सार

पत्रिका के एक लेख में बीजेपी को लगे झटके का सिलसिलेवार कारण गिनाया गया है। इस बात की कड़े तौर पर आलोचना की गई है कि बीजेपी के लोग अतिउत्साहित तरीके से चुनाव लड़ रहे थे और रियलिटी चेक करने की कोशिश तक नहीं की।

RSS mouthpiece criticises BJP: लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की माउथपीस कही जाने वाली पत्रिका आर्गेनाइजर ने भारतीय जनता पार्टी की कड़ी आलोचना की है। पत्रिका के एक लेख में बीजेपी को लगे झटके का सिलसिलेवार कारण गिनाया गया है। इस बात की कड़े तौर पर आलोचना की गई है कि बीजेपी के लोग अतिउत्साहित तरीके से चुनाव लड़ रहे थे और रियलिटी चेक करने की कोशिश तक नहीं की। आर्टिकल में लिखा: लोकसभा चुनाव के ये नतीजे बीजेपी के अतिउत्साही कार्यकताओं और नेताओं का रियलिटी चेक है जो अपनी दुनिया में मग्न थे और नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व की चकाचौंध में डूबे हुए थे। इन तक आमजन की आवाज नहीं पहुंच पा रही थी।

आर्गेनाइजर में यह लेख संघ के सदस्य रतन शारदा ने लिखी है। उन्होंने साफ कहा है कि बीजेपी, संघ को अपनी फील्ड फोर्स समझने की गलती कर बैठी। वह लगातार अनुभवी स्वयंसेवकों को नजरअंदाज करती रही। यह वह लोग हैं जो किसी फेम की चाहत के बगैर अथक परिश्रम करते हैं और नतीजा देते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 को बीजेपी के अतिउत्साही नेताओं और कार्यकर्ताओं ने गलत आंक लिया। उनको अहसास ही नहीं था कि पीएम मोदी का 400 पार का नारा उनके लिए लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती थी। रतन शारदा ने लिखा कि चुनाव में मेहनत से लक्ष्यों को हासिल किया जाता है न कि सोशल मीडिया पर पोस्टर या सेल्फी से। कार्यकर्ता अपनी दुनिया में मग्न थे, उनको पीएम मोदी की लोकप्रियता के दम पर जीत की खुशी मनाने का गुमान था। आमजन में कुछ और चल रहा था जिसे किसी ने भी नहीं सुना।

अनावश्यक की तोड़फोड़ भी घातक

रतन शारदा ने दूसरे दलों को अनावश्यक तोड़ना भी चुनावों को प्रभावित किया। महाराष्ट्र में अनावश्यक राजनीति की गई। बीजेपी और शिवसेना के पास बहुमत थी। शरद पवार की एनसीपी दो-तीन साल में अपना राज्य में प्रभाव खो देती क्योंकि अंदरखाने में कलह काफी था। लेकिन अजीत पवार और अन्य विधायकों को तोड़ा गया। नतीजा लोकसभा में सामने है। 2019 की तुलना में बीजेपी के पास महज 9 सीट ही मिली। शिंदे की शिवसेना ने सात तो एनसीपी अजीत पवार को महज एक सीट मिली।

दागी नेताओं को बीजेपी में शामिल करने पर भी सवाल उठाया गया है। संघ की पत्रिका में शारदा ने लिखा कि बीजेपी में एक ऐसे कांग्रेसी नेता को शामिल कराया गया जो बढ़चढ़कर भगवा आतंकवाद का आरोप लगाता था। उसने 26 11 को आरएसएस की साजिश बताया था। संघ को आतंकी संगठन कहा था। इससे संघ के समर्थक बहुत आहत थे।

शारदा ने चुनाव प्रचार में आरएसएस के नहीं जुड़ने पर कहा कि आरएसएस के कार्यकर्ता, बीजेपी का फील्ड फोर्स नहीं है। बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और उसके अपने कार्यकर्ता हैं। संघ राष्ट्रहित के मुद्दों पर जागरूकता फैलाता है। संघ ने केवल 1973 से 1977 तक सक्रिय राजनीति में योगदान किया था। इस बार हमने अपने कार्यकर्ताओं को मोहल्लों, शहरों, आफिस लेवल पर केवल मताधिकार के प्रयोग की बात कही थी।

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