सार
Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 27 मार्च, सोमवार को है। महर्षि कात्यायन की पुत्री होने से देवी का ये नाम पड़ा। देवी के इस रूप की पूजा से रोग, शोक, संताप और डर आदि नष्ट हो जाते हैं।
उज्जैन. चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर देवी कात्यायनी (Devi Katyayani) की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 27 मार्च, सोमवार को है। (Chaitra Navratri 2023) मां की चार भुजाएं हैं। दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है। देवी कात्यायनी की पूजा से हर तरह के दुख दूर हो जाते हैं। आगे जानिए देवी कात्यायनी की पूजा विधि, मंत्र, आरती और कथा
ये है देवी कात्यायनी की पूजा विधि (Devi Katyayani Ki Puja Vidhi)
- 27 मार्च, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और देवी कात्यायनी की तस्वीर साफ जगह स्थापित करें।
- पहले फूल माला पहनाएं, कुमकुम का तिलक लगाएं। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक जलाएं। देवी को लाल चुनरी, लाल फूल, लाल चूड़ी आदि चीजें भी अर्पित करें।
- मां कात्यायनी को शहद के साथ-साथ फल व मेवों का भोग भी लगाएं। नीचे लिखे मंत्र का जाप करे के बाद देवी की आरती करें-
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
देवी कात्यायनी की आरती (Devi Katyayani Ki Aarti)
जय जय अम्बे जय कात्यानी, जय जगमाता जग की महारानी
बैजनाथ स्थान तुम्हारा, वहा वरदाती नाम पुकारा
कई नाम है कई धाम है, यह स्थान भी तो सुखधाम है
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी, कही योगेश्वरी महिमा न्यारी
हर जगह उत्सव होते रहते, हर मंदिर में भगत है कहते
कत्यानी रक्षक काया की, ग्रंथि काटे मोह माया की
झूठे मोह से छुडाने वाली, अपना नाम जपाने वाली
बृह्स्पतिवार को पूजा करिए, ध्यान कात्यानी का धरिये
हर संकट को दूर करेगी, भंडारे भरपूर करेगी
जो भी माँ को 'चमन' पुकारे, कात्यायनी सब कष्ट निवारे।
जानें देवी कात्यायनी की पूजा (Devi Katyayani Ki Kahani)
पुराणों के अनुसार, किसीस समय कात्यायन नाम के एक ऋषि थे। उन्होंने देवी को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक कठिन तपस्या की। प्रसन्न होकर एक दिन देवी ने महर्षि कात्यायन को दर्शन दिए। तब महर्षि कात्यायन ने वरदान में देवी की तरह एक पुत्री की इच्छा प्रकट की। देवी ने उन्हें ये वरदान दे दिया। तब देवी ने स्वयं महर्षि कात्ययान की पुत्री के रूप में जन्म लेकर इस वरदान को पूरा किया। महर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने से देवी का नाम कात्यायनी पड़ा।
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