सार
Interesting facts about Mahabharata: महाभारत में कईं ऐसे पात्रों के बारे में बताया गया है, उसमें कुछ आज भी जीवित है। ऐसे ही एक पात्र हैं कृपाचार्य। ये हस्तिनापुर के कुलगुरु थे। युद्ध में इन्होंने कौरवों का साथ दिया था।
महाभारत में कईं महान योद्धाओं का वर्णन मिलता है, कृपाचार्य भी उन योद्धाओं में से एक थे। कृपाचार्य हस्तिनापुर के कुलगुरु थे। कौरव और पांडवों को भी उन्होंने ही शिक्षा दी थी। वे हमेशा हस्तिनापुर का भला चाहते थे, लेकिन मजबूरी में उन्हें कौरवों का साथ देना पड़ा। ऐसा भी माना जाता है कुलगुरु कृपाचार्य आज भी जीवित हैं। कृपाचार्य रुद्र अवतार भी थे। आगे जानिए कृपाचार्य से जुड़ी खास बातें…
कैसे हुआ था कृपाचार्य का जन्म, कौन थे माता-पिता?
महाभारत के अनुसार, गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था। महर्षि शरद्वान ने घोर तपस्या कर दिव्य अस्त्र प्राप्त किए और धनुर्विद्या में भी निपुणता प्राप्त की। जब देवराज इंद्र ने महर्षि शरद्वान का पराक्रम देखा वे भी घबरा गए। महर्षि शरद्वान की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने जानपदी नाम की एक अप्सरा को भेजा। अप्सरा को देखकर महर्षि शरद्वान का वीर्यपात हो गया, जो सरकंड़ों (सरपत प्रजाति का पौधा, जिसमें गाँठदार छड़ें होती हैं) पर गिरा। वीर्य के गिरने से सरकंडा दो भागों में बंट गया। ऐसा होने से एक कन्या और एक बालक उत्पन्न हुआ। यही बालक आगे जाकर कृपाचार्य बने और कन्या कृपी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
अश्वत्थामा के मामा हैं कृपाचार्य
महाभारत के अनुसार, कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य से हुआ था। अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। इसके हिसाब से कृपाचार्य पराक्रमी अश्वत्थामा के मामा हैं। खास बात ये है कि अश्वत्थामा की तरह कृपाचार्य भी अमर है। इस बात का प्रमाण इस श्लोक में मिलता है-
अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थ- अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और महर्षि मार्कंडेय अमर हैं। इनका नाम लेने से व्यक्ति निरोगी रहता है और लंबी आयु प्राप्त करता है।
पांडवों के शिविर पर किया था हमला
महाभारत के अनुसार, जब भीम ने दुर्योधन का जंघा तोड़कर उसे जीवित छोड़ दिया, तब कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा उसके पास पहुंचे। घायल अवस्था में ही दुर्योधन ने अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया और पांडवों के शिविर पर हमला करने को कहा। अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा रात के समय पांडवों के शिविर में पहुंचे। कृपाचार्य और कृतवर्मा ने बाहर पहरा दिया और अश्वत्थामा ने पांडवों के शिविर में घुसकर अनेक योद्धाओं का वध कर दिया। इसके बाद ये तीनों योद्धा अलग-अलग स्थानों पर चले गए। मान्यता है कि कृपाचार्य आज भी किसी गुप्त स्थान पर तपस्या कर रहे हैं और कल्कि अवतार के समय वे बाहर आएंगे।
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