सार
बुंदेलखंड के लोकप्रिय लोकगीत गायक देशराज पटेरिया का शानिवार को सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। 67 साल की उम्र में उन्होंने छतरपुर में अंतिम सांस ली। पटेरिया को बुंदेलखंड की शान माना जाता था। उनके निधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर शोक व्यक्त किया।
भोपाल (मध्य प्रदेश). बुंदेलखंड के लोकप्रिय लोकगीत गायक देशराज पटेरिया का शानिवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। 67 साल की उम्र में उन्होंने छतरपुर के अस्पताल में अंतिम सांस ली। पटेरिया को बुंदेलखंड की शान माना जाता था। उनके निधन पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर शोक व्यक्त किया। पटेरिया का अंतिम संस्कार भैंसासुर मुक्तिधाम में किया जाएगा।
घर गाए जाते थे उनके लोकगीत
बता दें कि पटेरिया के गाए लोकगीत बुंदेलखंड घर-घर सुने और गाए जाते थे, खासकर आल्हा और हरदौल की वीरता के लोकगीत बेहद लोकप्रिय हुए थे। लोकगीत सम्राट पटेरिया का जन्म जन्म 25 जुलाई 1953 में छतरपुर जिले के तिटानी गांव में हुआ था। वह अपने पीछे पत्नि, एक पुत्र विनय पटेरिया को छोड़ गए है।
सीएम ने ट्वीट कर कही ये बात
अपनी अनूठी गायकी से बुंदेली लोकगीतों में नये प्राण फूंक देने वाले श्री देशराज पटेरिया जी के रूप में आज संगीत जगत ने अपना एक सितारा खो दिया। सीएण ने कहा- वो किसान की लली... मगरे पर बोल रहा था...जैसे आपके सैकड़ों गीत संगीत की अमूल्य निधि हैं। आप हम सबकी स्मृतियों में सदैव बने रहेंगे। ॐ शांति!
4 दिन पहले अस्पताल में हुए थे भर्ती
पटेरिया पिछले 4 दिनों से छतरपुर के मिशन अस्पताल में भर्ती थे। बुधवार शाम देशराज पटेरिया को दिल का दौरा पड़ा था। जिसके बाद इलाज के लिए उन्हें यहां एडमिट किया गया था। इलाज के दौरान शनिवार की सुबह 3.15 बजे उनको दोबारा दिल का दौरा पड़ा और उनकी हृदय गति रुक गई।
10 हजार से भी ज्यादा लोकगीत गाए
पटेरिया ने साल 1972 में मंचों पर लोकगीत गाना शुरू किया था। लेकिन उनको असली पहचान 1976 में छतरपुर आकाशवाणी से मिली। उस दौरान उनका गायन आकाशवाणी से प्रसारित होने लगा था। जिसके बाद धीरे-धीरे पूरे बुंदेलखंड और देश में उनकी पहचान हो गई। उन्होंने करीब 10 हजार से भी ज्यादा लोकगीत गाए।
दिन में करते थे नौकरी, रात में गाते थे गाना
पटेरिया ने हायर सेकेंडरी पास करने के बाद प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिग्री हासिल की। जिसके बाद उनकी स्वास्थ्य विभाग में वह नौकरी लग गई। लेकिन नौकरी में उनका मन नहीं लगता था, इसलिए वह दिन में ड्यूटी करते और रात में बुंदेली लोकगीत और भजन गाते थे।