सार
, राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान जब राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जब कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह का नाम आया तो सदन में मौजूद सभी सांसद ठहाके लगाने लगे। इस पर सभापति ने कहा कि मैंने कुछ नया नहीं किया ।
भोपाल/दिल्ली. कभी एक ही पार्टी कांग्रेस में रहने वाले दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्यस सिंधिया का आज सामना राज्यसभा में हुआ। जहां इस वक्त किसान आंदोलन के मुद्दे पर चर्चा चल रही है। बहस के बीच जब बीजेपी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जब कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह का नाम आया तो राज्यसभा में ठहाके लगने लगे। सभापति से लेकर सभी पार्टियों के सांसद मुस्कुराते हुए नजर आए। जानिए आखिर ऐसा क्या संवाद हुआ था...
दिग्विजय-सिंधिया को लेकर सभापति ने कहा मैंने कुछ नहीं किया
दरअसल, राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान जब राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जब कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह का नाम आया तो सदन में मौजूद सभी सांसद ठहाके लगाने लगे। इस पर सभापति ने कहा कि मैंने कुछ नया नहीं किया है, जो सूची में था मैंने उसी के हिसाब से नाम लिया है।
सिंधिया ने की मोदी की तारीफ, दिग्विजय बोले- वाह महाराज वाह
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कोरोना महामारी को लेकर अपने स्पीच के दौरान मोदी सरकार की जमकर तारीफ की। इसी दौरान दिग्विजय और सिंधिया के बीच मजेदार संवाद हुआ है। जहां सिंधिया के स्पीच खत्म होते ही दिग्विजय सिंह की बारी आई।
दिग्विजय ने सिंधिया को बधाई देते हुए कहा कि मैं आपको बधाई देता हूं कि यूपीए सरकार के दौरान भी सदन में आप इतनी ही मजबूती के साथ पक्ष रखते थे। अब बीजेपी में भी उतनी मजबूती से अपना पक्ष रख रहे हैं। वाह जी महाराज वाह। इस पर सिंधिया ने उनके सामने हाथ जोड़ लिए और मुस्कुराते हुए कहा कि आपका ही आशीर्वाद है। दिग्विजय ने कहा, हमारा आशीर्वाद आपके साथ है और हमेशा बना रहेगा। इसी बात सिंधिया ने बस इसी बात पर सदन में जमकर ठहाके लगे।
दोनों रहें एक-दूसरे के विरोधी
बता दें कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक समय कांग्रेस में रहते हुए भी साथ नहीं रहे हैं। दोनों नेताओं के बीच गुटबाजी हावी शुरू से ही रही है। क्योंकि वह एमपी की राजनीति में पावर के दो केंद्र रहे हैं। जो दिग्विजय और सिंधिया एक-दूसरे को मात देने में लगे रहते थे। दोनों ही राजा-महाराजा परिवार से आते हैं, इसलिए उनका अपना-अपना गढ़ है। कुछ राजनीतिज्ञ जानकारों का कहना है कि इसी वजह से मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों से कांग्रेस सत्ता में नहीं रह पाई।