सार
Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन यानी द्वितिया तिथि पर मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। इस बार ये तिथि 4 अक्टूबर, शुक्रवार को है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में जीवन में सुख-शांति आती है।
Navratri 2024 Devi Brahmacharini Puja Vidhi: इस बार शारदीय शारदीय नवरात्रि का पर्व 3 अक्टूबर, गुरुवार से शुरू हो चुका है, जो 11 अक्टूबर, शुक्रवार तक मनाया जाएगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार, नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी मां का ये स्वरूप बहुत ही सौम्य और शांत है। आगे जानिए देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, मंत्र, आरती और कथा सहित पूरी डिटेल…
पूजा के शुभ मुहूर्त (Navratri 4 October 2024 Shubh Muhurat)
- सुबह 07:51 से 09:19 तक
- सुबह 11:51 से दोपहर 12:38 तक (अभिजीत मुहूर्त)
- दोपहर 12:15 से 01:43 तक
- शाम 04:39 से 06:07 तक
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा (Devi Brahmacharini Ki Puja Vidhi)
- घर में एक स्थान को साफ करें और इसे गौमूत्र छिड़ककर पवित्र कर लें। यहां पर लकड़ी के एक पटिए पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाकर देवी ब्रह्मचारिणी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
- सबसे पहले देवी को तिलक लगाएं, फूलों की माला पहनाए और शुद्ध घी का दीपक लगाएं। बाजोट पर ही पानी से भरा कलश रखें। देवी को लाल चुनरी ओढ़ाएं और ये मंत्र बोलें-
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।
- मंत्र बोलने के बाद देवी को अबीर, गुलाल, फूल, फल, लौंग आदि चीजें चढ़ाएं। देवी को गन्ने का भोग लगाएं। गन्ना न हो तो गुड़ या शक्कर का भोग भी लगा सकते हैं। इसके बाद आरती करें।
ब्रह्माचारिणी देवी की आरती (Devi Brahmacharini Ki Aarti)
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता। जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए। कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर। जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना। मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी।
ये है देवी ब्रह्मचारिणी की कथा (Devi Brahmacharini Ki Katha)
जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञकुण्ड में कूदकर आत्मदाह कर लिया तो उनका अगला जन्म पर्वतों के राजा हिमालय के यहां पुत्री रूप में हुआ। इस जन्म में उनका नाम पार्वती थी। इस जन्म में भी वे भगवान शिव को ही पति रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की। तपस्या करने के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। देवी ब्रह्मचारिणी को तप की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। ग्रंथों के अनुसार…
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
यानी देवी का स्वरूप बहुत ही सौम्य और शांत है। इनके दाहिने हाथ मे जप की माला है, बांए हाथ में कमंडल है। ये सफेद वस्त्र पहनती हैं। इनकी पूजा से मन शांत रहता है।
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