सार

Kaal Bhairav Jayanti 2023: धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव ने समय-समय पर अनेक अवतार लिए, इनमें से एक है कालभैरव। कालभैरव का स्वभाव अत्यंत क्रोधी है और इनका स्वरूप भी काफी विचित्र है।

 

Kaal Bhairav Jayanti 2023 Kab Hai: हर साल अगहन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इसे कालभैरव जयंती भी कहते हैं। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान शिव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। इस बार ये तिथि 5 दिसंबर, मंगलवार को है। इस विधि भगवान कालभैरव की पूजा विशेष रूप से की जाती है। आगे जानिए कालभैरव अष्टमी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, महत्व और आरती सहित पूरी डिटेल…

पूजा के शुभ मुहूर्त (Kalabhairav Ashtami 2023 Shubh Muhurat)
वैसे तो कालभैरव अष्टमी पर पूजा निशित काल यानी रात में 12 बजे की जाती है, लेकिन भक्त अपनी सुविधा अनुसार, दिन में भी आगे बताए गए शुभ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं…
- सुबह 10:53 से दोपहर 12:12 तक
- दोपहर 12:12 से 01:30 तक
- शाम 07:06 से 08:48 तक
- रात 10:30 से 12:12 तक (निशित काल मुहूर्त)

इस विधि से करें भगवान कालभैरव की पूजा (Kalabhairav Ashtami 2023 Puja Vidhi)
- 5 दिसंबर, मंगलवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर भगवान कालभैरव का ध्यान करें और ऊपर बताए गए किसी शुभ मुहूर्त से पहले पूजा की तैयारी कर लें।
- घर में किसी हिस्से को पानी से धोकर पवित्र कर लें और गंगाजल भी छिड़क लें। यहां लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर इसके ऊपर भगवान कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- भगवान कालभैरव को फूल माला अर्पित करें। कुमकुम से तिलक करें और चौमुखा दीपक लगाएं, इसमें सरसों का तेल डालें। इसके बाद एक-एक करके पूजन सामग्री गुलाल, अबीर, रोली आदि चढ़ाते रहें।
- इसके बाद नारियल, मिठाई, पान, मदिरा आदि चीजें चढ़ाएं। आरती करें और बटुक भैरव कवच का पाठ करें। इस तरह भगवान कालभैरव की पूजा करने से हर तरह की परेशानी दूर हो सकती है।

भगवान काल भैरव की आरती (Kalabhairav Arti)
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैंरव देवा।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा।।
तुम्हीं पाप उद्धारक दुख सिंधु तारक।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक।।
वाहन शवन विराजत कर त्रिशूल धारी।
महिमा अमिट तुम्हारी जय जय भयकारी।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होंवे।
चौमुख दीपक दर्शन दुख सगरे खोंवे।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी।
कृपा करिए भैरव करिए नहीं देरी।।
पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू डमकावत।
बटुकनाथ बन बालक जन मन हर्षावत।।
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावें।
कहें धरणीधर नर मनवांछित फल पावें।।


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