सार
केरल विधानसभा चुनावों (Kerala Assembly Election) के पहले कांग्रेस के जाने-माने नेता पीसी चाको (PC Chacko) के पार्टी छोड़ देने से कांग्रेस को झटका लगा है। हमारी सहयोगी साइट Newsable से एक्सक्लूसिव बातचीत में पीसी चाको ने बताया कि वो कौन-सी परिस्थितियां रहीं, जिनके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
नेशनल डेस्क। केरल विधानसभा चुनावों (Kerala Assembly Election) के पहले कांग्रेस के जाने-माने नेता पीसी चाको (PC Chacko) के पार्टी छोड़ देने से कांग्रेस को गहरा झटका लगा है। हमारी सहयोगी साइट Newsable से एक्सक्लूसिव बातचीत में पीसी चाको ने बताया कि वो कौन-सी परिस्थितियां रहीं, जिनके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी। चाको ने इंटरव्यू में बताया कि कांग्रेस में गुटबाजी कितनी बढ़ गई है और काम करने वाले लोगों को लगातार उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है, वहीं पार्टी हाई कमांड को इसकी कोई परवाह नहीं है। चाको ने कहा कि उन्होंने कई बार सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिल कर स्थितियों को स्पष्ट करने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई असर नहीं पड़ा। आखिरकार, मजबूर होकर उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी।
सवाल - वो क्या कारण रहे जिनके चलते आपको कांग्रेस छोड़नी पड़ी, जिस पार्टी से आप 4 दशक से जुड़े हुए थे?
जवाब - इसके पीछे कई वजहें हैं। यह कोई भावुकता में लिया गया निर्णय नहीं था। मैं इसके बारे में पिछले 3 महीनों से सोच रहा था। कांग्रेस में कैंडिडेट के चुनाव के लिए एक तय प्रक्रिया है। यह वर्षों से चल रही है और कैंडिडेट का चुनाव 3 टियर सिस्टम के तहत होता है। सबसे ऊपर सेंट्रल इलेक्शन कमेटी है, जिसकी प्रमुख सोनिया गांधी हैं। यह कमेटी सभी अंतिम निर्णय लेती है। इसके नीचे कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में ट्रेनिंग कमेटी होती है। यह उम्मीदवारों की लि्स्ट फाइनल करके सेंट्रल कमेटी को भेजती है। इसके नीचे प्रदेश इलेक्शन कमेटी होती है, जो विधानसभा चुनाव क्षेत्र के मुताबिक उम्मीदवारों के नामों की लिस्ट तैयार करती है। प्रदेश इलेक्शन कमेटी के सदस्य एक या दो दिन की मीटिंग करते हैं, जिनमें ऐसे उम्मीदवारों के नाम पर विचार किया जाता है, जिनकी जीत संभावित होती है। यह मीटिंग कैंडिटेड के चुनाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है। यह सेंट्रल कमेटी के स्तर पर संभव नहीं है। मैं इस पर लगातार जोर देता रहा। पहली मीटिंग जल्दबाजी में हुई और इसमें सिर्फ इसी बात पर निर्णय हुआ कि अगली मीटिंग कब होगी। जब दूसरी मीटिंग हुई, तब कहा गया कि अभी लिस्ट तैयार नहीं हो सकी है, इसलिए तीसरी मीटिंग करने का निर्णय लिया गया। इसमें उन विधानसभा क्षेत्रों के बारे में फैसला लिया जाना था, जहां जीत संभव हो। पिछली बार कांग्रेस के 22 एमएलए थे। अगर हमारे पास 50 सीटें होतीं, तो हम केरल में सरकार बना सकते थे। मुस्लिम लीग 18 से 20 सीट हासिल कर सकती थी और दूसरी पार्टियां 5 से 6 सीट पा सकती थीं। लेकिन इन पर विचार करने वाला कोई नहीं था।
ओमान चांडी दिल्ली गए। रमेश चेन्निथाला भी दिल्ली गए और वहां केरला हाउस में रहे। वहां रमेश चेन्निथाला के कमरे में उनके समर्थकों ने मीटिंग की और अपनी मर्जी के मुताबिक निर्णय लिए। ओमान चांडी के समर्थकों ने अलग से मीटिंग की। उनके फैसलों में कोई दखल नहीं दे सकता था। इसके बाद लिस्ट तैयार हुई और स्क्रीनिंग कमेटी के सामने पेश की गई। स्क्रीनिंग कमेट के चेयरमैन एचके पाटिल ने मुझे नाश्ते पर बुलाया और मुझसे सुझाव मांगे। मैंने कहा कि मैं यहां सुझाव देने के लिए नहीं आया हूं, मैं तो ब्रेकफास्ट के लिए आया हूं। पाटिल ने मुझसे कहा कि आप अपने विचार क्यों नहीं रख रहे। इस पर मैंने कहा कि आप ओमान चांडी और रमेश चेन्निथाला से इसके बारे में पूछें कि क्या उनकी प्रदेश इलेक्शन कमेटी से कोई चर्चा हुई है। अगर वे इसका जवाब देते हैं कि चर्चा हुई है, तो मैं आपके साथ बैठ सकता हूं। यह बात सोनिया गांधी तक भी पहुंची। इसके बाद सोनिया गांधी ने कुछ नेताओं से पूछा कि यह पैनल कैसे तैयार हुआ? क्या इस पैनल में जो नाम हैं, उन्हें लेकर सीनियर लीडर्स से कोई चर्चा हुई? क्या उनकी सहमति ली गई? राहुल गांधी ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया और कहा कि कमेटी केरल के नेताओं से विस्तृत चर्चा करेगी। इस पर सभी तैयार थे, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।
