सार
Govardhan Puja 2023: दिवाली उत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घर या आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते हैं। ये त्योहार मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मनाया जाता है।
Kyo Karte Hai Govardhan Puja: दिवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि त्योहारों का समूह है। इस उत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस बार पर्व 14 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। इस पर्व से जुड़ी कईं मान्यताएं और परंपराएं है जो इसे और भी खास बनाती हैं। इस दिन महिलाएं अपने घर-आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा करती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए इस त्योहार से जुड़ी रोचक कथा…
ये है गोवर्धन पूजा की कथा (Govardhan Puja Ki Katha)
द्वापर युग में वृंदावन के लोग अच्छी बारिश की कामना से और देवराज इंद्र को प्रसन्न करने के लिए दिवाली के दूसरे दिन उनकी पूजा करते थे। जब भगवान श्रीकृष्ण ने ये देखा तो उन्होंने इसका कारण पूछा। सभी लोगों ने उन्हें बताया कि इंद्र जो बारिश करते हैं, उसी से अन्न उगता है गायों के लिए हरी घास पैदा होती है।
जब श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘हमारी गाए तो हमेशा गोवर्धन पर्वत पर ही चरती हैं तो हमें देवराज इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की ही पूजा करनी चाहिए। इंद्रदेव को तो हममे से किसी ने नहीं देखा लेकिन गोवर्धन पर्वत को साक्षात रोज हमें दिखाई देते हैं। इस तरह श्रीकृष्ण की बात मानकर सभी ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी।
जब देवराज इंद्र ने ये देखा कि बज्रवासी मेरे स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं तो उन्होंने बज्रमंडल पर मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। इस बारिश से पूरा गांव ही डूबने लगा। तब श्रीकृष्ण ने अपनी एक अंगुली पर ही गोवर्धन पर्वत को छाते की तरह उठा लिया और सभी गांववासी अपने गाय-बछड़ों को लेकर उसके नीचे बैठ गए।
लगातार 7 दिनों तक श्रीकृष्ण ऐसे ही गोवर्धन पर्वत को उठाकर खड़े रहे। जब इंद्र ने ये देखा तो वे समझ गए तो श्रीकृष्ण साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं। उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने आकर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। श्रीकृष्ण ने उन्हें माफ कर दिया। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा शुरू हुई।
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