इस बार गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सिसी बतौर चीफ गेस्ट शामिल होने भारत में है। मिस्र इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे समय में जब अरब देशों ने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया है, भारत मित्रता निभाने आगे आया है।

नई दिल्ली. इस बार गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सिसी(Abdel Fattah El-Sisi) बतौर चीफ गेस्ट शामिल होने भारत में है। मिस्र इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ऐसे समय में जब अरब देशों ने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया है, भारत मित्रता निभाने आगे आया है। सिसी को गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाना भारत की कूटनीति और इस्लामिक देशों से रिश्ते बेहतर करने की दिशा में एक अच्छी पहल बताई जा रही है। पढ़िए पूरी डिटेल्स…

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतेह अल-सिसी के साथ व्यापक बातचीत की, जिसमें कृषि, डिजिटल डोमेन, संस्कृति और व्यापार सहित कई क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया गया। पीएम मोदी ने कहा-"मिस्र के साथ हमारे बंधन को गहरा करना-प्राकृतिक पुल जो एशिया को अफ्रीका से जोड़ता है। यह पहली बार है कि मिस्र के राष्ट्रपति को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। मिस्र की सेना की एक सैन्य टुकड़ी भी गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेगी। भारत मिस्र के साथ संबंधों का और विस्तार करने का इच्छुक है, जो अरब दुनिया के साथ-साथ अफ्रीका दोनों की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी है। इसे अफ्रीका और यूरोप के बाजारों के लिए एक प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में भी देखा जाता है।

सबसे ने छोड़ा साथ, तब भारत आगे आया

मिस्र पर विदेशी कर्ज बढ़ता जा रहा है। एक समय था, जब खाड़ी देशों में मिस्र अपनी धाक रखता था, लेकिन संकट के समय सभी मुस्लिम देशों ने उसे मुंह फेर लिया है। ऐसे में भारत मदद के लिए आगे आया है। मिस्र पर बाहरी कर्ज बढ़कर करीब 170 अरब डॉलर होने का अनुमान है। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत आदि देशों ने मिस्र की मदद से हाथ पीछे खींच लिए हैं। ऐस में भारत की मदद मिलना मिस्र के लिए एक सुखद पहल है। राष्ट्रपति के साथ 120 सदस्यों का एक दल साथ आया है, जो 26 जनवरी को परेड में कर्तव्य पथ पर मार्च करेगा।

उल्लेखनीय है कि अरब देशों में मिस्र की आबादी सबसे ज्यादा है। इस्लामिक देशों के संगठन (OIC) में एक मात्र इजिप्ट ही ऐसा देश है, जो आतंकवाद और कट्टरता के खिलाफ बात करता है।

सिसी 24 जनवरी की शाम भारत पहुंचे थे। इस दौरान वे मोदी के अलावा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और विदेश मंत्री जयशंकर से भी विशेष मुलाकात करेंगे। इस दौरान कई बड़े समझौते होंगे।

सिसी पीएम मोदी के साथ अकेले में भी वार्ता करेंगे। उसके बाद द्विपक्षीय आधिकारिक वार्ता होगी। दोनों देश तकरीबन आधा दर्जन समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे। दोनों देशों के भावी रिश्तों का एक रोडमैप तैयार हो रहा है।

बता दें कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार कोविड के बाद तेजी से बढ़ा है। वर्ष 2021-22 के दौरान द्विपक्षीय कारोबार 7.26 अरब डालर का था, जो एक वर्ष पहले के मुकाबले 75 प्रतिशत ज्यादा है। इसमें भारत का निर्यात 3.74 अरब डालर का रहा था। दोनों देशों ने वर्ष 2026-27 तक 12 अरब डालर के द्विपक्षीय कारोबार का टार्गेट निर्धारित किया है। भारतीय कंपनियों ने मिस्र में 3.3 अरब डालर का निवेश किया हुआ है।

बता दें कि भारत और मिस्र अपने राजनयिक संबंधों की स्थापना का 75वां मना रहा है। भारत ने G20 अध्यक्षता के दौरान मिस्र को 'अतिथि देश' के रूप में आमंत्रित किया है।

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दोनों देशों के बीच दोस्ती और मजबूत करने का मौका

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सिसी को गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाना कोई साधारण कूटनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि भविष्य की तमाम चुनौतियों से निपटने की भारत की एक गजब पहल है।

मिस्र की आबादी 11 लगभग करोड़ है। यह देश अफ्रीका और एशिया को जोड़ता है। मिस्र के पास इस पूरे क्षेत्र की सबसे बड़ी सेना है। मिस्र की राजधानी काहिरा, अरब लीग के सदस्य देशों की मेज़बानी करती आई है।

विदेशी मामलों के जानकार कहते हैं कि ग्लोबल इश्यूज में मिस्र की मौजूदगी उसकी कूटनीतिक हैसियत से भी अधिक है। भारत की आजादी के बाद लंबे समय तक मिस्र के साथ हमारे बेहतर रिश्ते रहे हैं। हालांकि फिर एक ठहराव आ गया।

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर दोनों नेताओं ने जब 1960 के दशक में शीत युद्ध चल रहा था, तब गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अगुवाई की थी।

1956 में स्वेज नहर के संकट के दौरान मिस्र की मदद के लिए भारत ने बिना किसी को खबर लगे हथियार भेजे थे।

orfonline पर नवदीप सूरी ने इस मामले को लेकर एक विस्तार से लेख लिखा है। इसके एक अंश में कहा गया कि '1960 के दशक में दोनों देशों ने मिलकर लड़ाकू विमान बनाने और परमाणु के क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी विचार किया था। ये वो दौर था जब महात्मा गांधी और रबींद्रनाथ टैगोर के नाम मिस्र के घर घर में गूंजा करते थे और बड़े अरब साहित्यकारों ने उनकी रचनाओं का अरबी में अनुवाद किया था।'

सूरी जिक्र करते हैं कि अब्देल फ़तह अल-सिसी 2014 में तख्तापलट के बाद सत्ता में आए थे। उसके बाद मिस्र ने भारत के साथ रिश्ते बेहतर बनाने के इरादे जताए थे। सिसी, 2015 में दिल्ली मे हुए भारत-अफ्रीका फोरम के शिख़र सम्मेलन में शामिल हुए थे। फिर 2016 में वो राजकीय यात्रा पर भारत आए थे। नरेंद्र मोदी भी 2020 में मिस्र के दौरे पर जाने वाले थे, लेकिन, कोविड-19 महामारी के कारण ऐसा नहीं हो सका।

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