सार
इसरो का चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) अब चंद्रमा से मात्र 25 किलोमीटर दूर है। यह 25 km x 134km की कक्षा में चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है। 23 अगस्त को यह चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग करेगा।
नई दिल्ली। भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा चंद्रमा पर लैंडिंग के लिए भेजा गया चंद्रयान-3 अब चांद की सतह से मात्र 25 किलोमीटर दूर है। रविवार को चंद्रयान ने अपने दूसरे और अंतिम डीबूस्टिंग ऑपरेशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इससे यह चांद की 25km x 134 km की कक्षा में पहुंच गया। यह 23 अगस्त को चांद की सतह पर उतरने की तैयारी कर रहा है।
चंद्रयान-3 अब आने वाले दिनों में चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग के करीब पहुंच गया है। इसरो ने शुक्रवार को पहला डीबूस्टिंग ऑपरेशन चलाया था। इससे चंद्रयान 113x157 किलोमीटर की कक्षा में पहुंच गया था। दरअसल, डीबूस्टिंग ऑपरेशन के दौरान अंतरिक्ष यान के इंजन का इस्तेमाल रफ्तार कम करने में किया जाता है। इसके साथ ही उसके कक्षा की ऊंचाई भी कम की गई है।
चांद के दक्षिण ध्रुव पर लैंड करेगा चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 भारत के चंद्रयान सीरीज का तीसरा मिशन है। इससे पहले इसरो ने चंद्रयान वन और चंद्रयान टू भेजा था। चंद्रयान वन को 2008 में लॉन्च किया गया था। इसे चंद्रमा के करीब जाकर उसके चक्कर लगाना था। यह मिशन पूरी तरह सफल रहा था। इसने चंद्रमा पर पानी की खोज की थी। इसरो के 2019 में चंद्रयान-2 लॉन्च किया था। इसे चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करना था। यह मिशन पूरी तरह सफल नहीं हुआ था। लैंडिंग के दौरान चंद्रयान से संपर्क टूट गया था। इसके बाद इसरो ने चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरने के लिए चंद्रयान-3 को भेजा है।
चांद की सतह पर खोजबीन करेगा चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 के साथ एक रोवर भेजा जा रहा है। यह चांद की सतह पर खोजबीन करेगा। इससे चंद्रमा की संरचना, भूविज्ञान और संभावित संसाधनों के बारे में खोज की जाएगी। यह मिशन सफल रहता है तो भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा देश होगा जो चांद पर उतरने में सफल होगा। अभी तक किसी भी देश ने चांद के दक्षिण ध्रुव पर लैंडिंग नहीं की है। भारत से रेस लगाते हुए रूस ने अपने मून मिशन को लॉन्च किया है। रूस ने अपने अंतरिक्षयान लूना-25 को चांद के दक्षिण ध्रुव पर लैंड करने के लिए भेजा है।
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चंद्रयान-3 मिशन ने न केवल भारतीय जनता बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। यह मिशन सफल रहता है तो अंतरिक्ष में खोज के मामले में भारत की स्थिति मजबूत होगी। इसके साथ ही चांद के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी।
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