सार

रूस, अमेरिका और जर्मनी के विकल्पों पर विचार करने के बाद अंतत  रूस से 1965 में फोक्सट्रोट श्रेणी की तीन पनडुब्बी खरीदने का समझौता किया गया। उस समय एक पनडुब्बी की कीमत 3 करोड़ रुपए थी।

नई दिल्ली। देश की आजादी के बाद हिन्दुस्तानी सरहदों की हिफाजत करने वालों के लिए 8 दिसंबर एक गौरव वाला यादगार दिन बना हुआ है। करीब 54 साल पहले आज के ही दिन नौसेना (Indian Navy) एक मजबूत स्तंभ होकर उभरी थी। 8 दिसंबर 1967 को भारत की पहली पनडुब्बी ‘कलवरी’ (Kalvari) को शामिल किया गया था। 

सोवियत संघ ने दी थी पहली पनडुब्बी

भारत के नौसेना को पहली ‘कलवरी’ पनडुब्बी को सोवियत संघ (यूएसएसआर) से लिया गया था। कलवरी 'टाइप 641' क्लास की पहली पनडुब्बी थी। इसे 'नाटो' ने 'फोक्सट्रॉट' क्लास नाम दिया था। सोवियत संघ (USSR) ने लातविया के रिगा बंदरगाह पर ‘कलवरी’ भारतीय नौसेना को सौंपी थी। हालांकि, सोवियत संघ के विघटन के बाद अब लातविया एक अलग देश है। 

भारत ने पहली पनडुब्बी सोवियत संघ से भले ही ली थी लेकिन ब्रिटेन (Britain) से पहले चार पनडुब्बियां खरीदने का प्लान बनाया था। भारत सरकार ने 1963 में चारों पनडुब्बियों को खरीदने की मंजूरी भी दे दी लेकिन बातचीत आगे न बढ़ सकी। इसके बाद भारत ने सोवियत संघ से पहली पनडुब्बी कलवरी ले ली। 

30 साल के शानदार इतिहास के बाद कलवरी हुई रिटायर

देश की पहली पनडुब्बी तीन साल के गौरवशाली इतिहास को समेटे साल 1996 में 31 मार्च को रिटायर हो गई। कलवरी का नाम हिंद महासागर में पाई जाने वाली खतरनाक टाइगर शार्क के नाम पर रखा गया था। 

फिर नए तेवर और कलेवर के साथ लौटी कलवरी

हालांकि, देश के इतिहास की पहली पनडुब्बी को फिर से लाने का फैसला किया गया। 2019 में कलवरी को नए कलेवर और तेवर के साथ पुन: नौ सेना में शामिल किया गया। फ्रांस के सहयोग से देश में ही निर्मित स्कार्पीन श्रेणी की आधुनिकतम पनडुब्बी को नौसेना में शामिल किया गया तो इसका नाम भी कलवरी ही रखा गया है। कलवरी को दुनिया की सबसे घातक पनडुब्बियों में से एक माना जाता है। भारत में ऐसी 5 और पनडुब्बी तैयार हो रही। दरअसल, आधुनिकतम तकनीक से निर्मित पनडुब्बी एक बेहतरीन मशीन है और समुद्र के नीचे एक खामोश प्रहरी की तरह रहती है। जरूरत पड़ने पर यह दुश्मन की नजर बचाकर सटीक निशाना लगाने और भारी तबाही मचाने में सक्षम होती है।

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