सार

Devi Lakshmi Aarti ON Diwali 2023: हर साल कार्तिक मास में दिवाली पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 12 नवंबर, रविवार को है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा के बाद आरती करने का भी विधान है। देवी लक्ष्मी की आरती करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

 

Devi Lakshmi Aarti Tips: धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या पर ही देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थीं। इसलिए हर साल इस तिथि पर देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा के बाद आरती भी जरूर की जाती है। आरती करते समय कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। आगे जानिए कैसे करें देवी लक्ष्मी की आरती…

इस विधि से करें देवी लक्ष्मी की आरती
- सबसे पहले जिस थाली में दीपक रखकर आरती करनी है, उसमें कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं। देवी लक्ष्मी की आरती के लिए शुद्ध घी के दीपक का उपयोग करें तो बेहतर रहेगा। इसके बाद आरती शुरू करें।
- देवी लक्ष्मी की मूर्ति के चरणों में चार बार आरती घुमाएं, दो बार नाभि वाले हिस्से पर, एक बार चेहरे पर और सात बार पूरी मूर्ति पर घुमाएं। इस तरह चौदह बार आरती देवी लक्ष्मी के चित्र या प्रतिमा के सामने घुमानी चाहिए।
- आरती हमेशा घड़ी के कांटों की दिशा में लयबद्ध तरीके से करनी चाहिए, बीच में रूकना नहीं चाहिए। आरती करते वक्त घंटी और ताली एक लय में बजाएं। आरती गाते हुए सूर और लय का ध्यान रखें।
- इसके बाद कर्पूर आरती भी जरूर करें। अंत में कलश से जल लेकर आरती के ऊपर छिड़क लें। इसके बाद सबसे पहले देवी लक्ष्मी और बाद में अन्य लोगों को आरती दें।

देवी लक्ष्मी की आरती हिंदी में (Devi Lakshmi Aarti Lyrics in Hindi)
ऊं जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु-धाता।। ऊं।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊं...।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊं...।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधिकी त्राता।। ऊं...।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता।। ऊं...।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।। ऊं...।।
शुभ-गुण-मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।। ऊं...।।
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ऊं...।।


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