सार

राजस्थान के कोटा में यूपी के मेडिकल स्टूडेंट ने अपनी जिंदगी अपने ही हाथों खत्म कर लीं। जिस तरह से उसने सुसाइड किया वो आपको दहलाकर रख देगा। कमरे में पुलिस को एक सुसाइड नोट भी मिला है जिसे पढ़कर आंखों से आंसू निकल पड़ेंगे। 

रिलेशनशिप डेस्क. सॉरी! मैंने जो भी किया है अपनी मर्जी से किया है...तो प्लीज मेरे दोस्त और पैरेंट्स को नहीं परेशान करें। हैप्पी बर्थ डे पापा..ये नोट लिखकर यूपी के मेडिकल स्टूडेंट ने अपनी सांसों को रोक दिया। यूपी के रामपुर जिले में रहने वाला मनजोत कोटा में डॉक्टर बनने की पढ़ाई करने गया था। लेकिन अब वहां से उसकी लाश माता-पिता लेकर आएंगे। सोचिए उस माता-पिता के बारे में जो ना जाने कितनी मेहनत करके मनजोत को वहां पढ़ने के लिए भेजा होगा। ये भी सोचिए कि आखिर छात्र क्यों तनाव नहीं झेल पा रहे हैं। इस साल कोटा में अब तक 19 स्टूडेंट मौत को गले लगा चुके हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अप्रैल में 18 साल का मनजोत कोटा मेडिकल की तैयारी करने गया था। लेकिन चार महीने में ही वो तनाव से इतना कमजोर हो गया कि सुसाइड कर ली। वो भी इस तरह की जानकर रुह कांप जाए। पहले तो उसने फांसी लगाने की कोशिश की। लेकिन कोटा में हॉस्टल वाले बढ़ते सुसाइड केस को देखते हुए स्प्रिंग वाले पंखे लगाने लगे हैं। जो दबाव पड़ते ही नीचे आ जाता है। इसके बाद मनोज ने अपने पूरे मुंह पर पॉलीथिन बांधी और हाथ पीछे से बांध लिए। दम घुटने की वजह से उसकी मौत हो गई।

ऐसी घटना सिर्फ फैमिली के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चोट पहुंचाने वाली है। पढ़ने, खेलने और तनावमुक्त होकर जिंदगी जीने वाले उम्र में बच्चे आखिर सुसाइड क्यों कर रहे हैं। मनोवैज्ञानिक की मानें तो बढ़ते कंपटीशन बच्चों को डिप्रेशन, अकेलापन और तनाव की तरफ धकेलती है। बहुत जरूरी है कि माता-पिता के साथ-साथ समाज को भी इस पर विचार करने की।

दोस्त बनकर बच्चों से पैरेंट्स करें बात

कई घरों में देखा गया है कि माता-पिता अपने बच्चों पर उम्मीदों का इतना बोझ डाल देते हैं कि वो सहन नहीं कर पाते हैं। भला का बच्चा ये कर लिया...उसने वो कर लिया..तुम भी कर सकते हो। अरे तुम्हारा नंबर इतना कम क्यों आया..इतना सुविधा तो तुम्हें मुहैया करा रहे हैं..ना जाने कितनी बातें वो बच्चों को बोलते हैं। जिसकी वजह से बच्चा एक्स्ट्रा प्रेशर में आ जाता है। ताने और दुत्कार उनके मन में घर कर जाता है। युवावस्था में बच्चों के हार्मोन में कई बदलाव आते हैं जिसकी वजह से छोटी बात भी उनके मन में घर कर जाती है। ऐसे में माता-पिता को संभलकर उनसे बात करनी चाहिए। माता-पिता को दोस्त बनकर उन्हें समझाना चाहिए। अगर बच्चा बेहतर भी नहीं कर पा रहा है तो ताने मारने की बजाय उन्हें और मेहनत करने की शिक्षा दें। इतना ही नहीं बच्चे पर पढ़ाई का दबाव भी बनाना सही नहीं है।

बच्चे के मन खुद के लिए पैदा करें इज्जत

ज्यादातर माता-पिता बच्चों की क्षमता से ज्यादा उम्मीद कर बैठते हैं। दूसरों से उसकी तुलना करने लगते हैं। जो कि बिल्कुल गलत है। बच्चा की हर हरकत पर नजर रखें। अगर वो अकेला और शांत है तो उसे बिल्कुल वैसा मत छोड़िए। उससे बातें कीजिए। अगर आप बच्चे के दोस्त बन जाएंगे। उन्हें बताएं कि वो जैसा है सबसे बेहतर है। उसे अपनी कमजोरी पर काबू करना सिखाए। यकीन मानिए जिस दिन आप अपने बच्चे के दोस्त बन जाएंगे वो इस तरह का बुरा ख्याल मन में लाने की सोचेगा भी नहीं।

बच्चे को दूर भेजने से पहले सीखाएं ये बातें

जब बच्चा पढ़ाई के लिए माता-पिता से दूर आता है तो छोटी-छोटी बातें उसे परेशान करने लगती है। रिजल्ट देने का प्रेशर अलग ही होता है।पढ़ाई का दबाव, खाना-पीना सही नहीं मिलना और अकेलापन समेत कई चीजें उन्हें परेशान करती हैं। बच्चों को बाहर भेजते वक्त पैरेंट्स को बताना चाहिए कि वो मन लगाकर पढ़े, लेकिन तनाव के साथ नहीं। रिजल्ट जो भी होगा वो उनके साथ हमेशा हैं।

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