सार
देश में हर दिन कोरोना के लाखों केस आ रहे रहे हैं। हजारों लोग मर भी रहे हैं, जबकि ठीक होने वालों की तादाद लाखों में है। फिर भी, इंसान मरने वालों का आंकड़ा देखकर डर और खौफ में जी रहा है। सबको लग रहा है हर कोई इस वायरस की चपेट में आ जाएगा, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। सावधानी, बचाव और पॉजिटिव सोच रखने वाले शख्स से यह बीमारी कोसों दूर भागती है।
उज्जैनः कोरोना वायरस के लक्षण मिलते ही लोग हॉस्पिटल के चक्कर काटने लगते हैं। एक बेड के लिए हजारों, लाखों फेंकने को भी तैयार हैं। 80 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनको बेड की जरूरत नहीं है। डर और भय के चक्कर में ऐसे लोग बेड को ही उम्मीद का आखिरी रास्ता मानते हैं। उन्हें लगता है, बेड मिल जाए तो मैं ठीक हो जाऊंगा। जबकि बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जो कोरोना पॉजिटिव हुए और घर पर रहकर बड़े आराम से वायरस से जंग जीत गए। खुद को आइसोलेट कर लेना, क्वारेंटाइन हो जाना...इससे बड़ी बात खुद को पॉजिटिव रखना...कोरोना पॉजिटिव लोगों की एक बड़ी तादाद ऐसी हो जो ऐसा करके ठीक हो रहे हैं।
Asianetnews Hindi के सुशील तिवारी ने मध्य प्रदेश के उज्जैन के रहने वाले सुदर्शन सोनी से बात की। बातचीत के दौरान यह महसूस हुआ कि इनके अंदर गजब की एनर्जी और पॉजिटिविटी है। इनका मंत्र भी यही था कि अगर आपका मन पॉजिटिव है, आपके परिवार का सपोर्ट पॉजिटिव है तो कोई भी बीमारी आपसे लड़ नहीं सकती। उसको हर कीमत पर हारना ही होगा। चौथी कड़ी में पढ़िए इन्होंने कैसे कोरोना को हराया...शब्दशः...
''मेरा नाम सुदर्शन सोनी है। महाकाल, उज्जैन की नगरी से वास्ता रखता हूं। 06 अप्रैल 2021 की तारीख थी। उस दिन हाथ में दर्द, थकान-थकान सी लग रही थी, हल्की हरारत थी...। कोई दवाई नहीं लिया। पूरा दिन घरेलू नुस्खे के साथ निकाल दिया। दूसरे दिन सुबह भी सेम कंडीशन थी। उठा नहीं जा रहा था। 7 अप्रैल को बिना देर किए जांच कराने पहुंच गया। शाम को रिपोर्ट आनी थी। घर आ गया। सभी लोग भगवान से प्रार्थना करने लगे कि रिपोर्ट निगेटिव आए। आस-पड़ोस, टीवी चैनल पर चल रही खौफनाक खबरों को देखकर मन व्यथित था। हर कोई डर हुआ था। मेरे लक्षण भी कुछ ठीक नहीं थे, इसलिए डर मुझे भी लग रहा था। शाम को रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। मैंने तत्काल जिला अस्पताल में बात की। पता चला- वहां कोई बेड खाली नहीं है। खुद से निश्चय किया कि अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा। घर में रहकर खुद को फिट करूंगा। मैं नहीं चाहता था मेरी वजह से परिवार या आसपास का कोई और संक्रमित हो। बिना समय गंवाए खुद को क्वारेंटाइन कर लिया।''
हंसते-मुस्कुराते इस बीमारी को किया एक्सेप्ट...
