सार

इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति ने बच्चों के साथ 3.30 घंटे बिताने की सलाह देकर बहस छेड़ दी है, खासकर जब उन्होंने खुद 70 घंटे काम करने की वकालत की थी। क्या यह सलाह आज के व्यस्त माता-पिता के लिए व्यावहारिक है?

रिलेशनशिप डेस्क. इंफोसिस के को-फाउंडर नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति गुड पैरेंटिंग को अक्सर टिप्स देते नजर आते हैं। बतौर पैरेंट्स उन्होंने अपने बच्चों को कितना टाइम दिया और किस तरह से उनकी परवरिश की, वो अपना अनुभव साझा करते हैं। लेकिन कभी-कभी नारायण मूर्ति अपने बयान की वजह से ट्रोलर्स के निशाने पर आ जाते हैं।

इंफोसिस के को-फाउंडर वर्किंग आवर के बयान को लेकर ट्रोल हो ही रहे थे कि इस बीच उन्होंने बच्चों को कितना वक्त देना चाहिए इसपर बोलकर चर्चा में आ गये हैं। दरअसल, नारायण मूर्ति ने बेंगलुरु में 9 सितंबर को एक इवेंट में कहा कि बच्चों की पढ़ाई के लिए घर में डिसिप्लिन इनवर्मेंट होना चाहिए। इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी माता-पिता पर है। पैरेंट यह उम्मीद करते हुए फिल्में नहीं देख सकते हैं कि बच्चे अपने स्टडी में ध्यान लगाएं। उन्होंने कहा कि वो और उनकी पत्नी सुधा मूर्ति अपने बच्चों के स्कूलिंग के दौरान उनके लिए बहुत वक्त निकालते थे। हर दिन बच्चों के साथ पढ़ने के लिए 3.30 घंटे वक्त निकालते थे। हालांकि नारायण मूर्ति का यह कथन सही है। सवाल है कि फिर उन्हें ट्रोल क्यों किया जा रहा है।

70-72 घंटे काम करने की वकालत की थी नारायण मूर्ति नें

ट्रोल करने के पीछे की वजह है उनका दूसरा बयान जिसमें उन्होंने सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह वर्किंग लोगों को दी थी। उन्होंने पिछले साल कहा था कि 70-72 घंटे लोगों को काम करना चाहिए। पहले और अब वाले बयान को जोड़कर लोग नारायण मूर्ति को ट्रोल कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, 'अगर 14 घंटे काम करूं, फिर 3.5 घंटे बच्चों के साथ पढ़ाई करूं, डेढ घंटा हमें ऑफिस आने जाने में लग जाता है तो फिर खाना बनाने, खाने और सोने का समय कब मिलेगा।' वहीं एक यूजर ने लिखा,'उस समय टेक्नोलॉजी नहीं थी, इसलिए वो ऐसी बातें कर रहे।' वहीं एक अन्य सोशल मीडिया यूजर ने लिखा,'यदि लोग सप्ताह में 72 घंटे काम करना शुरू कर देंगे जैसा कि मूर्ति ने 2023 में वकालत की थी, तो क्या अपने बच्चों के साथ समय बिताना संभव होगा?'

क्या वाकई बच्चों के साथ इतना वक्त गुजारना संभव है?

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नारायण मूर्ति का यह बयान उन माता-पिता के लिए नाराजगी का कारण बन सकती है जो 9-5 की ड्यूटी करते हैं। ऑफिस में काम के बढ़ते घंटे उनकी निजी जिंदगी पर भी असर डालने लगी है। वो बच्चों को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते हैं। छोटे बच्चों को नैनी के भरोसे छोड़कर जाते हैं। काम के लोड से वो इतना थक जाते हैं कि बच्चों के साथ खेल नहीं पाते हैं। ऐसे लाखों माता-पिता हैं जो ऑफिस में चुपचाप अपने बच्चों को अनदेखा करते हुए काम करते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि लोग गैर-पेशेवर के रूप में ना देखें। महिलाएं जब ऑफिस में अपने बॉस से कहती हैं कि बच्चा बीमार है, या उसके स्कूल में जाना है तो कई बार उन्हें दो टूक में कह दिया जाता है कि आप फिर घर और बच्चे ही संभालिए।

वर्किंग पैरेंट्स का गुस्सा होना लाजमी

आप उन कर्मचारी के हताशा की कल्पना करें जो अपने बच्चों के साथ वक्त नहीं गुजार सकते हैं। क्योंकि बॉस उनसे सवाल ना करें, उन्हें नौकरी से निकालने की धमकी ना दें। इसलिए, जब नारायण मूर्ति जैसे बड़े लोग माता-पिता को गलतियों से बचने की सलाह देते हैं तो यह चीज कामकाजी पैरेंट्स को गुस्सा जरूर दिला सकती है। वो काम के बोझ से दबे हैं तो उनके पैरेंटिंग टिप्स को कैसे फॉलो कर सकते हैं।

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