सार

Devi Shailputri: शारदीय नवरात्रि के पहले दिन देवी यानी प्रतिपदा तिथि पर देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 3 अक्टूबर, गुरुवार को है। इनकी पूजा से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

 

Navratari 2024 First Day Puja Details: हर साल आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इन 9 दिनों में रोज देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा का विधान है। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस बार देवी शैलपुत्री की पूजा 3 अक्टूबर, गुरुवार को की जाएगी। देवी शैलपुत्री की पूजा से महिलाओं का सौभाग्य बना रहता है। आगे जानिए देवी शैलपुत्री की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, आरती और कथा…

ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त (Navratari 3 October 2024 Shubh Muhurat)
- सुबह 06:15 से 07:22 तक
- सुबह 11:46 से दोपहर 12:33 तक
- सुबह 10:41 से दोपहर 12:10 तक
- दोपहर 12:10 से 01:38 तक
- शाम 04:36 से 06:04 तक
- शाम 06:04 से 07:36 तक

मां शैलपुत्री की पूजा विधि-मंत्र (Devi Shilputri Puja Vidhi-Mantra)
- देवी शैलपुत्री की पूजा से पहले घर का कोई हिस्सा अच्छी तरह से साफ करें। वहां एक लकड़ी के पटिए के ऊपर देवी शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
- सबसे पहले देवी को तिलक लगाएं और फूल अर्पित करें। गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। अबीर, गुलाल, रोली, फल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें।
- इसके बाद देवी को गाय के देसी घी का भोग लगाएं। नीचे लिखे मंत्र का जाप कम से कम 11 बार करें और फिर देवी की विधि-विधान से आरती करें।

मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

देवी शैलपुत्री की आरती ( Devi Shilputri Aarti)
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

जानें देवी शैलपुत्री की कथा (Story of Devi Shailputri)
जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर आत्मदाह कर लिया तो फिर उनका जन्म पर्वतों का राजा हिमालय के यहां पुत्री रूप में हुआ। हिमालय का ही एक नाम शैल है। देवी का यह नाम पर्वतों के राजा हिमालय के यहां जन्म लेने से पड़ा। इनका मूल नाम पार्वती था। देवी ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पत्नी के रूप में स्वीकार किया।


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