''पॉजिटिव रिपोर्ट आते ही मैंने घरवालों को खुशी-खुशी बताया। मेरे चेहरे पर मुस्कान थी, यह इसलिए ताकि एक पॉजिटिव माहौल बना रहे। माहौल को एनर्जेटिक बनाने के लिए परिवार ने जबरदस्त सपोर्ट किया। सभी ने एक स्वर में कहा- घबराने की कोई जरूरत नहीं है। हिम्मत रखना है। अच्छा सोचना है। निश्चित ही हम सब मिलकर इस बीमारी को हरा देंगे। यह सुनकर मेरे अंदर एक अलग टाइप की ताकत पैदा हो गई। मुझे लगा जैसे मैं पूरी तरह से ठीक और फिट हूं। यह तो रूटीन बीमारी है, जिसे यूं ही ठीक कर लूंगा। साथ ही यह समझ में आ गया कि ऐसी बीमारी में परिवार का मोरल सपोर्ट आपको लड़ने की ताकत देता है।''
डॉक्टर ने तगड़ी गाइलाइन बनाकर दी, उसी को फॉलो किया...
''7 अप्रैल, देर शाम को डॉक्टर को रिपोर्ट भेजी। उन्होंने 14 दिन का पूरा कोर्स, सरकार की गाइडलाइन मैसेज कर दिया। पूरा तरीका बताया कि अब आपकी दिनचर्या क्या और कैसे होगी। डॉक्टर ने फोन पर पूछा अभी तक कैसा पानी पीते थे। जवाब दिया - सादा। उन्होंने कहा- सबसे पहले इसको बंद कर दो। अब और अभी से जितनी बार प्यास लगेगी आप गुनगुना पानी ही पीएंगे। दिनभर में 5 से 6 लीटर गरम पानी फिक्स कर लें। कोशिश कीजिएगा जो पानी पीएं उसमें दो-तीन बूंद नीबू का रस निचोड़ लीजिएगा। इससे दो फायदा होगा, एक तो शरीर में पानी की कमी नहीं होगी, दूसरा नींबू इम्यूनिटी बनाता रहेगा। इम्यूनिटी पावर मजबूत होगी तो आप वायरस से लड़ने में और मजबूत होंगे। आपको एक मिनट के लिए भी खाली पेट नहीं रहना है। हल्की सी भी भूख लगे तो तत्काल कुछ ना कुछ खाएं। कमजोरी नहीं आने देना है। इम्यूनिटि लेबल स्ट्रॉन्ग रखना। संकल्प ले लो- कुछ ना कुछ खाते ही रहना है। खाने में कोई परहेज नहीं है। खाने में ज्यादा घी और तेल वाली चीजें अवाइड करना है। कई बार ऐसा भी होगा कि दवाई और बीमारी की वजह से भूख नहीं लगेगी। उस कंडीशन में आपको उल्टा सोचना है। जैसे ही मन में यह ख्याल आए कि भूख नहीं है। आप तत्काल समझ जाओ कि आपके मांइड को वायरस डायवर्ट करने की कोशिश कर रहा है। उस दौरान दिमाग को यह कहकर जवाब देना अब तो मैं खाऊंगा। देखता हूं भूख कैसे नहीं है। कोरोना को नेगेटिव करने के लिए आपको कुछ पॉजिटिव जिद करना ही होगा।''
खाने के लिए अपना बर्तन अलग किया, वो भी डिस्पोजल...
''8 अप्रैल से मैंने पूरा सिस्टम बना लिया। खुद को एक कमरे में सीमित कर लिया। खाने का कोई बर्तन मैंने नहीं रखा। इसकी जगह डिस्पोजल थाली और ग्लास का यूज किया। यह इसलिए क्योंकि मेरा बर्तन गलती से अगर किसी ने टच कर लिया तो दिक्कत खड़ी हो जाएगी। डिस्पोजल का इस्तेमाल इसलिए क्योंकि इसे आसानी से जलाया जा सकता है। दिनभर में 5 से 6 लीटर पानी फिक्स कर लिया। दो से तीन बार काली मिर्च की चाय लेता था। दो-तीन बार तो वैसे ही काली मिर्च चबा लेता था। इससे खरांस नहीं आती थी। गला साफ रहता था। हर घंटे कुछ ना कुछ खाना स्टार्ट कर दिया। एक स्टूल बना लिया था। जिसपर मैं अपना पत्तल रख देता था। घर का कोई सदस्य ऊपर से खाना डाल देता था। खाने के बाद पत्तल पॉलीथिन में रख देता था। हर दो दिन में वो पॉलीथिन घर से नीचे जमीन पर गिराता था। घर का कोई सदस्य उसे जला देता था।''
क्वारेंटाइन के 5वें दिन मेरी पॉजिटिविटी फुस्स हो गई...
