सार
इंदौर से एक इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली तस्वीर सामने आई है। जहां एक अस्पताल में स्ट्रेचर पर पड़ा-पड़ा शव कांकाल बन गया। लेकिन किसी ने इस डेडबॉडी की सुध तक नहीं और ना ही उसका अंतिम संस्कार करवाया। हद तो तब हो गई जब बदबू फैलने के बाद भी किसी ने इस ओर ध्यान तक नहीं दिया।
इंदौर. (Madhya Pradesh). 1954 में एक फिल्म आई थी नास्तिक। उसमें एक गाना था...देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान...। इंदौर के एक बड़े सरकारी अस्पताल की तस्वीर ने आज वो गाना याद दिला दिया। इंदौर के सरकारी अस्पताल एमवाय से आई एक तस्वीर ने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है। घटना इतनी मार्मिक है कि लिखते हुए भी हाथ कांप रहा है। थोड़ी बहुत इंसानियत जो बची थी, वो भी लगता है खत्म हो गई है। घटना कुछ यूं है कि एमवाय अस्पताल में स्ट्रेचर पर एक शव इस उम्मीद में रखा गया था कि जल्द उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। इस इंतजार में 10 से 12 दिन बीत गए और शव कंकाल में बदल गया। हद तो तब हो गई, जब अगल-बगल से गुजरने वाले लोग भी इंसानियत को सीने में दफन कर आगे बढ़ते गए। नाक बंद कर हर कोई इसे नजरअंदाज करता चला गया। भयानक बदबू, फिर भी किसी के अंदर इंसानियत की लौ नहीं जली।
किसका है यह शव किसी को पता नहीं
यह शव किसका है और कौन इसको लेकर आया इस बारे में अस्पताल का कोई भी कर्मचारी और अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है। सवाल यह उठता है कि जहां पर धरती के भगवान बसते हैं, वहां इतनी निर्ममता कैसे हो सकती है। हॉस्पिटल अधीक्षक डॉ. पीएस ठाकुर का कहना है कि जो भी इस मामले में दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। हॉस्पिटल प्रबंधन अपने स्तर पर घटना की जांच कर रहा है।
ना युवक की पहचान ना किया अंतिम संस्कार
एमवाय में करीब 15 से 16 फ्रीजर हैं, जहां पर शव रखे जाते हैं। अगर कोई अज्ञात शव पुलिस बरामद करती है तो उसे पीएम के लिए यहीं रखवाया जाता है। तीन से चार दिन बाद उसकी पहचान करके नगर निगम या एनजीओ द्वारा उसका अंतिम संस्कार करवा दिया जाता है। लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मीडिया द्वारा तस्वीर वायरल करने पर अस्पताल प्रबंधन ने आनन-फानन में कंकाल बन चुके शव को वहां से हटा दिया।
यहां आती हैं सबसे ज्यादा डेडबॉडी
डॉ. डॉक्टर ठाकुर का कहना है कि कोरोना कॉल हमारे पास नॉर्मल और कोविड दोनों तरह के शव आ रहे हैं। जगह कम पड़ रही है। शहर में कहीं भी डेथ होती है तो उसका शव यहां पहुंचा दिया जाता है। रोज हॉस्पिटल में 20 से 22 मौत होती हैं और फ्रीजर 16 ही हैं। फ्रीजर के लिए प्रशासन को पत्र लिखा जा चुका है।