सार
Ganesh Chaturthi 2024: इस बार गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा। शिवजी द्वारा श्रीगणेश का सिर काटने वाली बात तो सभी जानते हैं, लेकिन महादेव ने ऐसा क्यों किया, इसके बारे में कम ही लोगों को पता है।
Interesting stories related to Shri Ganesh: धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। श्रीगणेश से जुड़ी कई कथाएं पुराणों में पढ़ने को मिलती हैं। शिवजी द्वारा गणेशजी का मस्तक काटने की कथा तो सभी जानते हैं, लेकिन महादेव ने ऐसा क्यों किया, इसकी असली वजह बहुत कम लोगों को पता है। दरअसल एक श्राप के कारण महादेव ने ऐसा करना पड़ा। आगे जानिए क्या है ये कथा…
ब्रह्मवैवर्तपुराण में लिखी ये कथा
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार ‘एक बार देवऋषि नारद घूमते-घूमते भगवान विष्णु के पास गए और बोले कि ‘हे भगवान, महादेव तो सभी की पीड़ा दूर करने वाला और सर्वज्ञ हैं यानी उन्हें भूत-भविष्य और वर्तमान सभी का ज्ञान है तो फिर उन्हें अपने ही पुत्र श्रीगणेश का मस्तक क्यों किया। क्या इसके पीछे कोई खास कारण है?’
भगवान विष्णु ने बताई वजह
भगवान विष्णु ने नारदजी से कहा कि ‘प्राचीन समय भगवान शिव को दो परम भक्त थे, उनका नाम था माली और सुमाली। वे दोनों किसी भी देवता से नहीं डरते थे। एक बार सूर्यदेव से उन दोनों का भीषण युद्ध हुआ। सूर्यदेव से जब वे पराजित होने लगे तो उन्होंने महादेव को पुकारा। महादेव तुरंत वहां आ गए।’
महादेव ने किया सूर्यदेव पर वार
भगवान विष्णु ने बताया कि ‘अपने भक्तों को संकट में देख महादेव ने अपने त्रिशूल से सूर्यदेव पर प्रहार किया, जिससे वे निश्तेज यानी बेहोश होकर रथ से नीचे गिर पड़े। उस समय सूर्यदेव के पिता महर्षि कश्यप भी वहां आ गए और अपने पुत्र को इस अवस्था में देख बहुत क्रोधित हुए।’
शिवजी को दिया श्राप
अपने पुत्र सूर्यदेव की अवस्था देख महर्षि कश्यप ने महादेव को श्राप दिया कि ‘तुम्हारे प्रहार के कारण आज मेरे पुत्र की जो अवस्था हुई है, ऐसी ही स्थिति एक दिन आपके हाथों आपके पुत्र की भी होगी।’ जब भोलेनाथ का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने सूर्यदेव को पुन: स्वस्थ कर दिया।
इसलिए काटा श्रीगणेश का मस्तक
जब ऋषि कश्यप ने अपने पुत्र सूर्यदेव को स्वस्थ देखा तो उन्हें अपने श्राप देने पर पछतावा हुआ। पर महादेव ने तब भी महर्षि कश्यप के इस श्राप को खुशी-खुशी स्वीकार किया। इसी श्राप के कारण ही महादेव को श्रीगणेश का मस्तक अपने ही त्रिशूल से काटना पड़ा।
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