सार

कहते हैं कि भारतीय न्याय व्यवस्था में देर है, लेकिन अंधेर नहीं! यह खबर इसी का एक उदाहरण है। यह हैं योगेश केलैया। योगेश कभी सरकारी नौकरी में क्लर्क थे। 28 साल पहले अचानक उन्हें नौकरी से रवाना कर दिया गया। तब से वे रिक्शा चला रहे थे। अचानक उन्हें एक खुशखबरी मिली। जानिए क्या है यह खुशखबरी।

राजकोट. यह कहानी लंबे संघर्ष के बाद जीत की है। यह हैं योगेश केलैया। ये कभी जेतपुर नगर निगम में नाका क्लर्क हुआ करते थे। लेकिन एक दिन अचानक उन्हें नौकरी से चलता कर दिया गया। योगेश यह अन्याय बर्दाश्त नहीं कर सके। वे कोर्ट जा पहुंचे। हालांकि केस 28 साल चला। अब उन्हें हाईकोर्ट से न्याय मिला है। गुजरात हाईकोर्ट ने नगर निगम को आदेश दिया है कि वो योगेश की नौकरी बहाल करे।

योगेश ने बताया कि उन्होंने बतौर नाका क्लर्क 850 रुपए महीने की सैलरी पर अस्थायी नौकरी पर रखा गया था। उन्होंने 5 अप्रैल 1989 से 27 दिसंबर 1990 तक नौकरी की। इसके बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। कारण भी नहीं बताया गया। बस इतना कहा गया कि, अब उनकी जरूरत नहीं है। इसके बाद योगेश ने लेबर कोर्ट में याचिका दायर कर दी।

दो बार चलाना पड़ा रिक्शा

योगेश के किस्मत बार-बार पलटी मारती रही। उन्हें एक बार नहीं, दो बार रिक्शा चलाना पड़ा। उन्हें रिक्शा चलाकर करीब 200 रुपए तक कमाई हो जाती है। वे बताते हैं कि 2007 में लेबर कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया था। लेकिन नगर निगम इसके खिलाफ हाईकोर्ट चला गया। 2014 में गुजरात हाईकोर्ट ने योगेश के खिलाफ फैसला सुनाया। यानी उन्हें फिर से नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद योगेश को फिर से रिक्शा चलाना पड़ा। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और इस आदेश के खिलाफ अपील कर दी। कुछ दिन पहले हाईकोर्ट की बैंच ने पुराना फैसला पलट दिया। योगेश के मुताबिक, इस तरह नौकरी से निकालना इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट ऐक्ट, 1947 के सेक्शन 25 (एफ) का उल्लंघन था।  लिहाजा नगर निगम को फिर से उन्हें नौकरी पर रखना पड़ा। अब योगेश फिर से रिक्शा छोड़कर नौकरी पर जाएंगे।