सार
Vaikuntha Chaturdashi 2024 Kab Hai: कार्तिक मास में एक ऐसा ही पर्व भी मनाया जाता है जिसमें भगवान शिव और विष्णु की साथ में पूजा की जाती है। इसे वैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं। जानें कब है वैकुंठ चतुर्दशी 2024?
Vaikuntha Chaturdashi 2024 Date: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में भगवान शिव के साथ विष्णु की पूजा भी की जाती है। इस पर्व का महत्व अनेक पुराणों में बताया गया है। साल में सिर्फ यही एक मौका होता है जब भगवान शिव-विष्णु की पूजा संयुक्त रूप से की जाती है। आगे जानिए इस बार कब है वैकुंठ चतुर्दशी 2024 और इससे जुड़ी खास बातें…
कब है वैकुंठ चतुर्दशी 2024? (Vaikuntha Chaturdashi 2024 Kab Hai)
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर, गुरुवार की सुबह 09 बजकर 43 मिनिट से शुरू होगी, जो 15 नवंबर, शुक्रवार की सुबह 06 बजकर 19 मिनिट तक रहेगी। चूंकि वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा रात को होती है और ये स्थिति 14 नवंबर, गुरुवार को बन रही है, इसलिए इसी दिन वैकुंठ चतुर्दशी से संबंधित पूजा, उपाय आदि किए जाएंगे।
वैकुंठ चतुर्दशी 2024 पूजा शुभ मुहूर्त (Vaikuntha Chaturdashi 2024 Puja Shubh Muhurat)
14 नवंबर, गुरुवार को वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाएगा। रात को पूजा का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 39 मिनिट से शुरू होगा, जो 12 बजकर 32 मिनिट तक रहेगा।
वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा विधि (Vaikuntha Chaturdashi Puja Vidhi)
- 14 नवंबर, गुरुवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद हाथ में जल-चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर उपवास रखें यानी कुछ खाए-पीएं नहीं। ऐसा करना संभव हो तो एक समय फलाहार कर सकते हैं।
- रात में 12 बजे के बाद एक ही पटिए यानी बाजोट पर भगवान शिव और विष्णु के चित्र स्थापित करें। भगवान विष्णु को कमल के फूल और शिवजी को बिल्व पत्र चढ़ाएं। पूजा के दौरान ये मंत्र बोलें-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
- दोनों देवताओं को कुमकुम से तिलक करें। फूलों की माला पहनाएं। शुद्ध घी का दीपक भी जलाएं। वस्त्र के रूप में मौली समर्पित करें। इस तरह विधि-विधान से पूजा करने के बाद भगवान की आरती करें।
- रात भर सोएं नहीं, बल्कि भजन-कीर्तन करते रहें। अगली सुबह यानी 15 नवंबर, शुक्रवार को ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिण देकर विदा करें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
- इस तरह जो व्यक्ति वैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान शिव और विष्णु की पूजा विधि-विधान से करता है और व्रत करता है। उसके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानी भी दूर होती है।
वैकुंठ चतुर्दशी की कथा (Vaikuntha Chaturdashi Ki Katha)
पुराणों के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने 1 हजार कमल के फूलों से महादेव की पूजा का संकल्प लिया। इसके लिए वे काशी आए और विधि-विधान से पूजा करने लगे। शिवजी ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए 1 हजार में से एक कमल का फूल कम कर दिया। पूजा के दौरान जब भगवान विष्णु ने देखा कि एक कमल का फूल कम है तो उन्होंने उसके बदले अपनी एक आंख शिवजी को चढ़ानी चाही। तभी वहां स्वयं महादेव प्रकट हुए और भगवान विष्णु की भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। महादेव ने कहा कि ‘आज से ये चतुर्दशी वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से प्रसिद्ध होगी। आज जो भी व्यक्ति हरि और हर की पूजा संयुक्त रूप से करेगा, उसे वैकुंठ में स्थान मिलेगा।‘ तभी से वैकुंठ चतुर्दशी का व्रत किया जाने लगा।
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