सार
सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ घटता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' का 29वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है पॉलिटिक्स की दुनिया के कुछ ऐसे ही चटपटे और मजेदार किस्से।
From The India Gate: सियासी गलियारों में परदे के पीछे बहुत कुछ होता है- ओपिनियन, साजिश, सत्ता का खेल और राजनीतिक क्षेत्र में आंतरिक तकरार। एशियानेट न्यूज का व्यापक नेटवर्क जमीनी स्तर पर देश भर में राजनीति और नौकरशाही की नब्ज टटोलता है। अंदरखाने कई बार ऐसी चीजें निकलकर आती हैं, जो वाकई बेहद रोचक और मजेदार होती हैं। पेश है 'फ्रॉम द इंडिया गेट' (From The India Gate) का 29वां एपिसोड, जो आपके लिए लाया है, सत्ता के गलियारों से कुछ ऐसे ही मजेदार और रोचक किस्से।
यहां Left हमेशा Right है..
CPM महासचिव सीताराम येचुरी हर एक बात का मुखर तरीके से विरोध करते हैं। लेकिन जब उनसे केरल में वामपंथी सरकार द्वारा मीडिया को खामोश किए जाने के बारे में पूछा जाता है तो वो बचाव में उतर आते हैं। जब एशियानेट न्यूज के पत्रकार को वामपंथी छात्र नेताओं द्वारा एकेडमिक कामों में बाधा डालने की रिपोर्टिंग करने पर परेशान किया गया, तो राष्ट्रीय मीडिया ने येचुरी की राय जाननी चाही। इस पर उन्होंने कहा- केंद्र सरकार मीडिया को किस तरह परेशान कर रही है, इस बारे में बात करें। सिर्फ एक राज्य के बारे में नहीं। एक और वामपंथी नेता प्रकाश करात की प्रतिक्रिया भी कुछ इसी तरह थी। करात ने कहा कि वामपंथी हमेशा मीडिया की आजादी के पक्षधर रहे हैं। हालांकि, ऐसा लगता है कि करात साहब अपने गृह राज्य में जो कुछ हो रहा था, उससे बेखबर थे। बृंदा करात, एनी राजा, वंदना शिवा जैसे नेता जो आमतौर पर राष्ट्रीय मुद्दों पर सबसे ज्यादा मुखर होते हैं, वे भी शांत दिखे। लगता है अब इनकी जुबान पेट में गिर गई।
DMK की वॉशिंग मशीन..
तमिलनाडु में, DMK पार्टी ED के छापे और उसके मंत्री सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बाद उपहास का पात्र बन गई है। अपनी गिरफ्तारी की खबर सुनते ही सेंथिल के सीने में अचानक दर्द उठा और उन्हें अस्पताल ले जाया गया। DMK के कई बड़े नेताओं ने अस्पताल में जाकर सेंथिल बालाजी का हालचाल भी जाना। वैसे, नेताओं को भले ही लगता है कि जनता की याददाश्त कमजोर है, लेकिन तमिलनाडु के वोटर्स को अच्छी तरह याद है कि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सेंथिल बालाजी के बारे में क्या कहा था, जब वे AIADMK के साथ थे। स्टालिन ने तब बालाजी को एक भ्रष्ट नेता बताया था। लेकिन जब इसी मामले की जांच कर रही ED ने बालाजी को गिरफ्तार किया, तो स्टालिन ने फौरन इसे BJP के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की साजिश बता दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने इस जांच को विपक्षी दलों पर हमला भी करार दे दिया।
From The India Gate: कहीं दब गई 'सिंघम' की दहाड़, तो कहीं चकनाचूर हुए सपने
ब्यूरोक्रेजी...
इंडियन ब्यूरोक्रेसी खासकर दो प्रमुख सेवाओं IAS और IPS के बीच सेवा प्रतिद्वंद्विता की कहानियों से भरी पड़ी है। ब्यूरोक्रेसी की गंभीरता किस हद तक घटी है, इसकी बानगी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में देखने को मिली। IPS अफसर से नेता बने तमिलनाडु के एक शख्स भाजपा के प्रभारी थे, वहीं एक और IAS अधिकारी ने कांग्रेस के लिए वॉर रूम संभाल रखा था। कांग्रेस की जीत के साथ ही ये चर्चा जोरों पर थी कि IAS की रणनीति IPS की तुलना में कहीं ज्यादा प्रभावी थी। अब, जबकि लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का वक्त बचा है, तो दोनों पार्टियां तमिलनाडु में भी उसी प्रयोग को दोहराने की कोशिश में जुट गई हैं। लगता है कि 2009 बैच के IAS अधिकारी, जिन्होंने आखिरी बार साउथ कर्नाटक जिले के डिप्टी कमिश्नर के रूप में काम किया था, वे 2024 में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए अपने तमिलनाडु रूट का इस्तेमाल करेंगे। खैर, इससे बीजेपी के IPS मैस्कॅट को खुद को साबित करने का मौका मिलता है।
अजीब दुविधा..
उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (UPGIS,2023) में अहम भूमिका निभाने वाले यूपी के दो रिटायर्ड IAS अफसर इन दिनों काफी चर्चा में हैं। इन दोनों अफसरों की सूझबूझ से यूपी में निवेशकों ने बड़े पैमाने पर MOU साइन किए। ऐसे में अब इन्हें जमीनी धरातल पर उतारने के लिए इन अफसरों का अनुभव काफी काम आएगा। इन दोनों अफसरों के नेतृत्व में राज्य को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया गया। यही वजह है कि टैलेंट को पहचानने के अपने कौशल के लिए मशहूर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोनों को अपना सलाहकार नियुक्त किया। वर्तमान में, इनमें से एक इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का ध्यान रख रहा है, जबकि दूसरा नए उद्योगों की शुरुआत पर फोकस कर रहा है। रिटायर होने से पहले के दौर में दोनों ने योगी को अपनी सूझबूझ से काफी प्रभावित किया था। इनमें से एक पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव सलाहकार की भूमिका संभालने वाले पहले शख्स थे। बाद में उसी रैंक के उनके सहयोगी को सीएमओ लाया गया। यूपी को एक इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में तैयार और पेश करने में दोनों सलाहकारों की अहम भूमिका रही है। हालांकि, रिटायर होने के बाद भी दोनों फिलहाल अपने मन मुताबिक करियर नहीं चुन पा रहे हैं।
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