सार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत दुनिया का बड़ा डिफेंस एक्सपोर्टर बनने की दिशा में बढ़ रहा है। 4-5 साल में हमारा डिफेंस इम्पोर्ट लगभग 21 फीसदी कम हुआ है। 8 साल में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 7 गुणा बढ़ा है।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने नेवल इनोवेशन एंड इंडिजिनाइजेशन ऑर्गनाइजेशन (Naval Innovation and Indigenisation Organisation) के सेमिनार 'स्वावलंबन' को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो रहा है। इसके साथ ही डिफेंस एक्सपोर्ट भी बढ़ रहा है।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि पिछले 8 साल में भारत का डिफेंस एक्सपोर्ट 7 गुणा बढ़ा है। पिछले साल भारत ने 13 हजार करोड़ रुपए के हथियार निर्यात किए। इसमें से 70 फीसदी योगदान प्राइवेट सेक्टर का था।आत्मनिर्भरता का लक्ष्य 21वीं सदी के भारत के लिए बहुत जरूरी है। 75 स्वदेशी टेक्नोलॉजी का निर्माण पहला कदम है। हमें इनकी संख्या लगातार बढ़ाने पर काम करना चाहिए। आपका लक्ष्य होना चाहिए कि भारत जब अपनी आजादी के 100 वर्ष का पर्व मनाए उस समय हमारी नौ सेना अभूतपूर्व ऊंचाई पर हो।
निरंतर बढ़ती जा रही भारतीय नौसेना की भूमिका
पीएम ने कहा कि भारतीय नौसेना की भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है। देश की बढ़ती जरूरतों के लिए भी नौ सेना का स्वावलंबन बहुत जरूरी है। मुझे विश्वास है कि यह सेमिनार और इससे निकला अमृत हमारी सेनाओं को स्वावलंबी बनाने में बहुत मदद करेगा। आज जब हम डिफेंस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भविष्य की चर्चा कर रहे हैं तब यह भी आवश्यक है कि बीते दशकों में जो हुआ उससे सबक लें।
इससे हमें भविष्य का रास्ता बनाने में मदद मिलेगी। आज जब हम पीछे देखते हैं तो हमें अपनी समृद्ध मेरिटाइम हेरिटेज के दर्शन होते हैं। भारत का समृद्ध ट्रेड रूट इस विरासत का हिस्सा रहा है। हमारे पूर्वज समुंद्र पर वर्चस्व इसलिए कायम कर पाये क्योंकि उन्हें हवा की दिशा और अंतरिक्ष विज्ञान के बारे में बहुत अच्छी जानकारी थी।
पहले काफी मजबूत था भारत का डिफेंस सेक्टर
मोदी ने कहा कि भारत का डिफेंस सेक्टर आजादी के पहले भी काफी मजबूत था। आजादी के समय देश में 18 ऑर्डिनेंस फैक्ट्री थी। यहां तोप समेत कई तरह के सैन्य साजो-सामान बनाये जाते थे। दूसरे विश्व युद्ध में रक्षा उपकरणों के हम अहम सप्लायर थे। हमारे हॉवित्जर तोपों को उस समय सबसे अच्छा माना जाता था। हम बहुत बड़ी मात्रा में हथियारों को एक्सपोर्ट करते थे, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि हम इस क्षेत्र में दुनिया के सबसे बड़े इम्पोर्टर बन गए।
विदेशी हथियार पर निर्भरता बुद्धिमानी नहीं
पीएम ने कहा कि यह बुद्धिमानी नहीं है कि दुनिया में दस लोगों के पास जिस प्रकार के हथियार हैं वही हथियार देकर मैं अपने जवानों को मैदान में उतार दूं। हो सकता है कि उसकी टैलेंट अच्छी होगी, उसकी ट्रेनिंग अच्छी होगी, जिससे वह उस हथियार का शायद ज्यादा अच्छा उपयोग कर निकल जाएगा, लेकिन मैं कब तक जोखिम लेता रहूंगा। जो हथियार उसके हाथ में है वैसा ही हथियार लेकर मेरा जवान क्यों जाएगा। उसके पास वो होगा जो उसने सोचा तक नहीं होगा। वो समझे इससे पहले उसका खात्मा हो जाएगा। यह मिजाज सिर्फ फौजियों को तैयार करने के लिए नहीं है, यह उसके हाथ में कौन से हथियार हैं इसके लिए भी हैं।
रिसर्च और इनोवेशन पर नहीं दिया गया बल
