सार

भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) के पहले प्रमुख के चुनाव के लिए जून-जुलाई 1947 में 30 दिनों तक बातचीत और विचार-विमर्श किया गया था। IAF इतिहासकार अंचित गुप्ता ने इसके बारे में विस्तार से बताया है।

नई दिल्ली। भारत को आजादी मिलने के बाद सेना के संबंध में तीन सवाल सामने आए थे। पहला क्या प्रत्येक सेवा के लिए एक प्रमुख होना चाहिए? दूसरा किस रैंक के अधिकारी को यह जिम्मेदारी मिलनी चाहिए? तीसरा किस अधिकारी को प्रमुख बनाया जाए? इन सवालों के जवाब के लिए उस वक्त के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ एयर मार्शल ह्यूग वाल्म्स्ले ने प्रक्रिया शुरू की थी।

1 जुलाई 1947 को उन्होंने अपनी सिफारिशें लाउड लुइस माउंटबेटन को भेजीं थी। हालांकि अंतिम निर्णय पंडित जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना को लेना था। इस प्रक्रिया में एक प्रमुख प्रभावशाली व्यक्ति भारतीय सेना के तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ क्लॉड ऑचिनलेक भी शामिल थे। ऐसा लगता है कि ऑचिनलेक ने सीधे माउंटबेटन को पत्र लिखकर एयर मार्शल सर थॉमस एल्महर्स्ट को पाकिस्तान वायु सेना का प्रमुख बनाने की सिफारिश की थी।

लॉर्ड माउंटबेटन ने स्पष्ट कर दिया था कि अगर एल्हमिर्स्ट पर विचार करना है तो भारत के लिए भी उनके नाम पर विचार किया जाना चाहिए। एयर मार्शल वाल्म्स्ले ने इस संबंध में हुए विचार-विमर्श का नेतृत्व किया था। 10 जुलाई 1947 को माउंटबेटन ने वाल्म्स्ले को बताया था कि भारत और पाकिस्तान दोनों ने एयर वाइस मार्शल के रैंक के लिए रॉयल एयर फोर्स से एक एयर ऑफिसर कमांडिंग लेने पर सहमति व्यक्त की थी। इससे वाल्मस्ले को आश्चर्य हुआ। ऐसा होता तो मुखर्जी बाहर हो जाते।

वाल्मस्ले को यह बात चौकाने वाली लगी। उन्होंने सोंचा कि इससे मुखर्जी को भी झटका लगेगा। इसका मतलब है कि शीर्ष नेतृत्व ने महसूस किया कि मुखर्जी ने भारतीय वायु सेना के चीफ पद के लिए दावेदारी की है। आरएएफ के बहुत से अधिकारी सेना प्रमुख के पद के लिए स्वेच्छा से इच्छुक नहीं थे। ऐसे में वाल्मस्ली को एयर वाइस मार्शल पेरी-कीन के रूप में भारत के लिए सबसे उपयुक्त अधिकारी मिला था।

पेरी-कीन एक अच्छा विकल्प थे। उन्होंने 1935 से विभिन्न भूमिकाओं में भारत में काफी समय बिताया था। वह भारत में अधिकारियों के बीच काफी प्रसिद्ध थे। वाल्मस्ली के आग्रह पर 18 जुलाई 1947 को माउंटबेटन मुखर्जी से मिले। माउंटबेटन मुखर्जी के विचारों से हैरान हो गए थे। मुखर्जी ने वायु सेना की जरूरतों को अपने ऊपर रखा और आरएएफ के एक सीनियर अधिकारी का समर्थन किया। मुखर्जी को उम्मीद थी कि वह दो-तीन साल में सेना प्रमुख बन जाएंगे।

माउंटबेटन, वाल्मस्ले और पेरी-कीन ने मुखर्जी को विश्वास में ले लिया था। ऐसा लग रहा था कि 22 जुलाई 1947 को पेरी-कीन भारतीय वायुसेना के प्रमुख बन जाएंगे, लेकिन अभी एक मोड़ आने वाला था। 21 जुलाई को नेहरू ने माउंटबेटन को पत्र लिखकर कहा था कि वे भारतीय वायुसेना के चीफ पद के लिए एयर मार्शल एल्हमर्ट पर विचार करें।

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23 जुलाई 1947 को माउंटबेटन ने नेहरू और एल्हमर्स्ट के बीच बैठक कराई। 26 जुलाई को नेहरू एल्हमर्स्ट को समझाने में सफल रहे और उनके लिए वायुसेना प्रमुख बनना तय हो गया। एल्हमर्स्ट सेना में मुखर्जी के समकक्ष थे। उनकी एयर मार्शल बनने की इच्छा पूरी हो गई थी। मुखर्जी को तब पता नहीं था कि उन्हें खुद एयर मार्शल के रूप में प्रमुख बनने के लिए सात साल इंतजार करना होगा।

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दूसरी ओर माउंटबेटन ने जिन्ना को एवीएम पेरी-कीन को पाकिस्तानी वायुसेना का प्रमुख बनाने के लिए तैयार कर लिया था। 27 जुलाई 1947 को एयर मार्शल एल्हमिर्स्ट को भारतीय वायु सेना का प्रमुख और एयर वाइस मार्शल पेरी-कीन को पाकिस्तानी वायु सेना का प्रमुख बनाए जाने की घोषणा की गई थी।