Vande Mataram Row: राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा शुरू होगी। यह विवाद 1937 में कांग्रेस की ओर से राष्ट्रीय गीत के कुछ पद हटाने को लेकर है। आज लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर चर्चा की शुरुआत करेंगे।
Vande Mataram Controversy History: भारत का इतिहास राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' के बिना अधूरा है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हर भारतीय के दिल में नई आग जलाई। बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने नवंबर 1875 में इस गीत को लिखा था। इस गीत के 150 साल पूरे होने पर सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा में विशेष चर्चा की शुरुआत करेंगे। यह सिर्फ एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उस गीत को सम्मान देने का प्रयास है, जिसने आज़ादी की लड़ाई को नई दिशा दी। लेकिन आज, यह गीत राजनीतिक बहस का सबसे बड़ा मुद्दा बन चुका है, जिसमें बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने खड़ी हैं।
वंदे मातरम् विवाद कैसे शुरू हुआ?
आज जिस वंदे मातरम् को पूरा देश सम्मान देता है, उसके 6 पदों में देवी दुर्गा, सरस्वती और कमला (लक्ष्मी) का जिक्र है। यही वह हिस्सा है, जिसे लेकर आजादी से पहले भी चर्चा हुई और आज भी राजनीतिक घमासान जारी है। 1937 में कांग्रेस ने तय किया कि राष्ट्रीय आयोजनों में सिर्फ पहले दो पद ही गाए जाएंगे, क्योंकि उस समय मुस्लिम समुदाय के कई सदस्यों ने बाकी पदों को धार्मिक रूप से सही नहीं माना था। कांग्रेस ने अपनी प्रस्तावना में लिखा था, 'राष्ट्रीय समारोहों में सिर्फ पहले दो पद ही गाए जाएं…'हालांकि यह भी स्पष्ट किया कि 'हर व्यक्ति को वंदे मातरम् के किसी भी अन्य हिस्से को गाने की पूरी स्वतंत्रता है।'
कांग्रेस ने देवी स्तुति वाले पद हटाकर देश को बांटा- बीजेपी
आज बीजेपी, कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 1937 का फैसला 'राष्ट्र के विभाजन के बीज बोने जैसा था।' बीजेपी का दावा है कि कांग्रेस ने जानबूझकर देवी दुर्गा वाले पद हटाए और तुष्टिकरण की राजनीति की। पिछले महीने बीजेपी प्रवक्ता सीआर केसवन ने नेहरू के नेताजी सुभाष बोस को लिखे पत्रों का हवाला देते हुए कहा, 'नेहरू ने वंदे मातरम् को लेकर आपत्तियों को स्वीकार किया। यह राजनीतिक दबाव में लिया गया फैसला था।' हालांकि, कांग्रेस ने कहा कि पत्रों का गलत अर्थ निकाला जा रहा है। नेहरू ने लिखा था कि गीत को देवी-उपासना मानना 'किसी की गलत व्याख्या' है और गीत में ऐसा कुछ नहीं है जिसे आपत्तिजनक माना जाए।
जिन्होंने कभी वंदे मातरम् नहीं गाया, वे आज ज्ञान दे रहे हैं- कांग्रेस
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'जो लोग आज राष्ट्रवाद के ठेकेदार बने घूम रहे हैं, वे खुद कभी वंदे मातरम् गाते तक नहीं।' कांग्रेस का तर्क है कि 1937 का फैसला रवींद्रनाथ टैगोर की सलाह पर लिया गया था और उद्देश्य सिर्फ यह था कि सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान हो।
वंदेमातरम को लेकर सदन में क्या होगा?
लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी की ओर से यह चर्चा सिर्फ इतिहास का सम्मान नहीं बल्कि गीत को लेकर चल रहे विवाद का जवाब देने का एक बड़ा मंच भी होगा। वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर सरकार चाहती है कि राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक भूमिका, इसके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अर्थ और इसे लेकर पैदा हुआ विवाद इन सब पर एक राष्ट्रीय सहमति बनाई जाए।


