सार

दीपेश कुमारी जब अपने घर पहुंची तो उनका जोरदार स्वागत हुआ। उसके इस स्वागत में घरवालों के साथ गांव वाले भी शामिल रहे। इसके बाद उन्होने जरूरतमंद की मदद करने का वादा किया..

भरतपुर. यूपीएससी में 93 वीं रैंक हासिल करने वाली दीपेश कुमारी ने बचपन से ही अपने माता-पिता को संघर्ष करते देखा। आर्थिक तंगी के हालात में माता पिता दिन रात मेहनत करके अपने 5 बच्चों को पालते पोषते रहे। माता पिता के संघर्ष और तपस्या का ही परिणाम है कि आज दीपेश कुमारी ने दूसरे ही प्रयास में यूपीएससी में सफलता हासिल कर ली है। अब दीपेश कुमारी समाज के ऐसे जरूरतमंद लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाएंगे जो तमाम सुविधाओं से वंचित हैं। 


घर पहुंचने से पहले ही स्वागत
बुधवार को दीपेश कुमारी यूपीएससी में सफल होने के बाद भरतपुर शहर के अटलबंध क्षेत्र स्थित अपने घर पहुंची। माता पिता, भाई बहन ही नहीं बल्कि गली मोहल्ले के लोगों ने दीपेश के स्वागत में पलक पांवड़े बिछा दिए। अपने मोहल्ले कंकड़ वाली कुईया स्थित घर पहुंची तो मोहल्लेवासियों ने माला पहनाकर स्वागत किया। मां ऊषा की आंखों से तो आंसू ही नहीं रुक रहे थे। नाम रोशन करने वाली अपनी दुलारी को देर तक गले लगाकर रोती रही और लाड़ करती रही। दीपेश कुमार ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, भाई बहन, परिजन और पढ़ाई में मदद करने वाले शिक्षकों को दिया। उन्होने बताया कि उसके माता-पिता हमेशा कहते हैं के जीवन में परेशानियां तो बहुत आती है। लेकिन जो व्यक्ति परेशानियों को हटाकर भी ऊंचा सोच सके वही लीडर है। 

जरूरतमंद की करेंगी मदद

दीपेश ने बताया कि भविष्य में कोई भी उनके जैसा जरूरतमंद जिसे कोई सुविधा नहीं मिल पा रही है और वो उनकी क्षमता में है तो उसकी मदद करने की कोशिश करूंगी। सर्विस में मुझे जो भी जिम्मेदारी मिलेंगी मैं उन्हें पूरी ईमानदारी से निभाऊंगी। 

ईकोनॉमिकल तंगी बाधा नहीं मोटिवेशन

दीपेश कुमार ने बताया कि आर्थिक तंगी की वजह से परेशानियां आ सकती हैं लेकिन वो रुकावट नहीं बन सकती। बल्कि आर्थिक परेशानियां आपको मोटिवेशन देती हैं कि आप ज्यादा पढ़ें, ज्यादा मेहनत करें। उन्होंने कहा कि यूपीएससी में हिंदी व इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई का कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा। यूपीएससी में कई हिंदी मीडियम के अभ्यर्थियों का भी चयन हुआ है। दीपेश कुमार ने बताया कि उन्होंने खुद 12वीं तक की पढ़ाई हिंदी मीडियम स्कूल में की थी। 

भरतपुर के इतिहास नॉलेज ने मदद की
दीपेश कुमार ने बताया कि यूपीएससी इंटरव्यू में उनसे भरतपुर के इतिहास, लोहागढ़, महाराजा सूरजमल और यहां के एग्रीकल्चर बैकग्राउंड से संबंधित सवाल किए। गौरतलब है कि दीपेश के पिता गोविंद बीते 25 साल से ठेला पर सांक बेचकर परिवार पाल रहे हैं। परिवार में दीपेश की एक और बहन व तीन भाई हैं।

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