सार

Hijab row Update :कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court) में हिजाब (Hijab row) को लेकर चल रही सुनवाई आज भी जारी रही। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता साजन पुवैया ने धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बारे में अपनी दलीलें रखीं। इससे पहले कोर्ट को बताया गया कि इस आंदोलन के पीछे सीएफआई (CFI) नामक संगठन है। ढाई घंटे चली सुनवाई में अभी कोई निष्कर्ष नहीं निकला है। कल फिर सुनवाई जारी रहेगी। 

बेंगलुरू। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court) में हिजाब (Hijab row) पर बुधवार को नौवें दिन सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता एसएस नागानंद ने अपनी दलीलें शुरू कीं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि कर्नाटक में ड्रेस कोड 2004 से लागू है, लेकिन आज तक कभी विरोध नहीं हुआ। एक संगठन ने छात्राओं और उनके अभिभावकों को भड़काया, जिसके बाद हिजाब का मुद्दा खड़ा हुआ। शाम पांच बजे तक चली सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस ने रितुराज अवस्थी ने कहा कि हम इस मुद्दे को छह महीने तक नहीं सुन सकते। सारे हस्तक्षेपकर्ता लिखित में बात रखें। कल दोपहर 2:30 बजे फिर कोर्ट में सुनवाई होगी। 

छात्राओं की तस्वीरें दिखाईं, जिनमें वे बिना हिजाब के हैं 
नागानंद ने आरोप लगाया कि इस संगठन ने शिक्षकों को भी धमकाया। नागानंद ने कोर्ट को याचिकाकर्ता छात्राओं की आधार कार्ड पर लगी तस्वीरें दिखाईं। उन्होंने कहा कि इन तस्वीरों में कहीं भी छात्राओं ने हिजाब नहीं पहना है। आखिर क्लासरूम में हिजाब की क्या जरूरत आ पड़ी। उन्होंनें बताया कि 2004 से लागू ड्रेस को कभी चुनौती नहीं दी गई। यहां तक कि 2018 में भी इसे जारी रखने का निर्णय लिया गया। लेकिन 2021 में कुछ अभिभावकों ने इसे मुद्दा बना दिया। नागानंद ने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के बारे में बताया। कहा कि इस संगठन के लोग स्कूलों में कट्‌टरपंथ फैला रहे हैं, जबकि यह शैक्षिक संगठन के प्रतिनिधि नहीं हैं। 

CFI के नाम पर चीफ जस्टिस ने पूछा– क्या है यह संगठन 
सीएफआई का नाम आने पर चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी ने पूछा कि यह संगठन क्या है। क्या आपको इसकी जानकारी है। इस पर महाधिवक्ता ने बताया कि इस बारे में वे सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट पेश करेंगे। उन्होंने बताया कि हिजाब आंदोलन के पीछे यही संगठन है। एडवोकेट ताहिर ने छात्राओं को डराने धमकाने के आरोप लगाए, जिस पर एडवोकेट नागानंद ने कहा कि डराने का आरोप गलत है। लड़कियों को सिर्फ अनुपस्थित करने की बात कही गई है। 

कल मुस्लिम लड़के कहेंगे, हमें टोपी पहनना है 
एडवोकेट नागानंद ने कहा कि हमें बच्चों में भेद दूर करना है। इस विवाद के बाद दक्षिणपंथी हिंदू लड़के कह रहे हैं कि वे भगवा स्कार्फ पहनेंगे। कल मुसलमान लड़के कहेंगे कि वे टोपी पहनना चाहते हैं। आखिर यह विवाद कहां समाप्त हो रहा है। सड़क पर ढोल पीटने वालों से समाज को
खतरा नहीं होना चाहिए। 

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तुर्की में हिजाब को अनुमति नहीं 

अधिकवक्ता राघवेंद्र श्रीवत्स ने अपनी दलीलें शुरू कीं। उन्होंने बताया कि तुर्की में राज्य सरकार के एक स्कूल में हिजाब की अनुमति नहीं थी। यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। यानी मुस्लिम बहुल आबादी वाले देशों तक में इस पर प्रतिबंध है। 

धर्मनिरपेक्ष गतिविधि में धर्म की भूमिका नहीं 
एडवोकेट साजन पुवैया ने कहा कि अनुच्छेद 25 (2) के तहत ऐसा कोई नियम नहीं है जो स्कूल में धार्मिक प्रथा से जुड़े प्रतीकों को लाने से रोकने का कानून बनाने से रोके। उन्होंने कहा कि शिक्षा विशुद्ध रूप से धर्मनिरपेक्ष गतिविधि है। और जब धर्मनिरपेक्ष गतिविधि की बात आती है तो धर्म की कोई भूमिका नहीं होती। यदि राज्य सरकार ने धार्मिक पोशाक पहनने से रोका है तो वे धार्मिक प्रथा के नाम पर भी ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि यह स्कूल है। 

ध्वनि प्रदूषण के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र
सुनवाई के दौरान पुवैया ने बताया कि हिंदुओं ने धर्म के नाम पर पटाखे फोड़ने की इजाजत मांगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण को देखते हुए इसकी इजाजत नहीं दी। मुझे याद है कि जब मैं कॉलेज में था तो ईरान से महिलाएं बंगलौर में पढ़ने के लिए आती थीं और वे हिजाब नहीं पहनती थीं। वे इसमें विश्वास नहीं करती थीं और इसे मुस्लिम राज्य में शाह के शासन के दौरान लागू नहीं किया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि ईसाइयों में मंगलसूत्र नहीं होता, लेकिन केरल के ईसाइयों में है। उन्होंने इसे आत्मसात कर लिया है। आप एक विशेष धर्म का पालन कर सकते हैं, लेकिन दूसरे धर्म के अभ्यास और रीति-रिवाज आपके धर्म में एकीकृत हो सकते हैं।

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मैं फिजिक्स केमेस्ट्री पढ़ाने के साथ हिजाब की अनुमति नहीं दे सकता
पुवैया ने कहा कि मैं एक तरफ छात्राओं को फिजिक्स, केमेस्ट्री, इतिहास, भूगोल पढ़ाऊं और दूसरी तरफ उन्हें हिजाब पहनकर आने को कहूं। ऐसा नहीं हो सकता। मेरे स्कूल में 100 बच्चे हैं और 5 हिजाब की अनुमति मांगते हैं तो क्या बाकी जो हिजाब नहीं पहन रहे वो अधार्मिक हो जाएंगे। 
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