सार

इंटरनेशनल एथलीट रह चुकीं तैयबुन निशा (Tayabun Nisha) ने स्पोर्ट्स में कई पदक जीते हैं और दुनियाभर से प्रशंसा मिली है। लेकिन वे अपनी सहपाठी के लिए बेहद परेशान रहती थी। हाल ही में उनकी खोई हुई साथी असम के शिवसागर में मिलीं।

 

Tayabun Nisha-Julekha. इंटरनेशनल एथलीट रह चुकीं तैयबुन निशा (Tayabun Nisha) ने स्पोर्ट्स में कई पदक जीते हैं और दुनियाभर से प्रशंसा मिली है। लेकिन वे अपनी सहपाठी के लिए बेहद परेशान रहती थी। हाल ही में उनकी खोई हुई साथी असम के शिवसागर में मिलीं। तैयबुन निशा अपनी सहपाठी के लिए परेशान रहती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि उनकी सहपाठी का कर्ज उन पर है। वे उनसे मिलकर माफी भी मांगना चाहती थी। हाल ही में उनकी मुलाकात अपनी सहपाठी जुलेखा से हुई। इन दोनों महिलाओं की मुलाकात 5 दशक के बाद हुई है।

कैसे खोई हुई अंगूठी ने किया कमाल

तैयबुन निशा की यह चिंता करीब 6 दशक पुरानी है, जब दोनों एक ही स्कूल में पढ़ा करती थीं। उस वक्त उनकी सहपाठी जुलेखा की शिवसागर कस्बे के धैलाली स्कूल में ही एक सोने की अंगूठी खो गई थी। उस वक्त सभी ने मिलकर अंगूठी की तलाश की लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ हो गए। उन दिनों स्कूल की सफाई का काम स्कूली बच्चे ही किया करते थे। तैयबुन निशा की रूचि खेलों में बचपन से ही थी, इसलिए वह जल्दी स्कूल पहुंच जाती थी। ऐसे ही एक दिन जब तैयबुन निशा स्कूल की सफाई कर रही थीं, तब उन्हें जुलेखा की सोने की अंगूठी मिल गई। तब तैयबुन को यह लगा कि इतने दिन बाद उसने अंगूठी लौटाई तो सब लोग उसे ही चोर समझने लगेंगे। तब उसने वह अंगूठी अपने ही पास रखने का फैसला कर लिया। क्योंकि तैयबुन निशा एक किसान परिवार की थीं और जुलेखा के पिता सरकारी कर्मचारी थे।

बेचनी पड़ी जुलेखा की अंगूठी

तैयबुन बताती हैं कि इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद मेरे पिता का निधन हो गया और घर के आर्थिक हालात खराब हो गए। गुजारा करने के लिए हमें घर के सामान बेचने पड़े और सोने की अंगूठी भी बेचनी पड़ गई। बाद में खेल कोटे से जब रेलवे में नौकरी मिली तब हालात कुछ बेहतर हुए। निशा ने कहा कि हम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए लेकिन जुलेखा की अंगूठी उन्हें बार-बार परेशान करती रही। तब तैयबुन ने यह तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए जुलेखा से मिलूंगी और उसे अंगूठी की कीमत वापस कर दूंगी। इसके बाद जब जुलेखा की शादी हो गई तो दोनों का संपर्क टूट गया।

हमेशा करती रही तलाश

तैयबुन बताती हैं कि जब भी मैं शिवसागर जाती तो जुलेखा की तलाश करती थी। मेरी बहन भी उसकी तलाश कर रही थी और काफी समय के बाद शिवसागर के कुकुरापोहिया में जुलेखा मिल गई। जब तैयबुन निशा को यह पता चला तो वे बेहद खुश हो गईं और जुलेखा को फोन करके मिलने का कार्यक्रम तय किया। फिर दोनों मिले, साथ में खाना खाया और पुरानी यादों को शेयर किया। इस बीच तैयबुन ने अंगूठी के बारे में बताया और एक पैकेट जुलेखा को सौंप दिया। जुलेखा ने कहा कि वे तो सब भूल गई थीं और भुगतान की जरूरत नहीं थी लेकिन उसने इतना जोर दिया तो स्वीकार कर लिया। अब दोनों दोस्त हमेशा फोन पर बातचीत करती हैं।

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