मेरे जैसे लोग जिन्हें पार्टी में 50 साल का अनुभव है, सिर्फ सब देखते रहे। दूसरे लोग अयोग्य उम्मीदवारों के नाम सामने लेकर आते रहे। ऐसी स्थिति में कोई क्या कर सकता है? मैं कोई उम्मीदवार नहीं था, न ही उम्मीदवार बनना चाहता था। मेरे पास किसी को सुझाव देने के लिए कुछ भी नहीं था। मेरे समर्थक भी नहीं थे। सच्चाई यह है कि कांग्रेस की जमीन दरकती जा रही थी और लेफ्ट फ्रंट को इसका फायदा मिलना था। इसलिए मेरे पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया था। यह निर्णय मैंने भावुकता में नहीं लिया।
सवाल - आपकी तरह 23 दूसरे सीनियर लीडर भी कह रहे हैं कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। उन्होंने विरोध का झंडा उठा लिया है। आपका क्या कहना है?
जवाब - यह बिल्कुल सही है। बहरहाल, मैं उस ग्रुप का हिस्सा नहीं हूं, जिसमें कांग्रेस के 23 नेता शामिल हैं। जब वे नेताओं के हस्ताक्षर ले रहे थे, तब मुझसे भी संपर्क किया था। वे सभी मेरे दोस्त हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं हस्ताक्षर अभियान में शामिल होने नहीं जा रहा हूं। सामान्य तौर पर इस तरह के हस्ताक्षर अभियान को पार्टी विरोधी गतिविधि माना जाता है। बहरहाल, उन्होंने जो मुद्दा उठाया है, वह कांग्रेस के नेतृत्व के लिए एक वैधानिक चुनौती है। उनका कहना है कि वे कांग्रेस वर्किंग कमेटी का चुनाव करवाना चाहते हैं। उनका यह भी कहना है कि ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) का हर साल सम्मेलन हो। पार्टी के संविधान में ऐसी व्यवस्था है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। उन्होंने सोनिया गांधी के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा है और न ही राहुल गांधी के खिलाफ कुछ बोला है। उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर कोई हमला नहीं बोला है। उन्होंने सिर्फ वहीं मांग की है, जो कांग्रेस के संविधान में है। कुछ लोगों का सोचना है कि ये 23 नेता कांग्रेस से बाहर चले जाएंगे, लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें चर्चा के लिए बुलाया है। कपिल सिब्बल, गुलाम नबीं आजाद और दूसरे नेता पार्टी के खिलाफ नहीं हैं। उनका सिर्फ यह कहना है कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी का चुनाव होना चाहिए। फिलहाल, कांग्रेस में जूनियर लेवल के लोग और पर्सनल स्टाफ महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं। पार्टी में हर स्तर पर गुटबाजी का बोलबाला है। डेढ़ साल से कांग्रेस अध्यक्ष का पद खाली है। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर को-ऑर्डिनेशन का पूरी तरह अभाव है। किसानों का आंदोलन जारी है और इसे लेकर पार्टी की कोई नीति नहीं है। विरोधी दलों का मानना है कि कांग्रेस को ज्यादा सक्रिय होना चाहिए।
सवाल - आप कहां अलग-थलग हुए? आपने कहा कि ओमान चांडी और चेन्निथाला को ज्यादा महत्व मिला।
जवाब - सिर्फ मैं ही नहीं, सुधीरन, के सुधाकरन जैसे नेताओं को भी कोई अहमियत नहीं मिली। मेरी इन लोगों से बातचीत हुई। सिर्फ मुझे ही अलग-थलग नहीं किया गया। यह अलग बात है कि मैंने इस्तीफा देने का फैसला लिया। इसका यह मतलब नहीं कि सभी मुझसे सहमत ही हों। सुधीरन और पीजे कूरियन ने बयान जारी किए। रामचंद्रन ने कहा कि इन पर विचार किया जाना चाहिए। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यही है कि कोई भी मेरा विरोध नहीं कर रहा था। बहुत-से नेता जो काफी सीनियर थे, उपेक्षित किए गए। ओमान चांडी, रमेश चेन्निथाला और उनके समर्थको को छोड़ कर सबों को उपेक्षित किया गया।
सवाल - क्या आप यह महसूस करते हैं कि यूडीएफ का प्रदर्शन अगले चुनावों में निराशाजनक रहेगा?
