Janmashtami 2025: भगवान श्रीकृष्ण के अनेक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हमारे देश में है। ऐसा ही एक मंदिर गुजरात के द्वारिका में भी है। खास बात ये हैं कि इस मंदिर में रोज 5 बार ध्वज बदला जाता है। इस परंपरा से जुड़े कईं विशेष नियम भी हैं।

Dwarkadhish Temple Gujarat Interesting Facts: इस बार श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का पर्व 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन देश के प्रमुख कृष्ण मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ेगी। वैसे तो हमारे देश में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े अनेक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं लेकिन इन सभी में गुजरात के द्वारिकाधीश मंदिर का विशेष महत्व है क्योंकि ये हिंदुओं के प्रमुख चार धामों में से भी एक है। मथुरा छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपना शेष जीवन यहीं बिताया। इस मंदिर से जुड़ी कईं मान्यताएं और परंपराएं हैं जो इसे और भी खास बनाती हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि द्वारिकाधीश मंदिर में रोज 5 बार ध्वज बदला जाता है। आगे जानिए इस परंपरा से जुड़ी रोचक बातें…

5 बार क्यों बदलते हैं द्वारिकाधीश मंदिर का ध्वज?

आमतौर पर किसी भी मंदिर में साल में एक बार ही ध्वज बदला जाता है, वहीं कुछ मंदिरों में रोज ध्वज बदलने की परंपरा भी है लेकन एक दिन में 5 बार ध्वज बदलने की परंपरा सिर्फ द्वारिकाधीश मंदिर में ही है। विद्वानों का कहना है कि रोज बदलने वाले ये ध्वज जीवन में लगातार हो रहे परिवर्तन का संकेत देते हैं। ये ध्वज बताते हैं कि जीवन निरंतर प्रगतिशील है और इसमें परिवर्तन आते रहते हैं जिसे सभी को स्वीकार करना चाहिए।

ये भी पढ़ें-

Janmashtami 2025: कहां है मूंछों वाले श्रीकृष्ण की प्रतिमा? अनोखी है इसकी मान्यता


Janmashtami 2025: जन्माष्टमी पर कान्हा को चढ़ाएं ये 5 चीजें, घर आएगी सुख-समृद्धि

कौन चढ़ाता है द्वारिकाधीश मंदिर पर ध्वज?

द्वारिकाधीश मंदिर में ध्वज बदलने का समय भी निश्चित है। यहां मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 और 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है। इसी दौरान मंदिर के शिखर पर ध्वज लगाया जाता है। मंदिर पर ध्वज लगाने का अधिकार सिर्फ द्वारका के अबोटी ब्राह्मणों के पास है। ये ध्वज मंदिर की ओर से नहीं बल्कि भक्तों की ओर से स्पॉन्सर चढ़ाया जाता है यानी भक्त ध्वज फहराने के लिए एडवांस बुकिंग करते हैं।

कितने गज का होता है द्वारिकाधीश मंदिर का ध्वज?

द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज 52 गज का होता है। इसे सिलने वाले दर्जी भी तय होते हैं। मान्यता है कि जब तक सूर्य व चंद्रमा रहेंगे तब तक इस मंदिर का वैभव इसी तरह बना रहेगा। इसलिए ध्वज पर सूर्य व चंद्रमा का प्रतीक चिह्न होता है। जिस परिवार को ये मौका मिलता है वो नाचते गाते हुए आते हैं। उनके हाथ में ध्वज होता है। वे इसे भगवान को समर्पित करते हैं। यहां से अबोटी ब्राह्मण इसे लेकर ऊपर जाते हैं और ध्वज बदल देते हैं।

52 गज का ही ध्वज क्यों चढ़ाते हैं?

द्वारिकाधीश मंदिर में 52 गज का ध्वज चढ़ाने के पीछे कईं मान्यताएं हैं। उनमें से एक मान्यता ये है कि 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र और श्री द्वारकाधीश को मिलकर 52 की संख्या होती है। इसलिए ये ध्वज संपूर्ण सृष्टि का प्रतीक है। दूसरी मान्यता है कि कभी द्वारिका में प्रवेश के लिए 52 द्वार थे। 52 गज का ध्वज इन्हीं 52 द्वारों का प्रतीक है।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।