सार

दो अजनबी वकीलों की ट्रेन यात्रा से शुरू हुई दोस्ती, 43 साल बाद राष्ट्रपति भवन में एक अनोखे मिलन में बदल गई। एक राष्ट्रपति बना तो दूसरा मुख्य न्यायाधीश।

Saga of Great Journey of Two Lawyers: यह उन दिनों की बात है जब भारत की आजादी की कवायद चल रही थी। दिसंबर का महीना था, 1946 का साल था। नागपुर में ऑल इंडिया लॉयर्स कांफ्रेंस आयोजित था। कांफ्रेंस में देश के जाने-माने वकीलों का जुटान हो रहा था। इसी कांफ्रेंस में दो वकील भी भाग लेने के लिए चेन्नई पहुंचकर ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस से नागपुर जा रहे थे जो आजाद भारत के इतिहास का अहम हिस्सा बनने वाले थे। किस्मत दोनों अजनबी वकीलों को पहली बार ट्रेन में मिला रही थी। परिचय साझा हुआ तो यात्रा के दौरान दोनों दोस्त बन गए, इस बात से अनजान कि किस्मत उनको दोबारा कब-कहां और कैसे रूबरू कराएगी।

कांफ्रेंस खत्म हुआ। कुछ ही महीनों बाद देश आजाद हुआ। आजाद भारत नवनिर्माण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने लगा। ट्रेन में मिले दो अजनबी जोकि दोस्त बन चुके थे, समय के साथ अपने-अपने करियर-परिवार में रम गए। साल-दर-साल बीतता गया। देखते ही देखते 43 साल बीते चुके थे। एक बार फिर दोनों मिलने जा रहे थे लेकिन इस बार ट्रेन में नहीं, राष्ट्रपति भवन के अशोका हॉल में। मौका था भारत के नए मुख्य न्यायाधीश का शपथ ग्रहण। ट्रेन में मिले दोनों वकील एक बार फिर साथ थे लेकिन दोनों देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान। एक राष्ट्रपति तो दूसरा देश का नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश। तत्कालीन राष्ट्रपति आर.वेंकटरमण ने नवनियुक्त सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी। समारोह के बाद तत्कालीन सीजेआई ईएस वेंकटरमैया ने जब राष्ट्रपति आर.वेंकटरमण को नागपुर ट्रेन यात्रा की याद दिलायी, दोनों चार दशक पूर्व की यात्रा में खो से गए।

तत्कालीन सीजेआई ईएस वेंकटरमैया की बेटी जस्टिस बीवी नागरत्ना ने साझा की यादें

दो वकीलों की इस अनोखी यात्रा की यादें साझा करते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना भी भावुक हो गईं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश होने की कतार में खड़ीं जस्टिस बीवी नागरत्ना एक सेमीनार में पहुंची थीं।

बेंगलुरु में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में वह पहुंची थीं। लॉ स्कूल, मुख्य न्यायाधीश वेंकटरमैया की जन्म शताब्दी के अवसर पर एक व्याख्यान का आयोजन कर रहा है। पूर्व सीजेआई वेंकटरमैया ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद वहां पढ़ाया था। अपने पिता को श्रद्धांजलि देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने उनकी यादों को साझा किया। पिता ईएस वेंकटरमैया को याद कर वह कई बार भावुक भी हो गईं और किसी तरह अपने आंसूओं को सार्वजनिक होने से रोका।

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि वह इसे अपना सौभाग्य मानती हैं कि उन्हें अपने पिता के व्यक्तित्व में जीवन के महत्वपूर्ण सबक मिले। मैं हमेशा उनके मार्गदर्शन में कानून की छात्रा रही हूं। मैंने उनमें व्यक्तित्व की ताकत देखी है, जिसने मेरे व्यक्तिगत विश्वास को और मजबूत किया है। एक अच्छे उद्देश्य के लिए लड़ना सबसे पुरस्कृत करने वाला है। उन्होंने कहा कि उनके पिता का साहित्य और भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम तथा ज्ञान की प्यास ने उन्हें विभिन्न विषयों से परिचित कराया।

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