सार

ईद अल-अधा कल भारत समेत पूरे विश्व भर में मनाया जाएगा। बकरीद पर मुस्लिम लोग जानवर की कुर्बानी देते हैं। लेकिन बकरीद पर कुर्बानी का मकसद बकरा या किसी जानवर का मारना नहीं अल्लाह के लिए उसे पाक बनाने से है। 

श्रीनगर (कश्मीर)। देश-दुनिया में 29 जून को बकरीद या ईद-उल-अधा मनाया जाएगा। बकरीद को बड़ी ईद भी कहते हैं। मुस्लिम समुदाय में ईद-उल फितर रमजान के 30 दिन व्रत के बाद मनाया जाता है और ईद-उल-अधा हज के अवसर पर मनाते हैं. बकरीद पर मुस्लिम समाज के लोग बकरे की कुर्बानी देने के साथ हज भी करते हैं। 

पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से पहले बकरीद पर यह रिवाज प्रचलित नहीं था, लेकिन इस ईद-उल-अधा का आधार एक पुरानी घटना है जिसमें हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह के लिए हजरत इस्माइल पर कुर्बानी करने की कोशिश की थी। उन्होंने अल्लाह के सामने हजरत इस्माइल को भी कुर्बान कर दिया था। अल्लाह ने उनकी कुर्बानी कुबूल कर ली थी। लेकिन उन्होंने इस्माइल की जगह एक भेड़ दे दी थी।  इसके बाद पैगंबर मोहम्मद ने हर साल इस मौके पर मुसलमानों को कुर्बानी देने का आदेश दिया।

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कुर्बानी का मतलब पशुओं का काटना नहीं, पाक करना
बकरीद पर कुर्बानी देने का रिवाज है। मुस्लिम समुदाय के सभी लोग बकरीद पर बकरा व अन्य पशु काटकर अल्लाह को भेंट करते हैं। यह बहिमात-उल अनाम (ऊंट, बकरी, भेड़, आदि) कुर्बानी है। हालांकि इस कुर्बानी का असली मकसद किसी जानवर जैसे बकरी, भैंस, भेड़ या ऊंट को काटना नहीं, बल्कि उन्हें पाक बना देना है।  

कुरान में ये आयतें हैं शामिल
ईद पर किसी जानवर की बलि देने में वह कितना पाक होगा। यह माना गया है कि कुर्बानी जरूरी नहीं है। यह अहनाफ के मुताबिक वाजिब और शवफे व मलिकिस के मुताबिरक सुन्नत है। लेकिन क्या वे मुसलमान फ़र्ज़ को भूल गए हैं? अपने धर्म के प्रति कट्टरता दिखाने के लिए वे वाजिब या सुन्नत को आसानी से क्यों अपना लेते हैं? 

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ईद-उल-अधा के दौरान क्या यह भी सोचते हैं कि कुर्बानी से हमारे पड़ोस में रहने वाले लोगों पर क्या असर पड़ेगा।  क्या हम अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और समाज के लोगों की मदद कर रहे हैं। कुर्बानी बेहद पाक काम है, लेकिन वह तभी वाजिब है जब हम उसे दिखावे या मांसाहार के बजाय गंभीरता से करें। 

बकरीद पर कुर्बानी का मकसद 
एक तरह मस्जिदों औऱ कब्रिस्तान के बाहर खड़े मुसलमानों को भोजन नहीं मिल रहा है तो वहीं कुछ लोग दिखाने के लिए कई बकरों की कुर्बानी दे रहे हैं. वे भूखे लोगों की बजाए अपने दोस्त और रिश्तेदारों को इसे बांट रहे हैं। कुर्बानी के मांस को आठ दिनों तक फ्रिज में रखा जाता है, भले ही इस बीच कोई भूखा पेट सो जाए। हम भूल जाते हैं कि कुर्बानी एक इबादत है, त्योहार नहीं। कुर्बानी का मकसद हमारे अंदर भरोसा जगाना है कि हमारे काम अल्लाह के लिए पाक है। अल्लाह आपको देख रहा है और आपके हर काम पर उसकी नजर है।