जवाब - यह अच्छा नहीं रहेगा। यह अच्छा हो सकता था, अगर हम लोगों ने सही कैंडिडेट्स का चुनाव किया होता और बेहतर ढंग कैम्पेन किया जाता। अब ऐसा लगता है कि दिन-ब-दिन कांग्रेस की जमीन दरकती जा रही है। कांग्रेस लगातार नीचे की तरफ जा रही है। इसका अंजाम क्या होगा, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसकी जीत की संभावनाएं नहीं के बराबर हैं।
सवाल - ऐसा आप क्यों सोचते हैं कि केरल में कांग्रेस इस कदर टूट-फूट की शिकार है?
जवाब - कांग्रेस की टूट-फूट की वजह यह है कि केरल में कांग्रेस में शुरू से 2 ग्रुप रहे हैं। एक एंटनी की और दूसरी करुणाकरन की। अब इनकी जगह ओमान चांडी और रमेश चेन्निथाला ने ले ली है। एंटनी और करुणाकरन के दिलों में पार्टी के लिए प्यार और सम्मान की भावना थी। इसलिए विवाद और वैचारिक विरोध के बावजूद एकता हमेशा बनी रही। लेकिन अब वैसी बात नहीं रही। अब स्थितियां बदल गई हैं। अब हर स्तर पर बिखराव की स्थिति है। म्यूनिसिपल इलेक्शन्स में भी यह दिखाई पड़ा है। हम एर्नाकुलम म्यूनिसिपैलिटी का चुनाव हार गए, जबकि पिछले 40 सालों से हमें जीत हासिल हो रही थी। मैं एनार्कुलम में ही था, लेकिन अपने वार्ड में। कैंडिडेट के चुनाव तक में मुझसे कोई राय नहीं ली गई थी।
सवाल - क्या आपने इस्तीफा देने का निर्णय लेने के पहले कांग्रेस हाई कमांड से संपर्क करने की कोशिश की?
जवाब - मैंने राहुल गांधी को इसके बारे में बता दिया था कि क्या चल रहा है। मैं उनसे मिला जब वे नागरकोइल से आए और दिल्ली के लिए उड़ान भरी। जब राहुल गांधी एयरपोर्ट पर करीब आधे घंटे के लिए बैठे थे, मैंने उन्हें सारी बातें बताई। मैंने उनसे इन सवालों पर केरल में चर्चा करने का आग्रह किया। वे इसके लिए तैयार थे, लेकिन बाद में उन्हें समय नहीं मिल सका। ऐसा लगता है कि इसे लेकर कोई भी गंभीर नहीं था।
सवाल - कांग्रेस को पिछले चुनाव में काफी झटके लगे हैं। क्या आप सोचते हैं कि कांग्रेस फिर से जीतने की स्थिति में आ सकती है?
जवाब - यह सोचना मेरा काम नहीं है। यह उन लोगों की समस्या है, जो सत्ता में हैं और पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। कांग्रेस में अध्यक्ष का महत्व सबसे ज्यादा रहता आया है। जो पार्टी का अध्यक्ष है, उसे सोचना होगा कि वह पार्टी को कहां ले जाना चाहता है। उसे परिस्थितियों की समीक्षा करनी होगा। जहां तक मेरा सवाल है, अब मैं बाहरी व्यक्ति हूं।
सवाल - दूसरे नेताओं की तरह क्या आप केरल में बीजेपी जॉइन करेंगे?
जवाब - नहीं, कभी नहीं। वैचारिक तौर पर मैं धर्म निरपेक्ष राजनीति से प्रतिबद्ध हूं। मैं सेक्युलर पॉलिटिक्स से जुड़ा रहा हूं और कभी भी बीजेपी जैसे सांप्रदायिक संगठन से संबंध नहीं रख सकता।
सवाल - ऐसी जानकारी मिली है कि आप केरल में एनसीपी जॉइन कर सकतते हैं। क्या कांग्रेस नेतृत्व आपसे वापस पार्टी में आने का आग्रह करे, तो क्या आप अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सकते हैं?
जवाब - मेरे सामने कई विकल्प हैं, जिन पर मुझे फैसला लेना है। अभी तक मैंने कोई निर्णय नहीं लिया है। मैं किसी तरह की जल्दबाजी में भी नहीं हूं। मैं अपने दोस्तों से संपर्क में हूं। मैं नहीं चाहता कि कांग्रेस से किसी तरह की बातचीत हो। जब सभी सानियर लीडर्स ने मुझसे मिनला चाहा, मैंने इसके लिए मना कर दिया। जब उन्होंने फोन कॉल किया, मैने फोन अटेंड नहीं किया। मैंने इस्तीफा कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए नहीं दिया है।
इस खबर को इंग्लिश में पढ़ें - PC Chacko Exclusive: 'Requested Sonia and Rahul to intervene; they did nothing'