सार

Chhath Puja Katha: छठ महापर्व उत्तर भारत का सबसे प्रमुख त्योहार है। ये त्योहार दिवाली के बाद मनाया जाता है। इस दौरान सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा का विधान है। ये पर्व सबसे पहले किसने मनाया था, इससे जुड़ीं कईं कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती है।

 

Chhath Puja stories: इस बार छठ महापर्व 17 से 20 नवंबर तक मनाया जाएगा। 19 नवंबर, रविवार को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। छठ महापर्व वैसे तो पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन उत्तर भारत में इसकी रौनक देखते ही बनती है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारंखड में लगभग हर घर में छठ पूजा की जाती है। इस पर्व से जुड़ी कईं कथाएं और मान्यताएं हैं। छठ पर्व की शुरूआत कैसे हुई और इस पर्व से जुड़ी 4 कथाएं इस प्रकार हैं…

कैसे हुई छठ पूजा की शुरूआत? (How did Chhath Puja start?)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, सतयुग में प्रियवद नाम के एक न्यायप्रिय राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी, जिससे वे काफी दुखी रहते थे। यज्ञ के प्रभाव से उनके घर में एक बालक का जन्म हुआ लेकिन वह मृत निकला। राजा प्रियवद जब उसका अंतिम संस्कार करने श्मशान ले गए गए तो वहां षष्ठी देवी प्रकट हुई और उन्होंने उस मृत बालक को जीवित कर दिया। उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि थी। प्रसन्न होकर राजा प्रियवद उस दिन षष्ठी देवी यानी छठी मैया की पूजा की, तभी ये परंपरा चली आ रही है।

त्रेता युग में राम-सीता ने भी सूर्यदेव की पूजा
मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम और देवी सीता ने भी छठ पूजा की थी। रावण का वध करने के बाद जब श्रीराम अयोध्या आए और राज-पाठ संभाला तो कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि पर श्रीराम ने देवी सीता के साथ छठी मैया और सूर्यदेव की विधि-विधान से पूजा की। इस तरह त्रेता युग में भी छठ पूजा का वर्णन मिलता है।

द्वापर युग में द्रौपदी ने की सूर्य पूजा
कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में पांडवों ने भी छठ पूजा की थी। पांडव जिस अक्षय पात्र से भोजन प्राप्त करते थे, वह भी सूर्यदेव ने ही उन्हें दिया था। वनवास के दौरान द्रौपदी सहित सभी पांडव हर वर्ष कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को छठ पूजा करते थे। इसी व्रत के प्रभाव से पांडवों को उनका राज्य पुन: मिल पाया।

कर्ण भी था सूर्य भक्त
कर्ण भगवान सूर्य का पुत्र तो था ही, साथ ही वह उनका भक्त भी था। कर्ण प्रतिदिन सूर्य पूजा किया करता था और साथ ही वह कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि पर छठ पूजा भी करता था। इस मौके पर कर्ण जरूरतमंदों को उसकी इच्छा अनुसार दान देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने।


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