सार
Holashtak 2023 Date:ज्योतिष शास्त्र में होलाष्टक को अशुभ समय माना गया है यानी इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए। होलाष्टक के लेकर और भी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं। होलाष्टक में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि सभी कार्य वर्जित माने गए हैं।
उज्जैन. इस बार होली उत्सव 8 मार्च को है, इसके एक दिन पहले होलिका दहन किया जाएगा। होली के 8 दिन पहले होलाष्टक (Holashtak 2023) शुरू हो जाता है, इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, हालांकि इस परंपरा को लेकर ज्योतिषियों में मतभेद भी है। होलाष्टक में सिर्फ भगवान की भक्ति करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आगे जानिए इस बार कब से कब तक रहेगा होलाष्टक और इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…
जानें कब से कब तक रहेगा होलाष्टक? (Holashtak 2023 Date)
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रवीण द्विवेदी के अनुसार, होलाष्टक का आरंभ होलिका दहन से 8 दिन पहले शुरू होता है यानी फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि से। इस बार ये तिथि 27 फरवरी को है। यानी होलाष्टक 28 फरवरी से शुरू होकर 8 मार्च तक रहेगा। होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, गृह आरंभ, मुंडन कर्म आदि कार्य निषेध माने गए हैं। हालांकि किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए ये समय बहुत शुभ माना गया है।
ज्योतिषियों में है मतभेद
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार, होलाष्टक से जुड़े नियम सिर्फ गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब के कुछ हिस्सों पर ही लागू होते हैं, पूरे देश में नहीं। इसलिए जहां ये नियम लागू नहीं होता, वहां के लोग होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य कर सकते हैं, लेकिन इसके पहले किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श
जरूर लें।
होलाष्टक में वर्जित कार्य 2023 (What not to do in Holashtak)
होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नए काम की शुरुआत, सगाई, वाहन खरीदी आदि काम नहीं किए जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से इन कामों का शुभ फल प्राप्त नहीं होता और न ही इन कामों में मनचाही सफलता प्राप्त होती है।
होलाष्टक को क्यों मनाते हैं अशुभ? (Belief related to Holashtak)
- होलाष्टक की मान्यता भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद से जुड़ी मानी जाती है। उसके अनुसार, राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को भगवान विष्णु की भक्ति से हटने के लिए कई बार कहा, लेकिन वह नहीं माना।
- क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद का वध करने की सोची। इसके लिए कई दिनों तक उसे अलग-अलग तरह से यातनाएं दी गई, लेकिन फिर भी प्रह्लाद के मन से भगवान विष्णु की भक्ति कम नहीं हुई।
- अंत में अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद ली। होलिका को भगवान ब्रह्मा ने आग में ना जलने का वरदान दिया था। इसी व्रत के अभिमान में होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई।
- लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए और होलिका अग्नि में भस्म हो गई। होलिका दहन से पहले लगातार आठ दिनों तक विष्णु भक्त प्रहलाद यातनाएं झेली थी, इसलिए ये समय अशुभ माना जाता है और इसे ही होलाष्टक कहते हैं।
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