सार
निर्भया के दोषी अक्षय कुमार को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। अदालत ने उसकी क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी है। अब उसके पास सिर्फ राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने का विकल्प मौजूद है।अक्षय द्वारा दायर की गई सुधारात्मक याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के चलते फांसी दी जा रही है।
नई दिल्ली. निर्भया के दोषी अक्षय कुमार को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। अदालत ने उसकी क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही अक्षय की फांसी से दूरी और कम हो गई है। अब उसके पास सिर्फ राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने का विकल्प मौजूद है। अब मुकेश की तरह अक्षय भी राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर कर सकता है। बता दें कि मुकेश की दया याचिका सुप्रीम कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। चारों दोषियों को 1 फरवरी को फांसी होगी या नहीं, इसपर संशय अभी बना हुआ है। अक्षय ने फांसी रोकने की गुजारिश की थी, उसे भी खारिज कर दिया गया।
यह फैसला जस्टिस एन वी रमन्ना, अरुण मिश्रा, आर एफ नरीमन, आर भानुमति और अशोक भूषण की बेंच ने सुनाया। बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मुकेश की एक याचिका को खारिज किया था। मुकेश ने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के खिलाफ याचिका दायर की थी। अब मुकेश के पास कोई कानूनी विकल्प नहीं बचा है।
अक्षय की याचिका में बेतुकी दलीलें
अक्षय द्वारा दायर की गई सुधारात्मक याचिका में कहा गया है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर जन दबाव और जनता की राय के चलते अदालतें सभी समस्याओं के समाधान के रूप में फांसी की सजा सुना रही हैं। अक्षय ने अपनी याचिका में दावा किया है कि दुष्कर्म एवं हत्या के करीब 17 मामलों में शीर्ष न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने मौत की सजा में बदलाव कर उसे कम किया है।
22 जनवरी को दी जानी थी फांसी
इससे पहले निर्भया के दोषियों को 22 जनवरी को फांसी दी जानी थी जो टल गई थी। दिल्ली जेल नियमों के अनुसार एक ही अपराध के चारों दोषियों में से किसी को भी तब तक फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता जब तक कि अंतिम दोषी दया याचिका सहित सभी कानूनी विकल्प का प्रयोग नहीं कर लेता।
दोषियों के खिलाफ लूट-अपहरण का भी केस
फांसी में एक और केस अड़चन डाल रहा है। वह है सभी दोषियों के खिलाफ लूट और अपहरण का मामला। दोषियों के वकील एपी सिंह का कहना है कि पवन, मुकेश, अक्षय और विनय को लूट के एक मामले में निचली अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ अपील हाईकोर्ट में लंबित है। जब तक इस पर फैसला नहीं होता जाता, दोषियों को फांसी नहीं दी जा सकती।
क्या है पूरा मामला ?
दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया।
जिसके बाद लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया।बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।