Durva Ganpati Vrat 2025: सावन मास में किया जाने वाला दूर्वा गणपति व्रत बहुत ही विशेष होता है। इस बार ये व्रत 28 जुलाई को किया जाएगा। इस दिन कईं शुभ योग भी बनेंगे, जिससे इस व्रत का महत्व और भी अधिक हो गया है।
Durva Ganpati Vrat 2025 Kab Hai: धर्म ग्रंथों में सावन की चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व बताया गया है। इस महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को दूर्वा गणपति व्रत किया जाता है। इसे विनायकी चतुर्थी भी कहते हैं। इस व्रत में भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है और दूर्वा विशेष रूप से चढ़ाई जाती है, इसलिए इसे दूर्वा गणपति व्रत कहते हैं। इस बार ये व्रत 28 जुलाई, सोमवार को किया जाएगा। स्कंदपुराण, शिवपुराण और गणेश पुराण में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है। जानिए दूर्वा गणपति व्रत की पूजा विधि, मुहूर्त, मंत्र आदि डिटेल…
दूर्वा गणपति व्रत 2025 शुभ योग
28 जुलाई, सोमवार को सावन का तीसरा सोमवार रहेगा। सावन सोमवार पर चतुर्थी तिथि का संयोग बहुत ही दुर्लभ माना जाता है। सोमवार को परिघ, शिव, ध्वजा और श्रीवत्स नाम के 4 शुभ योग भी बन रहे हैं। शिव योग में दूर्वा गणपति का व्रत करना बहुत ही शुभ फल देने वाला माना गया है। इनके अलावा इस दिन गुरु और शुक्र की युति से गजलक्ष्मी और सूर्य व बुध की युति से बुधादित्य नाम का राजयोग भी रहेगा।
दूर्वा गणपति 2025 पूजा के शुभ मुहूर्त
सुबह 05:59 से 07:38 तक
सुबह 09:16 से 10:55 तक
दोपहर 12:07 से 12:59 तक (अभिजीत मुहूर्त)
दोपहर 02:11 से 03:50 तक
शाम 05:28 से 07:06 तक
दूर्वा गणपति व्रत पर कब निकलेगा चंद्रमा?
दूर्वा गणपति व्रत में भगवान श्रीगणेश के बाद चंद्रमा की पूजा भी की जाती है। इसके बाद ही ये व्रत पूर्ण होता है। 28 जुलाई, सोमवार को चंद्रमा उदय रात 08 बजकर 55 मिनिट पर होगा। अलग-अलग शहरों में चंद्रोदय के समय में आंशिक परिवर्तन आ सकता है।
इस विधि से करें दूर्वा गणपति व्रत-पूजा (Durva Ganpati Vrat Puja Vidhi)
- 28 जुलाई, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें यान कुछ भी खाएं नहीं। अगर ऐसा करना संभव हो तो फलाहार कर सकते हैं।
- ऊपर बताए गए किसी शुभ मुहूर्त में लकड़ी की चौकी पर श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा को कुंकुम से तिलक कर फूलों की माला पहनाएं। शुद्ध घी का दीपक भी जलाएं।
- ऊं गं गणपतयै नम: मंत्र बोलते हुए एक-एक करते हुए अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल, इत्र, सुपारी, जनेऊ, पचरंगी धागा, पान आदि चीजें चढ़ाएं। दूर्वा पर हल्दी लगाकर इन्हें भी श्रीगणेश को अर्पित करें।
- गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग श्रीगणेश को लगाएं। अंत में आरती करें और प्रसाद भक्तों में बांट दें। संभव हो तो भगवान श्रीगणेश के मंत्रों का जाप भी कुछ देर तक कर सकते हैं।
- रात को चंद्रमा उदय होने पर जल से अर्घ्य दें और फूल-चावल, कुमकुम चढ़ाकर पूजा करें। चंद्रमा की पूजा करने के बाद पहले प्रसाद खाएं इसके बाद भोजन करें। इस व्रत से आपकी हर इच्छा पूरी हो सकती है।
गणेशजी की आरती (Ganesh ji Ki Aarti)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।
