सार

साड़ी या लहंगे पर ब्रेस्ट एरिया को कवर करनेके लिए ब्लाउज पहना जाता है। इसके बैगर साड़ी और लहंगे का कोई महत्व नहीं है। यह महिलाओं के पहने जाने वाले परिधानों में एक सबसे अहम हिस्सा है। आइए जानते हैं ब्लाउज पहनने की शुरुआत कब से हुई थी।

लाइफस्टाइल डेस्क.साड़ी और ब्लाउज का इतिहास भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़ा है। साड़ी का प्रचलन प्राचीन समय से है, लेकिन ब्लाउज के साथ साड़ी पहनने की परंपरा ज्यादा पुरानी नहीं है। साड़ी को बैगर ब्लाउज के पुराने वक्त में लोग पहनते थे। लेकिन समय के साथ-ब्रेस्ट एरिया को कवर करने के लिए ब्लाउज चलन में आया।

पुरातात्विक मंदिर की प्रतिमाएं को देखकर यह समझने की कोशिश की गई कि किस तरह महिलाएं अपने अंग को ढकने की कोशिश करती थी। महिलाएं निचले शरीर को ढकने के लिए बिना सिले या बुने हुए कपड़े पहनती थीं। ब्रेस्ट एरिया को वो आंशिक रूप से कवर करती थीं। कई बार तो वो उपरी हिस्से को ऐसे ही खुला छोड़ देती थी या फिर आभूषण से उसे कवर करती थीं। यक्षियों, अप्सराओं और देवियों के सभी ग्रंथ में छपी तस्वीर या खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि महिलाएं शरीर के ऊपरी हिस्सों को ज्यादा नहीं ढकती थीं। कभी-कभी कमरबंद या भव्य आभूषणों से उन्हें ढका जाता है। माना जाता है कि सिली हुई चोली पहनना बहुत बाद की घटना है।

वैदिक काल में बिना ब्लाउज के महिलाएं साड़ी पहनती थीं

वैदिक काल में साड़ी को शरीर के चारों तरफ लपेटने की परंपरा थी। बिना ब्लाउज और पेटीकोट के वो इसे लपेटती थीं।इसे "अंतरीय" कहा जाता था और साड़ी को एक विशेष शैली में लपेटा जाता था, जो शरीर को ढकने का काम करती थी। लेकिन संस्कृति में बदलाव के साथ-साथ ऊपरी तन को भी ढकने का सिलसिला शुरू हुआ।

ब्रिटिश काल में आया बदलाव 

मध्यकालीन समय में महिलाएं ऊपरी हिस्से को ढकना शुरू कर दिया। वो कपड़े से ब्रेस्ट एरिया को बांधती थीं। जिसे "स्तनपट्ट" कहा जाता था। ब्रेस्ट को काफी टाइट कपड़े से बांधा जाता था ताकि स्तन फ्लैट लगगे। लेकिन भारतीय महिलाओं के पहनावे में अहम बदलाव ब्रिटिश उपनिवेश काल से शुरू हुआ। ब्रिटिश महिलाएं पूरे कपड़े पहनती थीं। फुल पोशाक से वो अपने संपूर्ण अंग को कवर करती थीं। जिसे देखकर भारत की महिलाओं ने भी इंस्पिरेशन लिया। समाज सुधारक और महिलाओं के अधिकारों के समर्थक जैसे कि ज्योतिराव फुले और राजा राममोहन राय ने महिलाओं के लिए सम्मानजनक कपड़े पहनने की पैरवी की, जिससे ब्लाउज पहनने का प्रचलन बढ़ा। औपनिवेशिक काल में महिलाएं साड़ी के साथ ब्लाउज और पेटीकोट का उपयोग करने लगीं।

बिना ब्लाउज साड़ी की अब कल्पना नहीं

धीरे-धीरे महिलाएं ब्लाउज को अलग-अलग कट में करके सिलने लगीं। आधुनिक युग में ब्लाउज के नीचे ब्रा पहनने की शुरुआत हुई। आज साड़ी के साथ-साथ अलग-अलग डिजाइन के ब्लाउज बनने लगे हैं। जो साड़ी के पूरे लुक तो चेंज कर देते हैं।

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