दिल्ली के लाल किला क्षेत्र में हुए घातक विस्फोट की जांच अब धन के गहरे और गुमनाम रास्तों तक जा पहुंची है-जहां हवाला नेटवर्क, डॉक्टरों का ‘व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल’ और 26 लाख की संदिग्ध फंडिंग कई नए सवाल खड़े कर रही है।
नई दिल्ली। दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए भयानक विस्फोट ने पूरे देश को हिला दिया है। धीरे-धीरे चल रही एक कार में ऐसा धमाका हुआ कि 13 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और कई घायल हो गए। यह घटना सिर्फ एक हादसा नहीं थी बल्कि यह एक सोच-समझकर की गई प्लानिंग का हिस्सा लग रही है, जिसकी परतें अब एक-एक कर खुल रही हैं। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों को अब शक है कि इस पूरे ऑपरेशन को हवाला नेटवर्क के जरिए फंड किया गया था। यानी पैसे गुप्त रास्तों से भेजे गए थे, जिनका कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं मिलता। मुख्य आरोपी डॉ. उमर नबी को कथित तौर पर करीब 20 लाख रुपये भूमिगत चैनलों के माध्यम से मिले थे। सूत्रों के अनुसार, इतना ही नहीं, जांच में यह भी सामने आया है कि डॉक्टरों के एक समूह ने मिलकर कुल 26 लाख रुपये इकट्ठा किए थे। इसी रकम से धमाके में इस्तेमाल उर्वरक और दूसरे रसायनों की खरीद हुई थी। इतना पैसा अचानक कहां से आया? इसकी जांच अब तेज कर दी गई है।
क्या दिल्ली विस्फोट की फंडिंग हवाला नेटवर्क से हुई?
जांच एजेंसियों ने कई हवाला डीलरों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। शुरुआती संकेत बताते हैं कि विस्फोट के लिए जरूरी सामान खरीदने और हमले की प्लानिंग के लिए इसी पैसों का इस्तेमाल हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली ब्लास्ट से ठीक कुछ घंटे पहले हरियाणा के फरीदाबाद में 2,900 किलो विस्फोटक बरामद हुआ था और तीन डॉक्टरों को गिरफ्तार किया गया था। यह संयोग है या पूरी तरह जुड़ा हुआ नेटवर्क? यह अभी जांच का सबसे बड़ा सवाल है।
आखिर 26 लाख रुपये आए कहां से? क्या हवाला ने निभाई बड़ी भूमिका?
जांच के दौरान जिसका नाम सबसे ज्यादा सामने आ रहा है, वह है हवाला नेटवर्क। कई हवाला डीलरों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है। एजेंसियों का मानना है कि दिल्ली विस्फोट मॉड्यूल को मिलने वाली ज्यादातर रकम हवाला के जरिए ही भेजी गई हो सकती है। हवाला एक ऐसा सिस्टम है जिसमें पैसे बिना बैंकिंग चैनल के, बिना किसी रिकॉर्ड के एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाते हैं। यहीं से इस पूरी साजिश में ‘मिस्ट्री’ और गहरी हो जाती है क्योंकि इस लेन-देन का कोई ऑफिशियल रिकॉर्ड नहीं मिलता।
क्या डॉक्टरों का ‘व्हाइट कॉलर मॉड्यूल’ भी दिल्ली ब्लास्ट से जुड़ा है?
फरीदाबाद में पिछले दिनों एक ‘व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल’ का पर्दाफाश हुआ था, जिसमें तीन डॉक्टर गिरफ्तार हुए थे और 2,900 किलो विस्फोटक बरामद हुआ था। अब जांच में यह पता चला है कि ये वही डॉक्टर-
- डॉ. मुज़म्मिल गनई
- डॉ. अदील अहमद राथर
- डॉ. शाहीन सईद
- डॉ. उमर नबी
दिल्ली ब्लास्ट से भी जुड़े हो सकते हैं। चारों ने मिलकर नकद में 26 लाख रुपये जुटाए और उसे डॉ. उमर के पास सुरक्षित रखने और ऑपरेशन में खर्च करने के लिए दे दिया। इतनी बड़ी रकम का कैश में इकट्ठा होना ही इस मिस्ट्री को और गहरा कर देता है।
क्या 26 क्विंटल एनपीके उर्वरक से तैयार हुआ था घातक IED?
जांच में सबसे हैरान करने वाली बात यह सामने आई कि आरोपियों ने गुरुग्राम, नूंह और आसपास के इलाकों से 26 क्विंटल NPK उर्वरक खरीदा था। यह उर्वरक आम खेती में इस्तेमाल होता है, लेकिन जब इसे कुछ रसायनों के साथ मिलाया जाए तो यह खतरनाक IED डिवाइस बनाने में भी उपयोग किया जा सकता है। इस उर्वरक की कीमत करीब 3 लाख रुपये बताई जा रही है। इसी उर्वरक का इस्तेमाल किस तरह किया गया और किसने तकनीकी रूप से इसे विस्फोटक रूप में तैयार किया-यह जांच का सबसे बड़ा सवाल है।
क्या धमाके से ठीक पहले पैसों को लेकर हुआ विवाद ही बना ट्रिगर?
रिपोर्ट के अनुसार, विस्फोट से कुछ दिन पहले डॉ. उमर और डॉ. मुज़म्मिल के बीच पैसे को लेकर कुछ मतभेद हुए थे। अब जांच एजेंसियां यह पता लगा रही हैं कि-
- क्या यही विवाद धमाके के समय में बदलाव का कारण बना?
- क्या प्लान पहले किसी और दिन का था?
- या फिर विवाद के बाद आरोपियों ने जल्दबाजी में हमला किया?
- यह सवाल अभी भी बेहद रहस्यमय है।
डीएनए रिपोर्ट ने खोला सच: कार कौन चला रहा था?
- डीएनए जांच में यह पुष्टि हो चुकी है कि विस्फोट वाली हुंडई i20 कार डॉ. उमर नबी ही चला रहा था।
- वह जम्मू-कश्मीर के पुलवामा का रहने वाला था और फरीदाबाद स्थित अल फलाह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था।
- यह जानकारी मिलने के बाद एजेंसियां अब उसके बैकग्राउंड, संपर्क, सोशल मीडिया, यात्रा रिकॉर्ड और फंडिंग सोर्सेस की गहराई से जांच कर रही हैं।
क्या दिल्ली विस्फोट एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा था?
इन सभी खुलासों के बाद जांच एक बड़े सवाल पर अटक गई है कि क्या दिल्ली ब्लास्ट एक लोकल प्लान था, या फिर किसी बड़े अंतरराज्यीय नेटवर्क का हिस्सा? हवाला चैनलों का इस्तेमाल, डॉक्टरों की संलिप्तता, भारी मात्रा में उर्वरक खरीद, फंडिंग विवाद और 26 लाख रुपये… यह सब संकेत देता है कि मामला पूरी तरह योजनाबद्ध था। जांच एजेंसियां हर उस धागे को पकड़ने की कोशिश कर रही हैं, जो कहीं ना कहीं इस हमले की साजिश से जुड़ा हुआ हो सकता है।
