सार
नगालैंड हिंसा के बाद पूर्वोत्तर राज्यों से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) को हटाने की मांग तेज हुई है. इसी बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि नगालैंड हिंसा को लेकर केंद्र ने एक कमेटी गठित की है, जो 45 दिनों के अंदर में अपनी रिपोर्ट सौंपगी और रिपोर्ट आने के बाद नगालैंड में कुछ सकारात्मक घटनाक्रम होने की उम्मीद है। विस्तार से पढ़ें पूरी खबर..
गुवाहाटी : नगालैंड में हुई हिंसा के बाद आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) को निरस्त करने की मांग तेज हुई है. इसी बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने AFSPA को लेकर बड़ा संकेत दिया है। दरअसल, उन्होंने कहा कि इस साल AFSPA को लेकर कुछ सकारात्मक घटनाक्रम देखने को मिल सकते है। सरमा के इस बयान को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.
अमस में कमजोर पड़ा उग्रवाद
पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि असम में उग्रवाद कमजोर पड़ गया है और पांच-छह जिलों को छोड़कर राज्य से सेना हटा ली गई है और जब इस वर्ष AFSPA की समीक्षा की जाएगी, तब गृह मंत्रालय के परामर्श से असम सरकार कोई व्यावहारिक निर्णय लेगी।
नगालैंड में सकारात्मक घटनाक्रम होने की उम्मीद
नागालैंड में AFSPA पर सरमा ने कहा कि केंद्र ने एक कमेटी गठित की गई है,, जो 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। रिपोर्ट आने के बाद नगालैंड में कुछ सकारात्मक घटनाक्रम होने की उम्मीद है।
क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि नगालैंड (Nagaland) के मोन जिले में चार दिसंबर और उसके अगले दिन उग्रवाद विरोधी अभियान और जवाबी हिंसा में कम से कम 14 नागरिक मारे गए और एक सैनिक भी मारा गया था। सुरक्षा बलों के एनकाउंटर में आम नागरिकों के मारे जाने के बाद पूरे देश में सवाल उठने लगे थे। संसद में गृह मंत्री को इस नरसंहार पर जवाब देना पड़ा था। इस मामले में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (court of inquiry) बैठा दी गई है। इस इंक्वायरी का इंचार्ज मेजर जनरल रैंक (Major General rank) के अधिकारी को बनाया गया है। जांच अधिकारी, नॉर्थईस्ट सेक्टर में तैनात हैं।
क्या है AFSPA
आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट यानी AFSPA नागालैंड में कई दशकों से लागू है। 1958 में संसद ने यह एक्ट लागू किया था। इसके तहत सैन्य बलों को विशेष अधिकार हासिल होता है। इस कानून के तहत सेना के जवान कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली भी चला सकते हैं। यह कानून असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था। समय- समय पर इसे लेकर विरोध होते रहे हैं।
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