सार
अक्सर लोग गाय के गोबर को बेकार समझकर फेंक देते हैं, लेकिन वह कई चीजों को बनाने के काम आता है। आप घर बैठे वह भी गांव में रहकर इससे लाखों रुपए की इनकम कर सकते हैं। राजस्थान की कविता मुंबई और दिल्ली से एमबीए करने के बाद गोबर से लाखों रुपए कमा रही है।
झुंझुनूं(राजस्थान). बच्चों को अक्सर ये कहकर प्रेरित किया जाता है कि 'पढ़ लो वरना गोबर उठाना पड़ेगा'। लेकिन, राजस्थान के झुंझुनूं जिले की कविता जाखड़ ऐसी शख्सियत है जिसने दिल्ली से ग्रेजुएशन व मुंबई से एमबीए करने के बाद खुद ही गोबर उठाने का काम चुना है। खास बात ये है कि वह उस गोबर से ही एक लाख रुपए महीना बचा रही है। लिहाजा कविता सुर्खियों में आने के साथ बेरोजगारों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बन गई है।
अंग्रेजी माध्यम में की पढ़ाई, खुद की बॉस बनने की थी चाह
कविता जाखड़ ने अपनी पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से की है। कक्षा 10 में 10 सीजीपीए और 12 में करीब 92 फीसदी अंक लाने के बाद कविता ने दिल्ली विश्वविद्यालय से फस्र्ट डिविजन में ग्रेजुएशन की। इसके बाद मुम्बई के प्रतिष्ठित कॉलेज से फस्र्ट डिविजन से ही एमबीए किया। बकौल कविता वह शुरू से ही किसी के अधीन काम नहीं कर खुद की बॉस बनने का सपना संजाए थी। जिसका अवसर उसे लॉकडाउन में मिल गया।
कोरोना काल में शुरू किया स्टार्टअप
कविता बताती है कि मुंबई से एमबीए करने के दौरान ही कोरोना की वजह से देश में लॉकडाउन लग गया। इस पर वह अपने गांव खुडाना लौट आई। यहां उसे वर्मी कंपोस्ट के स्टार्टअप का विचार आया। जिसे साकार करने के लिए उसने झुंझुनूं के रीको औद्योगिक क्षेत्र में वर्मी कम्पोस्ट प्लांट लगाया। जिसमें गाय के गोबर से वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू किया गया। बेहतरीन पेकिंग के साथ जब वर्मी कम्पोस्ट बेचना शुरू किया तो बाजार में मांग बढऩे लगी। देखते देखते सालभर में ही काम रफ्तार पकड़ गया। बकौल कविता वह गोबर का वर्मी कम्पोस्ट बेचकर हर माह करीब एक लाख रुपए की बचत कर रही है।
केंचुओं का भी कारोबार, मां करती है मदद
वर्मी कंपोस्ट के अलावा कविता कैंचुएं का भी व्यापार करती है। जो 300 रुपए किलो तक बेचे जाते हैं। बकौल कविता गोबर पर केंचुए डालने के बाद कंपोस्ट करीब तीन महीने में तैयार हो जाता है। वहीं नमी के अनुसार कैंचुए भी 90 दिन में दो गुने हो जाते हैं। कविता के काम में मां मनोज देवी भी मदद कर रही है। कविता के पिता सुरेन्द्र जाखड़ सेना से सेवानिवृत हैं।