Navratri 2025: नवरात्रि में जगह-जगह देवी मां की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। मगर बहुत कम लोग जानते हैं इन प्रतिमाओं को बनाने में वेश्याओं के आंगन की मिट्टी का उपयोग भी किया जाता है। इस परंपरा से जुड़ी रोचक मान्यताएं भी हैं।

Navratri Tradition: हर साल आश्विन मास में शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस दौरान सार्वजनिक स्थानों पर देवी क विशाल प्रतिमाए स्थापित कर 9 दिनों तक इनकी पूजा की जाती है। बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि दुर्गा मां की प्रतिमा को बनाने में वेश्याओं का आंगन की मिट्टी का उपयोग भी किया जाता है। बंगाल, कोलकाता आदि स्थानों पर ये एक परंपरा है। ये परंपरा कैसे शुरू हुई और इससे जुड़ी क्या-क्या मान्यताएं हैं, आगे जानिए…

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वेश्याओं से अनुमति लेकर लाते हैं मिट्टी

देश में माता की प्रतिमा बनाने वाले अधिकांश कलाकार बंगाल के होते हैं। इनकी एक परंपरा होती है कि ये जब भी माता की प्रतिमा बनाने का काम शुरू करते हैं तो सबसे पहले वेश्याओं की आंगन की मिट्टी लेकर आते हैं, इसके लिए ये उनकी अनुमति भी लेते हैं। इस मि्टटी को अन्य मिट्टी के साथ मिलाकर ही देवी मां की प्रतिमाएं बनाने का काम शुरू किया जाता है।

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कैसे शुरू हुई ये पंरपरा?

प्रचलित कथाओं के अनुसार ‘एक बार कुछ वेश्याएं गंगा नदी में स्नान के लिए जा रही थीं। वहीं घाट पर एक कुष्ठ रोगी बैठा था, जो आते-जाते लोगों से गंगा स्नान करवाने में मदद मांग रहा था। किसी ने भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन वेश्याओं ने उस कुष्ठ रोगी को गंगा स्नान करवा दिया। वह कुष्ठ रोगी और कोई नहीं बल्कि स्वयं महादेव थे। अपने वास्तविक स्वरूप में आकर महादेव ने वेश्याओं से वरदान मांगने को कहा। तब वेश्याओं ने कहा कि ‘हमारे आंगन की मिट्टी के बिना देवी की प्रतिमाओं का निर्माण न हो।’ महादेव ने उन्हें ये वरदान दे दिया। तभी से ये परंपरा चली आ रही है जो आज भी जारी है।

इस परंपरा का एक कारण ये भी

प्रचलित कथा के अलावा इस परंपरा का एक दूसरा कारण भी है। उसके अनुसार, जब कोई व्यक्ति वेश्या के घर में प्रवेश करता है तो वह अपने सभी अच्छे कर्मों का फल बाहर छोड़ जाता है। इन्हीं पुण्य कर्मों के कारण वेश्या के आंगम की मिट्टी बहुत ही पवित्र मानी गई है। इसलिए भी देवी देवी प्रतिमाएं बनाने के लिए वेश्याओं के आंगन की मिट्टी का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है।


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