सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति द्वारा गुजारा भत्ता न देने की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यदि पति की आय नहीं भी हो रही है, तब भी उसे पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा।

 

Allahabad High Court. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। दरअसल, अलग हुए पति-पत्नी के मामले में फैमिली कोर्ट ने पति को यह आदेश दिया था कि गुजारा भत्ता के तौर पर हर महीने 2 हजार रुपए पत्नी को देने होंगे। इसके खिलाफ पति ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उसकी याचिका खारिज कर दी गई है। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि पति की कोई इनकम नहीं हो रही है तब भी 2 हजार रुपए देना उसका कर्तव्य है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर पति की नौकरी से कोई आय नहीं है, तो भी वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है। क्योंकि वह अकुशल मजदूर के रूप में भी प्रति दिन लगभग ₹ 300-400 कमा सकता है। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ की न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की ने पारिवारिक कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति की याचिका को खारिज कर दिया। पति ने अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2,000 रुपये मासिक देने में छूट चाहता था, जिसका आदेश फैमिली कोर्ट ने दिया था। जस्टिस अग्रवाल ने ट्रायल कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को पत्नी के पक्ष में पहले से दिए गए गुजारा भत्ते की वसूली के लिए पति के खिलाफ सभी उपाय अपनाने का भी निर्देश दिया है।

क्या है पूरा मामला

मामले के अनुसार दोनों ने साल 2015 में शादी की थी। फिर पत्नी ने दहेज की मांग को लेकर पति और ससुराल वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई और 2016 में अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए पति का घर छोड़ दिया। पति ने हाईकोर्ट में दलील दी कि प्रधान न्यायाधीश इस बात पर विचार करने में विफल रहे कि उसकी पत्नी स्नातक है और शिक्षण से प्रति माह ₹ 10,000 कमा रही है। पति ने यह भी कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है और उनका इलाज चल रहा है। उसने यह भी दलील दी कि वह मजदूरी करता है और किराए के कमरे में रहता है। इसी से वह अपने माता-पिता और बहनों की देखभाल करता है। हालांकि पति ऐसा कोई दस्तावेज पेश नहीं कर सका जिससे यह पता चले कि पत्नी 10 हजार रुपया महीना कमाती है। इसके बाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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