सार
मुरारी ने जिस दुकान से मोबाइल खरीदा, वहां से वह अपने घर तक ढोल, बाजे, बग्घी और आतिशबाजी के साथ नाचते गाते हुए अपने घर ले गया। मुरारी ने बताया कि घर में पहली बार मोबाइल आया तो दुकानदार की दुकान से ढोल धमाके, शहनाई बजाते हए अपने घर मोबाइल लेकर आया, उसके बाद अपने दोस्तों को घर पर पार्टी दी।
शिवपुरी। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के शिवपुरी (Shivpuri) में मंगलवार को एक पिता ने अपनी प्यारी बेटी की ख्वाहिश कुछ इस अंदाज में पूरी की कि जिसने भी देखा दिल से वाह कर उठा। आपने अभी तक शादी समारोह और राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ढोल, बाजे, भांगड़ा, बग्घी, आतिशबाजी और नाच-गाने का आनंद लेते हुए लोगों को देखा होगा, लेकिन शिवपुरी शहर के नीलगर चौराहा, पुरानी शिवपुरी के मुरारी चाय वाले ने बाजार से एक नया मोबाइल 12500 रुपए में खरीदा तो मुरारी के अंदर मोबाइल खरीदने की खुशी इतनी थी कि आप इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
मुरारी ने जिस दुकान से मोबाइल खरीदा, वहां से वह अपने घर तक ढोल, बाजे, बग्घी और आतिशबाजी के साथ नाचते गाते हुए अपने घर ले गया। मुरारी ने बताया कि घर में पहली बार मोबाइल आया तो दुकानदार की दुकान से ढोल धमाके, शहनाई बजाते हए अपने घर मोबाइल लेकर आया, उसके बाद अपने दोस्तों को घर पर पार्टी दी। पैसे कम होने के कारण बच्ची की इच्छा पूरी करने मोबाइल को फाइनेंस कराया है। मुरारी कहते हैं कि उन्होंने 5 साल की अपनी बेटी से वादा किया था कि जब वो नया मोबाइल फोन दिलाएंगे तो पूरा शहर देखेगा। आज वो दिन आ गया।
जिसने देखा- कह उठा वाह!
इस दृश्य को देख शहर के लोग काफी अचंभित हो रहे थे और बोल रहे थे कि मुरारी की चाय जैसे स्पेशल है, वैसे ही मुरारी का मोबाइल लाने की स्टाइल भी स्पेशल है। मुरारी कुशवाह ने बताया कि मेरी 5 साल की बच्ची है वो मुझसे दो साल से बोल रही थी कि पापा आप शराब पीना कम कर दो। मेरे लिए उन पैसों से एक मोबाइल दिला देना तो मैंने बच्ची से बोला था कि बेटा चिंता मत करो हम ऐसा मोबाइल लाएंगे कि पूरा शहर देखता रह जाएगा।
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ऐसे ही होते हैं पिता
कभी नरम तो कभी गरम अंदाज में बच्चों को अनुशासन और व्यवहारिकता का पाठ पढ़ाने वाले पापा ही नई पीढ़ी के सपनों को पंख फैलाने का आसमान देते हैं। इसी खुले आकाश में आज बेटियां बेहिचक उड़ान भर रही हैं। इस बदलाव के दौर में पापा एक मजबूत ढाल बन रहे हैं। हर घर में बेटियां पिता की लाडली होती हैं। वैसे भी अक्सर यही कहा जाता है कि बेटे मां के करीब होते हैं तो बेटियां अपने पापा के ज्यादा करीब होती हैं। पापा की परी और घर में सबसे प्यारी, बड़ा गहरा चाव और लगाव होता है बाप-बेटी का तभी तो उम्र के हर पड़ाव पर पापा उनके लिए खास भूमिका निभा रहे होते हैं। कभी बचपन में हर खेल में जीत दिलाने वाले सुपरमैन के रोल में होते हैं तो कभी बिटिया की विदाई के समय बच्चों की तरह फूट फूटकर रोते हैं। पढ़ाई या नौकरी के लिए घर से दूर जा रही बेटी अपने लिए सबसे ज्यादा भरोसा और उम्मीद पिता की आंखों में ही देखती है। ऐसा ही होता है पापा का मन, जो प्रेम दिखाता तो नहीं पर निभाता जरूर है।
इनपुट- संजय बैचेन, शिवपुरी।