सार
माता-पिता ने 30 साल के बेटे की इच्छामृत्यु के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। कोर्ट ने इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने सरकार को मदद की संभावना तलाशने का निर्देश दिया है।
नई दिल्ली। माता-पिता के लिए अपने जवान बेटे को खोना वो सदमा है जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। हालांकि एक परिवार के लिए स्थिति इतनी विकट है कि उसने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अपने 30 साल के बेटे को मार डालने की गुहार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी है।
दरअसल, माता-पिता ने अपने इकलौते बेटे के लिए इच्छामृत्यु (Euthanasia) की गुहार लगाई है। उनका बेटा 11 साल से निष्क्रिय अवस्था में है। डॉक्टरों के अनुसार उसके ठीक होने की संभावना बेहद कम है। उसके इलाज का खर्च बढ़ता जा रहा है। परिजनों ने कोर्ट से गुहार लगाई कि उनके बेटे के राइल्स ट्यूब को हटाने की जांच करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए। ट्यूब हटाने से उनके बेटे की निष्क्रिय इच्छामृत्यु हो जाएगी। इससे उसे पीड़ा से राहत मिलेगी।
क्या है राइल्स ट्यूब?
बता दें कि राइल्स ट्यूब एक डिस्पोजेबल ट्यूब है। इसे नाक के माध्यम से पेट में डाला जाता है। इससे नासोगैस्ट्रिक ट्रैक्ट तक पहुंच मिलती है। इसका इस्तेमाल भोजन और दवा पेट तक पहुंचाने के लिए किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राइल्स ट्यूब हटाना निष्क्रिय इच्छामृत्यु नहीं
परिजनों की गुहार पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "राइल्स ट्यूब हटाना निष्क्रिय इच्छामृत्यु का हिस्सा नहीं है। राइल्स ट्यूब हटाने से मरीज भूखा मर जाएगा।" कोर्ट ने सरकार से पूछा कि "कृपया पता लगाएं कि क्या कोई संस्था इस व्यक्ति की देखभाल कर सकती है"।
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि युवक को किस तरह लंबे समय तक सहायता मिले इसकी जांच करें। युवक सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। वह मोहाली में एक पेइंग गेस्ट की चौथी मंजिल से गिर गया था। इससे उसके सिर में गंभीर चोट लगी। वह क्वाड्रिप्लेजिया (100% विकलांगता) से पीड़ित हो गया। उसके माता पिता (62 साल के अशोक राणा और 55 साल की निर्मला देवी) ने सीमित आय के बावजूद बेटे के इलाज के लिए लंबा संघर्ष किया।
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