Fact Check: वायुसेना के 4 अफसरों को सर्वोत्तम युद्ध सेवा मेडल (SYSM) से सम्मानित किया गया है। दावा किया जा रहा है कि ऐसा पहली बार है, जब ये पुरस्कार दिया गया, जबकि सच्चाई ये है एयर मार्शल विनोद पटनी को अप्रैल, 2000 में इस अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।
नई दिल्ली। सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि देश के इतिहास में पहली बार भारतीय वायुसेना के जवानों को सर्वोत्तम युद्ध सेवा पदक (SYSM) से सम्मानित किया गया है। भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 4 टॉप वायुसेना अधिकारियों को युद्धकालीन विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किए जाने की घोषणा वाकई उल्लेखनीय है। लेकिन एशियानेट न्यूज ने गहराई से इसकी पड़ताल की तो पाया कि "पहली बार" होने का दावा पूरी तरह गलत है। हकीकत ये है कि SYSM Awards दो दशक से भी पहले कारगिल युद्ध के दौरान एक भारतीय वायुसेना अधिकारी को दिया जा चुका है।
एसवाईएसएम क्या है?
सर्वोत्तम युद्ध सेवा मेडल भारत के सर्वोच्च युद्धकालीन विशिष्ट सेवा पुरस्कारों में से एक है। यह अत्यंत असाधारण सेवा के लिए प्रदान किया जाता है और इसकी प्रतिष्ठा परम विशिष्ट सेवा पदक (PVSM) के बराबर है, जो शांतिकाल में प्रदान किया जाता है। यह परमवीर चक्र या वीर चक्र जैसे वीरता पुरस्कारों से अलग है और युद्ध में विशिष्ट नेतृत्व और सेवा पर केंद्रित है।
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पहले वायुसेना SYSM पुरस्कार विजेता कौन हैं?
1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन को नाको चने चबवाने वाले एयर मार्शल विनोद पटनी (रिटायर्ड) को 1999 के कारगिल युद्ध में उनकी भूमिका के लिए 6 अप्रैल, 2000 को सर्वोत्तम युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित किया गया था। अपने शानदार करियर में उन्होंने कई अहम पदों पर भूमिका निभाई। इनमें जगुआर बेस के कमांडर, लंदन में एयर एडवाइजर, जम्मू और कश्मीर के एयर ऑफिसर कमांडिंग, वेस्टर्न और सेंट्रल वायु कमानों के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ और भारतीय वायुसेना के उप-वायुसेना प्रमुख रहे। 2001 में, रिटायर होने के बाद उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में नियुक्त किया गया।
एयरमार्शल एके भारती
वर्तमान में डायरेक्टर जनरल ऑफ एयर ऑपरेशंस (DGAO) के पद पर कार्यरत, एयर मार्शल एके भारती ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हवाई अभियान की देखरेख की और उन अभियानों की योजना बनाई, जिनमें भारत वायुसेना ने पाकिस्तानी वायुसेना के प्रमुख ठिकानों को नष्ट किया। 1987 में फ्लाइंग ब्रांच में कमीशन प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पहले सुखोई-30 एमकेआई स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी और रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। 2008 में, उन्हें वायु सेना पदक से सम्मानित किया गया।
एयर मार्शल नागेश कपूर
साउथ वेस्टर्न एयर कमांड (SWAC) के एयर ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ नागेश कपूर ने कभी पाकिस्तान में भारत के डिफेंस अटैच के रूप में कार्य किया था। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (1985 बैच) से ग्रैजुएट नागेश कपूर एक अनुभवी लड़ाकू पायलट, योग्य फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और फाइटर कॉम्बैट लीडर हैं। कपूर ने मिग-21 और मिग-29 जैसे विमान भी उड़ाए हैं। उन्होंने एयर मार्शल नर्मदेश्वर तिवारी से एसडब्ल्यूएसी का कार्यभार संभाला, जो अब वायु सेना उप प्रमुख हैं।
एयर मार्शल नर्मदेश्वर तिवारी
वर्तमान में वायु सेना उप प्रमुख एयर मार्शल नर्मदेश्वर तिवारी को 1986 में लड़ाकू पायलट के रूप में कमीशन मिला था। उनके पास 3600 से ज़्यादा फ्लाइंग ऑवर्स का एक्सपीरियंस है। एक क्वालिफाइड फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलट होने के साथ-साथ वे अमेरिका के एयर कमांड एंड स्टाफ कॉलेज से ग्रैजुएट भी हैं।
एयर मार्शल जीतेंद्र मिश्रा
वर्तमान में वेस्टर्न एयर कमांड का नेतृत्व कर रहे एयरमार्शल जीतेंद्र मिश्रा की भूमिका ऑपरेशन सिंदूर में महत्वपूर्ण रही, क्योंकि अधिकांश हवाई युद्ध उनके कार्यक्षेत्र में ही हुआ। उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (पुणे), वायु सेना परीक्षण पायलट स्कूल (बेंगलुरु), वायु कमान एवं स्टाफ कॉलेज (अमेरिका) और रॉयल कॉलेज ऑफ डिफेंस स्टडीज (यूके) से प्रशिक्षण प्राप्त किया है। उनके नाम 3,000 से अधिक फ्लाइंग ऑवर्स हैं।
इन अधिकारियों को भी सम्मान
इसके अलावा नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल प्रतीक शर्मा और डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के ख़िलाफ उनकी ऑपरेशनल लीडरशिप के लिए नामित किया गया है। ऑपरेशन सिंदूर में नौसेना ने भी एक रणनीतिक भूमिका निभाई। पूर्व वेस्टर्न नेवल कमांडर वाइस एडमिरल संजय जे. सिंह को नेवल फोर्सेस को उच्च स्तर की तैयारी रखने के लिए सम्मानित किया गया है।
निष्कर्ष
ऐसे में ये दावा कि पहली बार भारतीय वायुसेना कर्मियों को सर्वोत्तम युद्ध सेवा पदक से सम्मानित किया गया है, झूठा है। यह सम्मान पहली बार 2000 में एयर मार्शल विनोद पटनी को कारगिल युद्ध में उनकी भूमिका के लिए प्रदान किया गया था। हालांकि, 2025 के पुरस्कार अपने आप में ऐतिहासिक हैं, क्योंकि दशकों में पहली बार ऐसा होगा, जब एक ही ऑपरेशन के लिए कई भारतीय वायुसेना अधिकारियों को यह पदक मिलेगा।
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