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के बाद के पहले डेढ़ दशक में हमने नई फैक्ट्रियां बनाई ही नहीं। पुरानी फैक्ट्रियां अपनी क्षमता खोती गईं। 1962 के युद्ध के बाद मजबूरी में नीतियों में कुछ बदलाव हुआ, लेकिन इसमें भी रिसर्च, इनोवेशन और डेवलपमेंट पर बल नहीं दिया गया। दुनिया उस समय नई टेक्नोलॉजी और नए इनोवेशन के लिए प्राइवेट सेक्टर पर भरोसा कर रही थी, लेकिन दुर्भाग्य से रक्षा क्षेत्र को सीमित सरकारी संसाधनों के दायरे में रखा गया।
हमारे युवाओं के लिए विदेशों में तो अवसर हैं, लेकिन देश में अवसर बहुत सीमित थे। इसके चलते कभी दुनिया की अग्रणी सैन्य शक्ति रही भारतीय सेना को राइफल जैसे सामान्य अस्त्र के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ा। इसकी आदत हो गई। उस समय डिफेंस से जुड़े ज्यादातर सौदे सवालों में घिरते गए। इसके चलते सेनाओं को आधुनिक हथियारों के लिए दशकों इंतजार करना पड़ता था।
डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भरता के लिए मिशन मोड में काम किया
पीएम ने कहा कि डिफेंस से जुड़ी हर छोटी-छोटी जरूरतों के लिए विदेश पर निर्भरता रणनीतिक रूप से बहुत गंभीर खतरा है। इस स्थिति से देश को बाहर निकालने के लिए 2014 के बाद हमने मिशन मोड में काम किया। बीते 8 साल में हमने सिर्फ डिफेंस का बजट ही नहीं बढ़ाया, यह बजट देश में ही डिफेंस मैनुफैक्चरिंग इकोसिस्टम के विकास में काम आए, यह भी सुनिश्चित किया। रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए तय बजट का बहुत बड़ा हिस्सा आज भारतीय कंपनियों से हथियार और उपकरण खरीदने में लग रहा है।
हम अपने देश में बने हथियारों की इज्जत नहीं करेंगे और हम चाहेंगे कि दुनिया हमारे हथियारों की इज्जत करे तो यह संभव नहीं है। शुरुआत हमें खुद से करनी होगी। ब्रह्मोस इसका उदाहरण है। जब भारत ने ब्रह्मोस को गले लगाया तो आज दुनिया उसे गले लगाने के लिए कतार में खड़ी है। भारत की सेनाओं ने 300 से अधिक हथियारों और उपकरणों की सूची बनाई है जो मेड इन इंडिया ही होगी और उनका उपयोग हमारी सेनाएं करेंगी। उन चीजों को हम बाहर से नहीं खरीदेंगे।
डॉ अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में किया गया सेमिनार का आयोजन
NIIO के इस सेमिनार का आयोजन दिल्ली के डॉ अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में किया गया है। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने 'स्प्रिंट चैलेंज' का अनावरण किया। इसका उद्देश्य भारतीय नौसेना में स्वदेशी प्रौद्योगिकी (indigenous technology) के उपयोग को बढ़ावा देना है।
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भारतीय नौसेना में स्वदेशी टेक्नोलॉजी शामिल करना है लक्ष्य
एनआईआईओ का लक्ष्य डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइजेशन (डीआईओ) के साथ मिलकर भारतीय नौसेना में कम से कम 75 नई स्वदेशी टेक्नोलॉजी या प्रोडक्ट शामिल करना है। इस परियोजना का नाम स्प्रिंट (Supporting Pole-Vaulting in R&D through iDEX, NIIO and TDAC) है।
सेमिनार का उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में भारतीय उद्योग और शिक्षाविदों को एक साथ लाना है। दो दिवसीय सेमिनार (18-19 जुलाई) उद्योग, शिक्षा, सेवाओं और सरकार को रक्षा क्षेत्र के लिए विचारों और सिफारिशों के लिए एक साझा मंच प्रदान करेगी।
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