Dhanteras Ki Katha: इस बार धनतेरस का पर्व 18 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि इसी तिथि पर समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे। जानें समुद्र मंथन की पूरी कथा।

Samudra Mantha Ki Katha: धर्म ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि इसी तिथि पर समुद्र मंथन में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। समुद्र मंथन की कथा अनेक धर्म ग्रंथों में बताई गई है। समुद्र मंथन से कुल 14 रत्न निकले थे। इनमें से कुछ असुरों ने अपने पास रखे तो कुछ देवताओं ने। आगे जानिए असुरों और देवताओं ने क्यों किया समुद्र मंथन और इसमें से कौन-कौन से रत्न निकले…

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ये है समुद्र मंथन की कथा

- प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को एक दिव्य माला उपहार में दी। इंद्र ने वह माला अपने हाथी को दे दी। हाथी ने वह माला तोड़कर फेंक दिया। ये देख महर्षि दुर्वासा ने क्रोधित होकर स्वर्ग को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण स्वर्ग का वैभव और ऐश्वर्य समाप्त हो गया। 

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- तब भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा ‘तुम असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करो, इससे तुम्हारे स्वर्ग का वैभव पुन: लौट आएगा और इसमें से निकलने वाला अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे। देवताओं ने जब ये बात असुरों के राजा बलि को बताई तो वे भी समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। 
- तब वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गया। जब मदरांचल पर्वत समुद्र की गहराई में डूबने लगा तो भगवान विष्णु ने कच्छप यानी कछुए का अवतार लेकर उसे अपने ऊपर स्थिर कर लिया। इसके बाद समुद्र मंथन से एक-एक करके 14 रत्न निकले।

क्या-क्या निकला समुद्र मंथन से?

1. समुद्र मंथन में से सबसे पहले कालकूट नाम का घातक विष निकला। भगवान शिव ने इसे पीकर अपने गले में स्थिर कर लिया, जिससे उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।
2. इसके बाद समुद्र में से कामधेनु गाय निकली। इसे ब्रह्मवादी ऋषियों ने ले लिया।
3. समुद्र को मथने पर उच्चैश्रवा घोड़ा निकला। इसका दिव्य घोड़ा सफेद रंग का था। इसे असुरों के राजा बलि ने ले लिया।
4. समुद्र मंथन से निकलने वाले ऐरावत को देवराज इंद्र ने रख लिया।
5. समुद्र को मथने से कौस्तुभ मणि निकली, जिसे भगवान विष्णु ने अपने ह्रदय पर धारण कर लिया।
6. इसके बाद समुद्र मंथन से निकला इच्छाएं पूरी करने वाला कल्पवृक्ष, इसे देवताओं ने लेकर स्वर्ग में स्थापित कर दिया।
7. समुद्र मंथन से रंभा नाम की एक सुंदर अप्सरा भी निकली। ये भी देवताओं के पास चलीं गई।
8. इसके बाद समुद्र मंथन प्रकट हुईं देवी लक्ष्मी। देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु का वरण कर लिया।
9. समुद्र निकली वारुणी देवी, इसे दैत्यों ने ले लिया। वारुणी का अर्थ है मदिरा यानी नशा।
10. फिर समुद्र मंथन से निकले चंद्रदेव, जिन्हें भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया।
11. समुद्र मंथन से 11वें क्रम पर निकला पारिजात वृक्ष। यह भी देवताओं के हिस्से में गया।
12. इसके बाद समुद्र मंथन से दिव्य पांचजन्य शंख। इसे भगवान विष्णु ने ग्रहण किया।
13 व 14. सबसे अंत में भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर निकले। भगवान धन्वंतरि स्वयं व अमृत कलश भी रत्नों में शामिल हैं।


Disclaimer 
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।