सार
राष्ट्रपति और सीजेआई को लिखे लेटर में कहा गया है कि हम फेक न्यूज और भारत विरोधी एजेंडे को चलाने वाली लॉबी से दु:खी होकर यह लिख रहे हैं।
नई दिल्ली। न्यूयार्क टाइम्स के खुलासे और वेबसाइट न्यूजक्लिक व चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच इमेल के सार्वजनिक होने के बाद पूर्व नौकरशाहों, राजनयिकों व सेवानिवृत्त विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित नागरिकों ने देश के राष्ट्रपति और भारत के मुख्य न्यायाधीश को लेटर लिखकर मामले में हस्तक्षेप कर कार्रवाई की मांग की है। लेटर में आरोप लगाया है कि ईमेल एक्सचेंज सार्वजनिक होने के बाद यह स्पष्ट है कि ये लोग लीडर या जर्नलिस्ट नहीं बल्कि डीलर हैं। लेटर में कहा गया है कि ऐसे राष्ट्र विरोधी, अलोकतांत्रिक प्रेस एजेंडे को खत्म किया जाना चाहिए।
क्या लिखा है लेटर में...
राष्ट्रपति और सीजेआई को लिखे लेटर में कहा गया है कि हम फेक न्यूज और भारत विरोधी एजेंडे को चलाने वाली लॉबी से दु:खी होकर यह लिख रहे हैं। द न्यूयॉर्क टाइम्स की हालिया जांच में समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक को चीन के इशारे पर करोड़पति नेविल रॉय सिंघम द्वारा फंडेड संगठन के रूप में उजागर करना हमारे दर्द और पीड़ा का केंद्र है। सवाल यह उठता है कि क्या हमें ऐसी ताकतों पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए जो गलत सूचनाएं फैला रही हैं और विदेशी शक्तियों के इशारे पर हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रही हैं? क्या हम ऐसी ताकतों को तर्क की, देशभक्ति की, ईमानदारी की आवाज को छोटे-मोटे एजेंडे के लिए दबाने की इजाजत दे सकते हैं? फर्जी खबरें फैलाने के लिए कुख्यात समाचार मीडिया पोर्टल, न्यूज़क्लिक को भारत के प्रति खुले तौर पर शत्रुतापूर्ण देश के साथ संदिग्ध संबंधों का दोषी पाया गया है।
स्वतंत्र प्रेस के नाम पर एजेंडा चलाने का लगाया आरोप
हमारे गुस्से का पहला कारण यह है कि हम 'स्वतंत्र प्रेस' की आड़ में सभी प्रकार की शत्रु शक्तियों को बहुत अधिक बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसी छूट जो किसी भी कानून पर आधारित नहीं है। यह न केवल राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचाती है बल्कि मीडिया के उन वैध अंगों को धूमिल करने का द्वार भी खोलती है जिन्हें निर्विवाद रूप से स्वतंत्र होना चाहिए। दरअसल, 2021 की शुरुआत में ईडी ने 2018 और 2021 के बीच लगभग 76.9 करोड़ रुपये की विदेशी फंडिंग से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ पर छापा मारा था। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नेविल रॉय सिंघम चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की पीआर से जुड़े हैं। कथित तौर पर सिंघम ने न्यूज़क्लिक के शेयरों को भारी प्रीमियम पर खरीदकर एफडीआई के रूप में एक बड़ी राशि हस्तांतरित की। न्यूज़क्लिक को 'सेवाओं के निर्यात' की संदिग्ध आड़ में कई अन्य देशों से विदेशों से भारी और अस्पष्ट रकम भी प्राप्त हुई। न्यूज़क्लिक परिसर में छापेमारी से सीसीपी से जुड़े नियमित ईमेल एक्सचेंजों का पता चला। ये ईमेल आदान-प्रदान चिंताजनक थे क्योंकि इनमें न केवल पत्रकार बल्कि भारत में राजनीतिक दलों के वरिष्ठ सदस्य भी शामिल थे जिनकी राज्य सत्ता तक पहुंच है। यह भी निर्विवाद है कि इसमें शामिल कुछ पत्रकारों को बड़ी रकम का भुगतान किया गया था। वे सभी जो आज प्रेस की स्वतंत्रता के लिए दिखावा कर रहे हैं, उन्होंने केवल तब भी सच्चाई को छुपाया जब हमारी राष्ट्रीय एजेंसियों ने बीजिंग के हितों से सीधे जुड़े 'मीडिया कथा' के निर्माण के लिए सीसीपी द्वारा सरोगेट फंडिंग का खुलासा किया।
चीन के लिए भारत विरोधी काम करने का लगाया आरोप
दूसरी परेशान करने वाली बात यह है कि हम भारतीय करदाता हैं। भारत स्थित एक वेबसाइट चीन के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही है, हमें चिंतित, व्यथित और क्रोधित करती है। इन ताकतों को भारत में न्यूज बनाने के लिए भुगतान किया जा रहा था। वे चीन की प्रतिष्ठा को बचाने के एजेंडे के लिए काम कर रहे हैं। वे चीन को अच्छा दिखाने और भारत को बुरा दिखाने के एजेंडे के लिए काम कर रहे। हद तो यह है कि गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद यह लोग चीन की तरफ से न्यूज बनाने के लिए लगे हुए थे। ऐसे लोगों का वर्णन करने के लिए हमारे पास गद्दार के अलावा कोई शब्द नहीं हैं। वे एक चीनी एजेंट के साथ ईमेल का आदान-प्रदान कर रहे थे कि दुनिया के नक्शे को कैसे बदला जाए ताकि निर्विवाद भारतीय क्षेत्र को या तो विवादित या चीन का हिस्सा दिखाया जा सके।
तीसरा कारण यह कि ये लोग भारतीय लोकतांत्रिक ताने-बाने को कमज़ोर करना चाहते है। चीन द्वारा गुप्त रूप से फंड लेकर स्वतंत्र प्रेस के नाम पर हमारे लोकतंत्र को चुनौती दे रहे। यूज़क्लिक ने भारत की चुनी हुई सरकार को फासीवादियों के रूप में चित्रित करने का दुस्साहस किया है जबकि वह चीन के पेरोल पर है। इससे भी बुरी बात यह है कि भारतीय विपक्ष द्वारा सोशल मीडिया पर चीन के इस मुखपत्र का समर्थन करने के चिंताजनक उदाहरण सामने आए हैं जहां उनकी पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता समर्थन में बोलते हैं। भारत के अन्य राजनीतिक नेता न्यूज़क्लिक को फंड करने वाले एक एनजीओ में भागीदार के रूप में काम करते हैं। यह बेहद भयावह साजिश है। राफेल सौदे का न्यूजक्लिक में कवरेज और विपक्ष द्वारा उसी समय सवाल खड़े करना एजेंडे का ही हिस्सा था।
कार्रवाई की मांग
लेटर लिखने वालों ने मांग किया है कि न्यूजक्लिक वेबसाइट के खिलाफ जांच कर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई की जाए। लेटर पर पूर्व राजदूत भाष्मति मुखर्जी, पूर्व डीजीपी बीएल बोहरा, पूर्व जस्टिस के.श्रीधर राव, पूर्व जस्टिस एसएन धींगरा, पूर्व जस्टिस आरके मेराथिया, पूर्व जस्टिस आरएस राठौड़, पूर्व जस्टिस एमसी गर्ग, पूर्व आईएएस योगेंद्र नारायण, पूर्व आईएएस एलसी गोयल, पूर्व आईपीएस संजीव त्रिपाठी सहित 255 लोगों के नाम शामिल है।
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