''14 दिन अच्छे से काटने थे। पहले दिन से मैं और पूरा परिवार क्लियर थे कि कोरोना पॉजिटिव को पॉजिटिव सोच के साथ हराना है। न्यूज चैनल और फालतू की पोस्ट, मन को भ्रमित करने वाले वीडियो को अवाइड करने लगा। मोबाइल पर दिन कटने लगा। रोचक किताबें पढ़ने लगा। 4 दिन सबकुछ नॉर्मल था, मतलब बुखार धीरे-धीरे ठीक हो रहा था लेकिन 5वें दिन अचानक बहुत ज्यादा बुखार आ गया। बुखार अपने पीक पर था। उस दिन मेरी पॉजिटिविटी फुस्स हो गई थी। भयानक परेशान हो गया। लग रहा था वायरस का अटैक वापस आ गया है। अब मैं ठीक नहीं हो पाऊंगा। बहुत डर गया था। सोचता था, अब बच्चों का क्या होगा, परिवार का क्या होगा। माता जी और पिता जी को कौन देखेगा। मैं नहीं रहूंगा तो घर कैसे चलेगा। अजीब-अजीब से डराने वाले ख्याल मन में आने लगे। ये बातें किसी से कह भी नहीं सकता था। डरता था, अगर ये किसी से शेयर करूंगा तो वो और डर जाएगा। अंदर ही अंदर कुढ़ रहा था। रहा नहीं गया तो डॉक्टर को फोन लगा लिया। यह एक तरह से अच्छा हुआ। डॉक्टर ने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया। उन्होंने कहा- बेटा परेशान ना हो। कोरोना पॉजिटिव केस में कभी-कभी ऐसा पीक आता है, समझो यह आखिरी था। अब तुम पूरी तरह से ठीक होने की दिशा में जाओगे। अंदर जब दवाई अपना काम तेज करती है तब बुखार का एक तूफान आता है। डॉक्टर साब की बात सुनकर कुछ घंटों के लिए जो भी नेगेटिव थॉट आए थे, वो खत्म हो गए। एक बार फिर मेरे अंदर चेतना आ गई।''
बच्चों को डांटकर भगा देता था, क्योंकि...
क्वारेंटाइन के दौरान पूरा ख्याल रखा कि मेरे संपर्क में गलती से भी कोई ना आए। कई बार बच्चे पास आने की कोशिश करते थे, लेकिन उनको बेरहमी से डांटकर भगा देता था। अगर उनको प्यार से पुचकारता तो शायद जिद करके वो मेरे पास आ जाते। मैं खतरा नहीं लेना चाहता था। 8वें दिन से बुखार नहीं आया। 14-15 दिन का जो कोर्स था, वही मैंने किया।''
निगेटिविटी नहीं आने देने के लिए थैंक यू मिसेज...
