Budh Pradosh Vrat: सावन का दूसरा प्रदोष व्रत 6 अगस्त को पड़ रहा है। भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए जानिए कैसे रखें इस दिन वॅत? क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि।

Pradosh Vrat Puja Vidhi: सावन का पवित्र महीना चल रहा है। इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का रिवाज है। सावन का दूसरा प्रदोष व्रत अगस्त महीने में पड़ने वाला है। श्रावण महीने की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ये व्रत रखा जाएगा। सावन का दूसरा प्रदोष व्रत बुधवार के दिन पड़ने वाला है। ऐसे में ये व्रत बुध प्रदोष व्रत कहलाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 6 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 8 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 7 अगस्त के दिन 2 बजकर 27 मिनट पर होगा। वहीं, प्रदोष व्रत का शुभ मुहर्त 6 अगस्त के दिन 7:08 PM से लेकर 9:16 PM तक रहने वाला है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत से जुड़ी और खास बातों के बारे में यहां।

प्रदोष व्रत विधि

सबसे पहले जल्दी उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ कपडे़ पहने। मंदिर को गंगाजल से धोकर पवित्र करें। यदि आप व्रत रखने जा रहे हैं, तो हाथ में गंगा जल, फूल और अक्षत लेकर उसका संकल्प लें। शाम के वक्त घर के मंदिर में गोधूलि बेला में घी का दीपक जलाएं। भगवान शिव का अभिषेक करें और शिव परिवार का ध्यान करते हुए श्रद्धा से पूजा करें। प्रदोष व्रत की कथा सुनें। घी का दीपक फिर जलाकर भगवान शिव की आरती करें। भगवान शिव के मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करें।

प्रदोष व्रत के लिए जरूर सामान

- दूध

- शहद

-अक्षत

- लाल और पीला गुलाल

-फल, फूल और सफेद मिठाई

-आसन

-सफेद चंदन

- कलावा

-बेलपत्र

-भांग

-धतूरा

-धूपबत्ती

- घी

-प्रदोष व्रत की कथा-पुस्तिका

- नए कपड़े

-शिव चालीसा

-शंख

-घंटा

-हवन की सामग्री

भगवान शिव की आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥

Disclaimer

"इस लेख में दी गई सारी जानकारी केवल सामान्य सूचना के लिए है। एशियानेट हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है।"