सार
पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की घटनाएं आज भी बंगालियों के जेहन में बरकरार है। चुनाव संपन्न होने के बाद मचे बवाल ने न जाने कितनों को बेघर कर दिया तो दर्जनों ने जिंदगी और अस्मत गंवाई। आलम यह कि खौफ के साए से लोग आज भी नहीं निकल पा रहे। NHRC की जांच कमेटी की रिपोर्ट के आंकड़ें बहुत कुछ बंया कर रहे।
नई दिल्ली। केस-1ः स्थान-पुलिस स्टेशन गेजोल का गांव-केनबोना। दिनांक-23 मई 2021। समयः आधीरात। गांव की एक महिला के घर आधीरात को ढेर सारे गुंडे हमला करते हैं। महिला के घर लूटपाट करने के साथ उसके साथ सेक्सुअल असॉल्ट करते हैं। अर्धनग्न हालत में महिला को उठा ले जाते। उसकी विकलांग बच्ची के साथ शारीरिक दुर्व्यवहार किया गया। पूरे गांव में इस तरह के दस घरों में महिलाओं के साथ रेप और दुर्व्यवहार के मामले सामने आए लेकिन कार्रवाई नहीं की गई।
केस-2ः
स्थानः हावड़ा, पूर्व मेदिनीपुर, 24 साउथ परगना। दिनः 23 मई 2021
इन जिलों के कई दर्जन गांवों में गुंडों ने घरों में धावा बोला। लोगों की संपत्तियों को क्षति पहुंचाई। महिलाओं के साथ रेप किया, छेड़छाड़ की। विरोध करने पर हत्या तक कर दी गई। लेकिन पुलिस मौन साधे रही।
यह केस एक बानगी मात्र हैं। पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा ने सैकड़ों जिंदगियां तबाह कर दी है। पाई-पाई जोड़कर बनाया किसी का आशियाना उसकी आंखों के सामने जल गया तो किसी का व्यवसाय खाक। आबरू लुटी, धन गंवाया और परिवार बिखर गया। कोई उस उजड़े विरान में खौफ के बीच दिन काट रहा तो कोई दूसरी जगह पलायन कर किसी परिचित-रिश्तेदार के टुकड़ों पर पल रहा।
23 मई के बाद राजनीति और सत्ता ने पश्चिम बंगाल में चाहे जो मोड़ लिया हो लेकिन एक बात तो साफ है कि यहां हजारों आंखों के सपने टूट गए, जिंदगियां बिखर गई। जिस राजनीति का उद्देश्य लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव और विकास का पहिया तेज घुमाने के लिए होना चाहिए, वह आज की तारीख में हिंसा, बदला और डर को पनाह देने में लगा हुआ है।
एनएचआरसी भी बंगाल की हिंसा पर व्यथित है। कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश पर एनएचआरसी की गठित कमेटी ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की बेहद डरावनी रिपोर्ट सामने लाई है। कमेटी के रिपोर्ट की एक-एक लाइन कानून के राज की हकीकत बयां कर रही है।
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कूच बिहार में सबसे अधिक हिंसा, दार्जिलिंग सबसे सुरक्षित
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच टीम ने पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा के बाद अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में जिलेवार हिंसा की शिकायतों की संख्या भी है। आंकड़ों पर अगर गौर करें तो चुनाव बाद कूच बिहार सबसे अधिक हिंसाग्रस्त रहा। जबकि दार्जिलिंग सबसे सुरक्षित साबित हुई। कूच बिहार के बाद बीरभूम भी काफी अधिक प्रभावित हुआ।
रिपोर्ट के अनुसार कूचबिहार में 322 हिंसा के मामले, बीरभूम में 314, दक्षिण 24 परगना में 203, उत्तर 24 परगना में 198, कोलकाता में 182 और पूर्वी बर्दवान में 113 हिंसा के मामले सामने आए हैं।
बंगाल में सरकार और प्रशासन से डरा आम आदमी
जांच रिपोर्ट में यह कहा गया है कि टीएमसी के लोगों ने बहुत कहर बरपाया है। पुलिस प्रशासन ने वे गुहार लगाते रहे लेकिन कोई मदद को नहीं आया। आलम यह कि आम आदमी सत्ता पक्ष के गुंडों के साथ-साथ पुलिस-प्रशासन से भी डर रहा है। ऐसा लग रहा कि इनका राज्य प्रशासन पर से भरोसा उठ गया है। यौन अपराधों का शिकार होने के बावजूद, कई लोगों ने और नुकसान के डर से अपना मुंह बंद रखा है। जांच कमेटी के प्रतिनिधियों ने पाया कि जिस तरह से शिकायतें आई, उसके सापेक्ष बहुत कम रिपोर्ट दर्ज किए गए हैं।
रिपोर्ट दर्ज करने में भी काफी लापरवाही
जांच टीम की रिपोर्ट के अनुसार उन लोगों ने 311 मामलों में स्पॉट विजिट की है। इसमें केवल 188 मामलों में एफआईआर नहीं किया गया था। जबकि 123 मामलों में जो एफआईआर हुए थे उसमें 33 केसों में पुलिस ने मामूली रिपोर्ट लिखी।
29 मर्डर, 12 रेप, 940 आगजनी
जांच कमेटी ने जो रिपोर्ट सौंपी है उसके अनुसार मनुष्य वध या हत्या के 29 केस पुलिस ने दर्ज किए हैं। जबकि 12 केस महिलाओं से छेड़छाड़ व रेप के हैं। 391 मामलों में 388 केस पुलिस ने गंभीर रूप से घायल किए जाने संबंधित दर्ज किए हैं जबकि 940 लूट-आगजनी-तोड़फोड़ की शिकायतों में 609 एफआईआर दर्ज किए जा सके। धमकी, आपराधिक वारदात को अंजाम देने के लिए डराने संबंधित 562 शिकायतों में महज 130 शिकायतें ही एफआईआर बुक में आ सकी हैं। चुनाव बाद हिंसा की पुलिस के पास कुल 1934 शिकायतें गई जिसमें 1168 केस ही दर्ज किया गया।
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