''14 दिन मजेदार अंदाज में हमने काटे। दरवाजे के इस पार मैं बैठता था, दरवाजे के उस पार मेरी पत्नी। दोनों में कुछ फीट की दूरियां थीं और हम मोबाइल पर बातें करते थे। अच्छा लगता था कि चलो इस बहाने ही सही, फोन पर ही सही, पत्नी से इतना टाइम बात तो कर पा रहा हूं। वरना वही भाग-दौड़ वाली जिंदगी। हतास या निराश ना हूं, इसलिए वो हिम्मत बंधाती थी। अच्छी बातें करती थी। पुराने किस्से याद दिलाती थी। बच्चों की हठखेलियों के बारे में बात करती थी। माता-पिता आपस में किस बात को लेकर प्यारभरी नोकझोंक करते थे, वो बताती थी। पड़ोस में कुछ अच्छा हुआ हो तो वो सुनाती थी। कुल मिलाकर वो अच्छी बातें बताती थी, ताकि मेरे मन में कोई भी बुरा ख्याल ना आए। थैंक यू मिसेज, आपने इस दौरान निगेटिविटी नहीं आने दी।''
दवाई के साथ महाकाल का नाम और महामृत्युंजय ने ताकत बढ़ा दी...
''मैं महाकाल की नगरी से हूं। क्वारेंटाइन पीरियड काटने में उनका बड़ा रोल था। या कह लें उन्हीं की कृपा से बुरा वक्त कट गया। वायरस को हराने 2 काम करना और स्टार्ट कर दिया। महामृत्युंजय का जाप और महाकाल का नाम। इन दो दवाई ने भी मेरा उद्धार किया। मोबाइल पर महामृत्युजंय का भजन सुनता रहता था। मुझे लगता है, दवाइयां, परिवार का सपोर्ट इससे तो मैं ठीक हो ही रहा था, लेकिन महाकाल का नाम लेने से मेरे अंदर जो ताजगी आती थी, जो सुकून मिलता था, जो आत्मबल मिलता था, वो मैं बता नहीं सकता। दवाई के साथ भगवान के नाम की भी दवाई का डोज मैंने बढ़ा दिया। लोग कहते हैं ये बीमारी इंसान को अंदर से तोड़कर रख देती है, लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ था। यह सब महाकाल की ही कृपा थी।''
दूर से झांककर लौट जाते थे पिता जी, वो बात नहीं कर पाते थे...
''इस दौरान मैंने पिता जी से सबसे कम बात की। इसकी बड़ी वजह उनका बहुत जल्दी भावुक हो जाना। उनको भावुक होता मैं नहीं देख सकता था। पत्नी से अपने ठीक होने की रिपोर्ट हर दिन उनतक पहुंचाता था। वो कई बार दरवाजे के बाहर आते और बिना बात किए लौट जाते थे। इस बीच कई फोन भी आते थे। कुछ तो एनर्जेटिक वाले थे, कुछ फोन परेशान करते थे। गुस्सा होकर काटना पड़ता था। एक तो मैं बीमार ऊपर से हतासा वाली बातें। अरे फला के साथ तो ऐसा हो गया, फला ने तो ऐसी लापरवाही बरत दी, जिसकी वजह से वो बीमार हो गया। आपको भी ऐसा नहीं करना था, वहां नहीं जाना था। अजीब टाइप के सवाल होते थे। मैं एक कान से सुनता था, दूसरे से निकाल देता था लेकिन ऐसे लोगों का नाम जरूर नोट कर लेता था ताकि अगली बार इनका फोन अवाइड कर सकूं। 11 वें दिन टेस्ट हुआ, रिपोर्ट नेगेटिव आई। 14 दिन का कोर्स था लेकिन कुछ दवाइयां 2-4 दिन एक्स्ट्रा चलीं। कुछ सावधानियां डॉक्टर ने कन्टीन्यू करने को कहा। जैसे- गरम पानी। फुल पेट खाना। जितना हो सके आराम।''
Asianet News का विनम्र अनुरोधः आइए साथ मिलकर कोरोना को हराएं, जिंदगी को जिताएं...जब भी घर से बाहर निकलें माॅस्क जरूर पहनें, हाथों को सैनिटाइज करते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वैक्सीन लगवाएं। हमसब मिलकर कोरोना के खिलाफ जंग जीतेंगे और कोविड चेन को तोडेंगे।
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