सार
हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन, जोकि दुमका से झामुमो विधायक हैं, पर आरोप लगा है कि वह एक खनन कंपनी में पार्टनर है और उन्होंने यह जानकारी छिपाई है। बीजेपी ने चुनाव आयोग में याचिका दायर कर उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग की है।
नई दिल्ली। झारखंड में राजनीतिक उथल-पुथल लगातार जारी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता का मामला अभी निपटा नहीं है कि उनके भाई का विधानसभा सदस्यता भी खतरे में पड़ गया है। लाभ के पद के मामले में बसंत सोरेन को लेकर चुनाव आयोग ने अपनी राय राज्यपाल रमेश बैस को भेज दिया है। बसंत, दुमका से विधायक हैं। पिछले एक पखवारे से हेमंत सोरेन सरकार को लेकर घमासान मचा हुआ है।
आयोग ने कहा-पूरे प्रकरण पर संवैधानिक पक्ष भेजा गया
भारत निर्वाचन आयोग नई दिल्ली के सूत्रों ने बताया कि बसंत सोरेन पर आयोग ने अपनी राय भेज दी है। बंद लिफाफा में झारखंड के राज्यपाल को चिट्ठी भेजी गई है जिसमें बसंत सोरेन की सदस्यता की योग्यता-अयोग्यता को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब के साथ ही आयोग ने नियम सम्मत राय दी है। अब राज्यपाल रमेश बैस, आयोग का स्टैंड जानने के बाद उनकी सदस्यता को लेकर फैसला ले सकते हैं। झारखंड राजभवन से यह पुष्टि हो गई है कि राज्यपाल को बसंत सोरेन से संबंधित आयोग का पत्र मिल चुका है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, हेमंत सोरेन ने कथित तौर पर मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य के पत्थर खनन का पट्टा अपने नाम पर कर लिया था। इन आरोपों का सामना अभी हेमंत सोरेन कर ही रहे थे कि उनके भाई बसंत सोरेन, जोकि दुमका से झामुमो विधायक हैं, पर आरोप लगा है कि वह एक खनन कंपनी में पार्टनर है और उन्होंने यह जानकारी छिपाई है। कंपनी का निदेशक होने की वजह से वह लाभ के पद के दायरे में आ रहे हैं। इन आरोपों पर बीजेपी ने दोनों भाईयों हेमंत सोरेन व बसंत सोरेन को जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों के तहत विधानसभा में अयोग्य घोषित करने की मांग की है।
अभी तक हेमंत सोरेन को लेकर भी फैसला नहीं ले सके राज्यपाल
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता को लेकर अभी तक सस्पेंस बरकरार है। चुनाव आयोग की चिट्ठी आने के बाद भी राजभवन यह निर्णय नहीं ले सका है कि हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता जाए या नहीं। हालांकि, राज्यपाल रमेश बैस दिल्ली में सत्ता के गलियारों में लगातार दिखाई दे रहे हैं।
झारखंड सरकार ने राज्यपाल पर लगाया बड़ा आरोप
उधर, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में राज्यपाल द्वारा देरी किए जाने को यूपीए सरकार ने जानबूझकर देरी करार दिया है। झारखंड के झामुमो, कांग्रेस व राजद इकाई ने संयुक्त बयान देकर राज्यपाल पर सरकार को अस्थिर करने और विधायकों की खरीद-फरोख्त को मौका देने का आरोप लगाया है। सोरेन सरकार का आरोप है कि बीजेपी द्वारा कांग्रेस, झामुमो व राजद के विधायकों को खरीदने का प्रयास किया जा रहा है। इसी अंदेशा की वजह से यूपीए के विधायकों को छत्तीसगढ़ शिफ्ट किया गया था। हालांकि, कुछ ही दिन में सभी विधायकों को विधानसभा के स्पेशल सेशन में लाया गया और हेमंत सोरेन ने अप्रत्याशित रूप से विश्वास मत लाया और उसे हासिल भी कर लिया। यूपीए का झारखंड में पूर्ण बहुमत से सरकार है। झारखंड के 81 विधायकों वाले सदन में झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के पास 18 विधायक हैं। राष्ट्रीय जनता दल का एक विधायक है। वहीं, मुख्य विपक्षी दल भाजपा के 26 विधायक हैं।
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