्लिक कर देता है, जो मनी अकाउंट का एक्सेस दे देता है। कई बार वो अनजान को ओटीपी भी दे देते हैं।
कई बार तो सोशल मीडिया के इंफ्लूएंस में आकर वो गलत कदम भी उठा लेते हैं, जिसमें आत्महत्या या किसी की जान लेना भी शामिल हैं। इंटरनेट पर गलत कंटेंट बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना गहरा असर डाल सकता ये सबको पता है। सवाल है कि फिर बच्चे को वर्चुअल दुनिया के खतरों के बारे में कैसे बताएं। जवाब है, माता-पिता और टीचर को मिलकर इस दिशा में प्रयास करना होगा। सरकारों को इसे लेकर कानून भी बनाने होंगे।
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माता-पिता क्या कर सकते हैं
- बच्चों की सुरक्षा के लिए केवल कानून काफी नहीं है, माता-पिता को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
- ब्राउजर सेटिंग्स और पैरेंटल कंट्रोल्स का उपयोग करें ताकि बच्चे गलत साइट्स तक न पहुंच सकें।
- समय सीमा तय करें-जैसे कि रोज कितनी देर तक गेम खेल सकते हैं या सोशल मीडिया यूज कर सकते हैं।
- बातचीत करें, डांटें नहीं। बच्चों से ओपन-एंडेड सवाल पूछें और उन्हें अपनी बात कहने दें।
- विश्वास का रिश्ता बनाएं, ताकि अगर कभी बच्चा किसी ऑनलाइन समस्या में फंस जाए तो वह सबसे पहले माता-पिता से मदद मांग सके।
बातचीत ही है सबसे बड़ा हथियार
बच्चों से रेगुलर बातचीत करें। उनके लिए सिर्फ नियम नहीं बनाएं, उन्हें बताएं कि कैसे वर्चुअल वर्ल्ड उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। अपने अनुभव बताएं। उन्हें कुछ एग्जापल भी दें। रेगुलर अगर आप इस मुद्दे पर बातचीत करेंगे तो धीरे-धीरे वो वर्चुअल वर्ल्ड से दूरी बनाएंगे।
उन्हें यह भी बताएं कि वो ऑनलाइन अजनबियों से बातचीत ना करें। अपनी पर्सनल जानकारी ना शेयर करें। किसी भी परेशान करने वाले कंटेंट को तुरंत बताएं।
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